एक फैसले की उलझने
“तो क्या फैसला लिया?” कुर्सी पर बैठते ही हर्ष ने सुमन की तरफ देखा
“यही तो दुविधा है|पापाजी से बात कि तो उन्होंने कहा कि दो-चार समझदार लोगों से पूछ लो बाकि तुम्हारे हर निर्णय में हम साथ खड़े हैं |- - - - - - -तो अब आप ही बताएँ कि क्या करना चाहिए ?”
“इन्हें क्या पता ?आप ऐसे लोगों से पूछों जो अंदर के हालत समझते हों |वही आपको सही गाइड कर सकते हैं |”
हर्ष के बोलने से पहले ही पल्लवी ने चाय रखते हुए कहा
“मम्मी जीतू,मारा है |”
“मम्मी सन्नी माला है |”
“ये दोनों के दोनों ने जब भी इकट्ठे हो जाते हैं तो बस - - - - |”पल्लवी ने कहा
“कोई एक जावा कम नहीं है |तू सेर तो मैं सवा सेर - - - - - गली में भी सभी बच्चों को मारेंगे और फिर खुद ही रोने लगेंगे |”
“सोच रही हूँ जब अप्रैल में गाँव से लौटूँ तो इसको भी स्कूल में दाखिल करा दूँ |ढाई साल का हो भी गया है |पूरे दिन शैतानी - - - -नाक में दम किए रहता है |कम से कम तीन घण्टे को फुर्सत मिलेगी |”
“गर्मी की छुट्टी के बाद कराना वर्ना छुट्टियों की भी फ़ीस लगेगी |क्यों जी ??”पल्लवी ने हर्ष की तरफ चकली बढ़ाते हुए पूछा
“हाँ |”
“तो फिर जुलाई तक हि करवाऊँगी ?बस यही है ना भाभी कि जब तक जगा रहता है मेरे आगे-पीछे लगा रहता है |कोई तैयारी नहीं हो पा रही है - - - -और बिना तैयारी तो - - - - - -आप तो समझती हो न !“
“मेरा भी यही हाल है |ये तो दोपहर तक घर पर रहते हैं इसके बावजूद सन्नी पर ध्यान नहीं देते |चलो सतीश की तो नौकरी ही ऐसी है|पर इन्हें कौन सा तीर चलाना होता है|जाकर ककहरा लिख दिया.दो-चार बच्चों को पीट दिया और चाय-वाय पीकर लौट आए |” पल्लवी ने कहा
“अच्छा वहाँ मेरे ससुर बैठे हैं क्या ?और जितना होता है करता हूँ न मदद |पर माफ़ करो मैं गुलाम नहीं बन सकता |चाहे तुम तैयारी करो या ना करो |अभी से ये हाल है कल कहीं लग जाओगी तो तो पैर जमीन पर नहीं पड़ेंगे |हर्ष ने क्रोध में कहा
“नहीं भाभी मास्टरजी तो फिर भी आपकी मदद करते हैं पर ये साफ कहते हैं कि तैयारी होती है तो करो नहीं तो छोड़ दो - - - - आकर बच्चे को भी नहीं देखना खुद बच्चे कि तरह बर्ताव करते हैं सुबह उठकर चाय पीकर सो जाते हैं और पानी गर्म करने के बाद दुबारा उठाना पड़ता है |कहते हैं कि नहीं होती तैयारी तो जो मिलता है उसी में संतोष करो - - - -मैं तो संतोष कर लूँ |वैसे भी बचपन से लेकर अब तक अभाव और दुःख ही तो देखे हैं|पर बच्चे के लिए तो सोचना होगा | “उसने रुआंसी होते हुए कहा
“सतीश का क्या फैसला है इस बारे में - - “
“वो तो कह रहें हैं कि जो तुम्हारा फैसला वो मेरा - - - -पर मेरा ही मन घबरा रहा है |वो लोग छह महीने की ट्रेनिंग करवाएँगे - - - -बस उसी से डर लग रहा है |
