फिर से कहा (जैतीपुर क कथा )
“नारायण बाबा “ “हे नरायण बाबा” पल्टू ने दुआरे से आवाज़ लगाते हुए पुकारा
“कौन है रे !सुबह –सुबह इतनी ज़ोर से बाग दे रहा है |”
“हम है बाबा |”पतलून और बुशर्ट पहिने और काला चश्मा लगाए साँवला मरियल सा लड़का बोला
“माफ करना बच्चा,पर तुम - - -“नारायण मिश्र ने पेशानी पर ज़ोर डालते हुए कहा
“हम है बाबा ,जोखू यादव का लौंडा पल्टू |याद तो होगा आपको |”
“अच्छा तो तू वही लौंडा है जिसका नेटा हमेशा बहता रहता था और जो दू के आगे कभी गिनबे नहीं किया |”
“जी बाबा |”
“तू तो बिल्कुल फ़िल्मी हीरो हो गया रे !अच्छा याद आया पाँच बरिस पहले तेरा दद्दा आए थे पत्रा जँचाने और हमने कहा था कि लड़का जरुर लौटेगा और जब लौटेगा तो बड़ा मनई बनके |”
“हाँ ,बाबा हम बमई भाग गए थे और कल ही लौटे हैं |” पाँवलगी करते हुए वो बोला
“त बच्चा कैसे आना हुआ ,का तोहार आज़ी - - “
नाहिं-नहिं बाबा |आजी तो एकदम चकाचक हैं और आज भी दस-दस भैंसों को गोबर अकेले पाथ देती हैं |कहती हैं कि परपोता क मुँह देखे बिना ना जाईब |
“त का तोहरी जोरू के बच्चा हुआ है |पत्रा खोलने का पूरा 11 रुपया लगेगा |
“अरे नाहिं बाबा,अभी तो महिना पहिले गौना हुआ था और हम तो बमई थे फिर बच्चा - - - -“कुछ-कुछ शरमाते हुए बोला
फिर तो ज़रूर भैंस को दुम्हर पकड़ा होगा | साला !दरिद्र जीते जी तो मूस-घोघा का शिकार करता था और अब गाँव के गोरून के पीछे लगा है |एक साल में गाँव का कितना पशु खून फैंक के मर गया |सारे गाँव से कहे थे कि मिलकर मृत्युंजय महाजाप करा लो,गाँव को बंधवा लो !पर तुम अहिरो को तो ‘पशु-डाक्टर’,’पशु-डाक्टर’,अब भुगतो |
नहीं बाबा,हमार भैंसिया बिल्कुल ठीक हैं |बल्कि सब मिलके 40 सेर से ऊपर दूध दे रही हैं |
“ना ई बात ह ना उ बात ह |त ससुर सुबह-सुबह का तु हमारी गाय दुहे आईल हउवा |जानते नहीं कि पंडित का समय कितना कीमती होता है और उनका गोड़ छुआई पर भी दान-पुण्य करने से शुभ होता है - - - पर तुम तो अहीर –पशु –चरवाहा की सन्तान कहाँ समझोगे ये सब बातें |”
अज्ञानी का अपराध क्षमा हो ,बाबा |हमे तो पूजा-पाठ,धर्म-अधर्म का गियान नहीं है |पर उसी सद्बुद्धि के लिए आपके चरणों में उपस्थित हुआ हूँ |जब से लौटा हूँ मेहरिया जिद्द बांधी हैं कि सतनारायन की कथा सुनेगें|उन्हीं के प्रताप से आप लौटे हैं |कल से बस ‘सतनारायन-सतनारायन’ का रट्टा लगा रखी है |
“यह तो बहुत शुभ विचार है |धर्म-कर्म से ही तो आदमी आगे बढ़ता है |उसका वंश आगे बढ़ता है और पुरखों को मोख मिलता है |सतनारायन कथा कहने-सुनने से बुद्धि खुलती है |घर का बाधा-विघन कट जाता है |पटीदारों की ‘हाय’ नहीं लगती - - - तुम्हें पत्नी नहीं साक्षात लछमी मिली है |तो कब कहनी है कथा ?”
“बाबा जब आपका शुभ विचार हो |कोई अच्छा सा दिन,अच्छा सा समय देखकर रख दीजिए |”पतलून की जेब से नया एक रुपया और चार आना उनके पैरों पर रखता हुआ कहता है |
“लक्ष्मी को गोड़ नहीं माथे पर रखते हैं|”पैसों को उठाते हुए बात जारी रखते हैं - - - - और जहाँ तक कथा का सवाल है |सारा दिन,सारा समय शुभ होता है पर सतनारायन की कथा तो वीरेवार को सुनने से ज़्यादा फलदायक होगा |”
“ठीक है| जैसा बाबा का विचार “ उठते हुए कहता है
“अच्छा सुना,अपने सारे टोला,पट्टीदारों को भी बुला लिहा ,ज्यादातर अहीर लोगों की बुद्धि बंद है,बस गईया-भैंसईया गोबर-दूध तक सोच रुक गया है |धर्म-वर्म का सुधे नहीं है |उससे उनका बुद्धि भी खुलेगा और कथा का प्रभाव और तुम्हारा जश भी बढ़ेगा |
“जी बाबा |” कहकर पल्टू मुड़ गया |
“तो याद रखना,अगला बीफ़े - - -“बाबा खड़े-खड़े चिल्लाए |
बीफ़े के रोज़ पंडित महराज नित्यकर्म से निवृत्त हो और पूजा-अर्चना कर,यजमान की प्रतीक्षा करने लगे |
“कुछ भोग-वोग लगाएँगे ?”