“मुझे नहीं लगता कि ट्रेनिंग इतनी हार्ड होगी - - - --और तुमने अपने जीवन में जो उतार चढ़ाव देखें हैं क्या ये उससे कठिन होगी |धीरे-धीरे पांच साल हो गए |जितना समय बीतेगा मौक़ा उतना ही क्षीण होता जाएगा |अभी शरीर भी साथ दे रहा है |कल कौन जाने क्या हालात हों ? उस पर इन नौकरियों में मेडिकल फिटनेस बहुत मायने रखती है|देर का मतलब प्रोन्नति और पैसों दोनों का नुकसान |यहाँ कहाँ सतीश मुशकिल से 10 हज़ार कमा रहा है वहाँ कम से कम 30 हज़ार महिना और पक्की सरकारी नौकरी और दूसरे अन्य लाभ |फिर ऑफर लेटर में साफ़ लिखा है कि मिनिस्ट्रियल पोस्टों के लिए लम्बी प्रतीक्षा सूची है और अगले पांच साल तक नम्बर आना मुशकिल है |”
“मैं तो तीन साल पहले ही तैयार थी पर परिवार वाले ही डरे हुए थे - - - - -जितने लोगो से राय ली उतना ही नेगेटिव सुनने को मिला – - - - -इस पर इन्होने भी अपनी यूनिट का किस्सा बताया था कि 2006 में इनकी कम्पनी में दो लड़कियों को पोस्ट किया गया और वहाँ के लड़को ने उनका जीना हराम कर दिया |नहाते-धोते समय ताका-झांकी,पी.टी. के समय बेहूदी टिपण्णी एक ने नौकरी छोड़ने का भी मन बना लिया था जब इन्हें पता चला तो सभी लड़को को डाँटा और गुवाहाटी में पैरवी करके उन्हें महिला यूनिट में भिजवाया |”
“पर ये तो पूरे समाज की कहानी है - - - -कौन सा पेशा ऐसा है जहाँ महिलाएँ पूरी तरह सुरक्षित हैं |शारीरिक और मानसिक शोषण तो एक समाजिक प्रवृत्ति है |- - -औरतें तो घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं |और पुरुष समाज पूरी तरह से औरतों को अपने जैसा कभी नहीं मानेगा |कुछ सांस्कृतिक और कुछ जैविक कारणों से पुरुष का स्त्री देंह के प्रति आकर्षण नैसर्गिक है |पुरुष तो एक घुमन्तु सांड है जो हर समय अवसर की तलाश में रहता है पर अब ये स्त्री को तय करना होगा कि वो किस हद तक किसी पुरुष को अपना सामीप्य देती है |अपनी लड़ाई में औरत को स्वयं आगे आना होगा |अधिकतर मामलों में औरतों की चुप्पी या समाजिक लज्जा का डर ही उनके शोषण का कारण हैं |कई ऐसे भी मामले आए हैं जहाँ औरतों ने अपने शोषकों को नाकों चने चबवा दिए और उन्हें घुटने टेकने पड़े |तुम्हारे मामले में तुम्हारा सीधापन थोड़ा सा चिंताजनक है |”
“सबको यही डर है | इसीलिए पापाजी भी यही चाहते हैं कि मैं कहीं टीचर हो जाऊँ |एम.ए.लेकर फँस गई हूँ |ना डेटशीट आया ना पिछले साल का मार्कशीट |वरना ये तो बी.एड. के लिए किसी से बात भी कर रखें हैं पूरे एक लाख माँगा है पर डर है कि दोनों एक साथ क्लैश हो गए तो दिक्कत हो जाएगी |”
“बी.एड करके भी लाखों लोग घूम रहे हैं या प्राइवेट स्कूलों में धक्के खा रहे हैं |ये किस्मत है कि तुम्हारे पति सी.आर.पी.एफ में थे और विभाग अनुकम्पा पे तुम्हें नियुक्ति देने को तैयार है |वर्ना कई विभागों में तो अनुकम्पा नियुक्ति ही बंद है |- - - - -अपनी नहीं तो अपने बच्चे की सोचो |एक अवस्था के बाद कोई काम नहीं आता |आज तुम्हारे ससुर हैं तो परिवार भी कुछ नहीं कह रहा |कल जब जमीने अलग होंगी तो सब अपना-अपना ही देखेंगे | अगर तुम आर्थिक रूप से मजबूत हो तभी मुश्किलों का सामना कर सकोगी |ये घर तक तो तुम्हारा नहीं है कल जेठ लोगों का मूड बिगड़ा तो तुम्हें कह देंगे कि कहीं और ठिकाना देख लो ”
“मैं तो समझती हूँ पर यही गौर नहीं करते |जब से ये नौकरी करने लगे हैं बड़ी दीदी का बर्ताव भी कुछ बदला सा हुआ था |जब जोधपुर गए थे तो इनसे उखड़ के बात कर रहीं थीं |- - - - शायद भागलपुर में हमने जो जमीन ली हैं उसी से परेशान हों - - - - पर अभी तो हारे-गाढ़े में वही तो एक सहारा है |उनके बाद जो मिला सब तो उसी में फँसा रखा है |और कागज़ भी तो जीतू के पापा के नाम है |फिर क्यों दीदी इतना बदल गईं ?इनको तो उन्होंने बेटे की तरह पाला है और मुझे भी शुरु से छोटी बहन की तरह प्यार किया |अगर उनके बाद किसी ने मेरे लिए सबसे ज़्यादा किया है तो इन्ही लोगों ने पर अब - - - - - “
“देखों सुमन,समाज की बदली स्थिति में हरेक परिवार अपने अंतर्निहित मूल्यों और अपनी आकांक्षाओं के बीच फँसा पड़ा है |संसाधनो की सीमितिता ने उसे छटनी करने के लिए बाध्य किया हुआ है |इसलिए संयुक्त परिवारों में भी बिखराव की स्थिति है |एक माँ के रूप में तुम्हारी बड़ी दीदी(जेठानी ) की सोच जायज़ है |बड़ा होने के नाते सबसे ज़्यादा पारिवारिक दायित्त्व उन्ही ने निभाया पर सरकारी नौकरी होने के बावजूद तुम्हारे बड़े जेठ जी का एक भी स्वतंत्र जमीनी टुकड़ा नहीं है |जबकि तुम्हारे आलावा बाकी सभी लोगों ने अपने-अपने घर भी बना लिए हैं |”
“मैंने भी तो सोच रखा है कि कल जब मेरी नौकरी लग जाएगी तो मैं उनके बच्चों के लिए अच्छे से अच्छा करूँगी |मैं उनके अहसान तो नहीं चुका सकती पर जरूरत पड़ने पर मैं तन-मन से उनके लिए प्रस्तुत हूँ |”
“पर ऐसा तभी होगा जब तुम अपने पैरों पर खड़ी होओगी और इसके लिए ज़रुरी है कि तुम व्यर्थ की आंशका छोड़कर अपनी स्वीकृति भेज दो |और तुम अकेली थोड़े हो जो इस विभाग में नौकरी करेगा |सी.आर.पी.एफ. की तो अलग से महिला बटालियन भी है |एक तो यहीं दिल्ली में है | ”
“हाँ,वहाँ गुवाहाटी में जितने लोग मिले सबने यही कहा –एक आंटी तो गेट पे थीं |उन्होंने बताया कि 20 साल से यहीं हूँ पति के बाद से - - - पढ़ी-लिखी हूँ नहीं इसलिए वहीं की वहीं अटकी हूँ |तू तो पढ़ी-लिखी है बहुत आगे तक जा सकती है - - - - - -महिला अफसर ने भी कहा कि डरना फ़िज़ूल है \डरोगी तो कभी आगे नहीं बढ़ पाओगी |ट्रेनिंग है कोई हव्वा नहीं औरतों की ट्रेनिंग वैसे भी इतनी हार्ड नहीं होती | दो ही महिला बटालियन है एक भागलपुर एक दिल्ली |बटालियन से बाहर नियुक्त किया तो किसी दफ्तर में ही लगाएँगे |पहली बार जब गुवाहाटी गई थी इनकी नियुक्ति की अर्जी कैंसिल होने के बाद तो वहाँ पर वे लोग मुझे तीन-चार घंटे अकेले में बिठाए रहे |बोले कि पगला गई हो क्या जो अपने देवर को नौकरी लगवा रही हो |क्या गारंटी है कि कल नौकरी के बाद वो तुमसे शादी करेगा और तुम्हारी देखभाल करेगा |महिला अफसर ने बताया कि एक मामले में एक औरत ने अपने भाई को नौकरी दे दी |कम पढ़ी-लिखी थी |भाई ने धोखे से उसका सारा फंड ,सारी जमीन भी हड़प लिया और नौकरी के बाद भाई-भाभी उसे और असके बच्चों को तरह-तरह से यातना देने लगे |बेचारी रोती-बिलखती हमारे पास आई और कितनी मुशकिल से हमने उसे दुबारा नौकरी दिलाई |- - - - - -भागलपुर में भी एक दीदी मिली थीं |हवलदार लगीं थीं अब एस.आई हैं बता रहीं थीं कि पति रांची में शहीद हुए थे \दो बच्चे थे |देवर से शादी को कहा गया तो उसने कहा कि पहले नौकरी और भाई के सारे फंड उसके नाम करूं |मैंने फैसला किया नौकरी करने का और मुझे अपने निर्णय पर गर्व है |विभाग में जितने लोग मिले सबने हौसला बढ़ाया बस बाहरी लोग ही डराने का काम करते हैं |पिताजी कहते हैं कि जनरल डयूटी में वर्दी पहननी पड़ती है |वर्दी में घर कि बहू को देखकर लोग जाने क्या-क्या कहें
“फिर तुम क्या सोच रही हो ?गर्म गुलाबजामुन से तो मुँह जलेगा ही अब सोचों लो खाना है या नहीं |- - - -जितना ठंडा उतना फीका |- - -वैसे भी बात बनाना तो लोगों का काम है |”
“वो बात तो सही है पर एक और उलझन है कि पुलिस वरिफिकेशन कहाँ से करवाएँ |अगर किसी ने बता दिया कि मैं शादी-शुदा हूँ और एक बच्चा भी है तो - - - - - -आप तो जानते हैं ना कि गाँव में डाह रखने वालों की कमी नहीं है और जब वरिफिकेशन वाला आया और अनजाने में किसी के मुँह से शादी और बच्चे की बात निकल गई तो या बेटा ही उस वक्त आ गया तो ?”
“तो क्या शादी के बाद नौकरी नहीं मिलेगी ?”
“शायद कुछ समय से शादी के बाद भी नौकरी देने लगे हैं |पता नहीं इनके मामले में ये लागू होता है की नहीं |फिर अभी तक किसी आवेदन में मैंने शादी की बात नहीं लिखी है इसलिए - - - -“
“तुम्हारे पटना वाले जो कर्नल अंकल थे |उन्होंने कहा था ना कि उनका पता दे दो-फिर ?”
“हाँ,पर वो वहाँ पर हमेशा नहीं रहते वरना उन्होंने तो बहुत हौसला बढ़ाया है |उनके एक बेटे वहीं डाक्टर हैं उन्होंने कहा कि वो को अपना बेटा दिखाकर फिर मुझे गोद दे देंगे |और बहुत से लोग ऐसा करते हैं |
“फिर तुम अपने दिल्लीवाले जेठ का पता भर दो |वहाँ तो बहुत कम लोग तुम्हारे बारे में जानते हैं ?”
“मम्मी घल चलो-चलो ना |”
“मैं आज इनसे फिर बात करती हूँ |” चलते-चलते वो बोली
“हर्ष जी ,सोच रहा हूँ कि उन्हें स्वीकृति की मेल भेज दूँ |पर पहले उन्होंने कहा था कि योग्यता के आधार ए.एस.आई का पद दे देंगे पर इसमें तो हवलदार का ऑफर भेजा है |इस विषय में क्या किया जाए ?” शाम को सतीश ने मिलने पर कहा |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
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