गोबिंद की अम्मा तुम भी मटकिया का मखन रह गई,यजमान बमई से कमाकर लौटा है ऊपर से दस-दस भैंसों को मालिक - - -क्या वहाँ फल –दूध की सेवा प्राप्त ना होगी |
“हम तो ये जानते हैं कि जब अपने घर से अन्न देव को नमस्कार करके निकलते हैं तो अन्न देवता हर जगह दर्शन देते हैं बाकि जैसे गोबिंद के काका चाहें |”कहकर वो अपने काम में लग गई |
पंडित बाबा,द्वार पर यजमान के आमन्त्रण की प्रतीक्षा करने लगे,कभी खटिया पर कमर सीधी करते तो कभी अपनी तोंद देखकर स्वादिष्ट भोजन की कल्पना से मुस्कुराने लगते ,कभी गाय-गोरु की साना-पानी जाँचते कभी द्वार पर चहलकदमी करते,तो कभी पोथी खोलकर आगे की शुभ तिथियों की गणना करने लगते तो कभी सूरज देखकर पहर का आंकलन करने लग जाते |
गोरु जब तृप्त होकर और नांद पर धूप पड़ने से बाँय-बाँय करने लगे तो उनकी बेचैनी बढ़ने लगी
“कहीं भूल तो नहीं गया,कहीं हमारे साथ खिसकड़ी तो नहीं किया |कहीं उस दिन का कोउनो बात लग तो नहीं गया |कहीं हनुमान पांडे ने पट्टी पढ़ाकर उसे सस्ते में तो नहीं पटा लिया |वैसे भी सियार हमेशा हमारे शिकार पर नजर गड़ाए रहता है |”
“नहीं-नहीं हम बचपन में उसे पढ़ाए हैं |कड़ाई किए तो क्या हम गुरु हैं !पंडित हैं !उ हमसे चालबाजी तो नहीं करेगा - - अहिरिन शुद्ध घी में हलवा-पूड़ी बना रही होगी |सारे टोले का प्रसादी भी तैयार करेगी |फिर इतना तरह का समान जुटाना है |समय तो लगेगा ही | तैयारी होते ही पल्टू बुलावा भेजेगा |आखिर बमई से कमाकर लौटा है |उहाँ के लोग समय का बहुत कद्र करते हैं |एक-एक मिनट में सैकड़ो रुपया पैदा करते हैं |पल्टू सोचता होगा कि बाबा का हर मिनट कितना कीमती है |पर बचsवा ऐसे थोड़े छोड़ दें-गे |मोटी मुर्गी रोज़-रोज़ थोड़े फंसती है |”
“गोबिंद की माई,दीवार-घंटा में कितना बख्त हो रहा है ?”
“काँटा 10 से ऊपर जा रहा है |”म
“अच्छा हम जा रहे हैं |पता नहीं बैल अभी तक बुलावा नहीं भेजा |कहीं हनुमान पांडे तो पट्टी नहीं पढ़ा लिया |”
“बिना बुलाए जाएँगे ,मान-सम्मान का कौनों फ़िक्र नहीं है |उसे गरज होगी तो सौ बार बुलाहट करेगा - -“पड़ाईन तुनकते हुए बोली
“जाओ मिश्री खाओ,दिमाग ठंडा रहेगा |गर्म दिमाग से धर्म-कर्म-व्यापार नहीं चलता |फिर दुधारू गाय की तो लात भी भली - - - -पल्टू अभी बमई से लौटा है |”इतना कहकर वो झोला टांगे साईकिल पर सवार हो जाते हैं |
“रस-पानी तो करते जाओ |” पड़ाईन ने आवाज़ लगाई
“अब सब वहीं होगा |वामन हैं कउनो अहीर बुद्धि थोड़े हैं |” साईकिल पगडंडी पर दौड़ने लगी
पल्टू के घर पहुँचकर आवाज़ देता है – “पल्टू ,ए पल्टू- - - |”
घूंघट काढ़े एक स्त्री बाहर निकलती है –“बाबा इ त भैंसों को लेकर सीवान पर गए हैं और काका बजार और आजि गोड़ियाने दाना भुजाने |
“का सीवान पर गया है !हमसे तो आज सतनारायन क कथा कहने के लिए कह आया था |कथा नहीं हुआ तो कितना संकट आ जाएगा |तू तो उसकी मेहरिया है ना !”
“जी बाबा |” बढ़कर पाँव छूती है
“तुने तो कथा सुनी है ना कि राजा प्रण करके कथा कहना भूल जाता है और फिर - - - “
“छमा करें ,बाबा,हमसे तो एक बार भी जिक्र नहीं किए |भुलैन्वा खर खाए रहते हैं |अभी पशुनाथ को पठा के उन्हें बुला लेते हैं |पहले आपको रस-पानी भिजवा दें |” हाथ जोड़ते हुए मुकरी बोली
“अरी बिटिया,रस-पानी बाद में,विलम ना करो,शीघ्रता से बुलवाओ ,पूजा-पाठ में जितना विलम होगा ,गुरु महराज उतना ही बिगड़ेगे और अगर उन्होनें आँख टेढ़ी कर ली तो पता नहीं क्या - - - -“
“बाबा,नाराज़ ना होंई - - -“हाथ जोड़कर खड़ी रहती है
“अच्छा ठीक है,ऐसा करो दूध में पत्ती-चीनी उबालकर चाय बना लाओ - - - - हम गुरु महाराज से प्रार्थना करेंगे कि वो तुम पर दया-दृष्टी बनाए रखें |”
मुकरी लाकर चाय रख जाती है |चाय की पहली घूंट भरते हैं कि
“पायं लागूँ महाराज !द्वार पर कैसे दर्शन दिए ?” लाठी टेकते हुए पलटू पूछता है |
“तुमने आज कथा के लिए प्रतिज्ञा किया था,ना !”
“अरे रे रेS |” अपने सिर पर धीरे से हाथ मारता है
“बाबा किस समय तक हो सकता है ?मेरा मतलब आज तो अबेर हो गया है ना !”
“सुरुज उगने से लेकर बूड़ने से पहले तक - - -कभी भी कहाओ - - -“
“तो बाबा ऐसा कीजिए ,आप कथा-पूजा की तैयारी कीजिए|भैंसे अभी सीवान में चर रहीं हैं |एक-दो भैंस मरकहिया भी हैं और किसी के काबू में नहीं आती हैं |हम उन्हें थोड़ा चरी कराके और जुड़वाकर(नहलाकर ) हाँक लाते हैं |”
“ठीक है पर ज़्यादा देर मत करना |हमे एक-दू जगह और कथा बाँचने जाना है |”
“ठीक है बाबा,जो समान चाहिए मुकरी से माँग लेना |”कहता हुआ वो तेज़ कदम निकल जाता है
उसकी तरफ देखते हुए नारायण बाबा चाय का अगला घूंट भरते हैं और कुछ मुलायम सा पदार्थ के जीभ से स्पर्श होने पर बाहर थूकते हैं और झल्ला कर चाय झटक देते हैं |फिर चुपचाप पूजा की तैयारी में लग जाते हैं |
भाई के सीवान लौटने पर पशुनाथ हमजोलियों के साथ गिल्ली-डंडा खेलने लगता है |पल्टू पीपल की छाया में बैठा सुस्ताने लगता है और भैंस मज़े से चरती रहती हैं और वहीं उसकी आँख लग जाती है |अकेली मुकरी एक पैर पे खड़ी रहकर पूजा की सारी तैयारी करती है |दोपहर चढ़ने पर पशुनाथ भैंसों संग लौटता है तो घबराकर पूछती है
“भईया कहाँ रह गए ?बिष्णु महाराज गलती-अपराध क्षमा करें |”
“भाभी ,ऊ त वहीं छाया में खर्राटा भर रहे हैं ,गुस्सा के डर से हम उन्हें नहीं छेड़े - - -“
“नारायण-नारायण ,बिटिया लछन शुभ नहीं हैं ,कथा कहने में पहले ही विलम्ब हो गया है और तुमने पहले तो कथा सुनी ही है ना !” बाबा ने झुंझलाते-झल्लाते-डराते हुए कहा
“आप प्रार्थना कीजिए महाराज ,हम खुद उन्हें बुलाकर लाते हैं |”
“अजि उठिए,कथा को विल्म हो रहा है |बाबा नाराज हो रहें हैं,कहीं कौनों - - - -”
“भाग तेरी,माँ - - - - -इतना अच्छा नींद लगा था |”
“एक बेर कथा हो जाए फिर जितना मन करे उतना देर गोड़ पसार के सोईए |”आग्रहपूर्वक बाँह खींचती हुई बोली
“कौन कथा ?”
“फिर भुला गए!आज गुरु महाराज का कथा रखे हैं ना |” प्यार से उसकी आँखों में देखते हुए बोलती है
“अरे-हाँ,याद आया पर तू यहाँ इस सीवान में - - - - गाँव-टोला सब क्या कहेगा ?”
“टोला गया ताल में,कथा नहीं हुई तो जाने कौन-कौन आफत आ सकती है |तुम तो पहले कथा सुने नहीं ,सुनोगे तो समझोगे,अब घर चलो ,इस गलती के लिए जो कहना-करना है,कथा के बाद कहना |”
“आ गए बच्चा,अब जल्दी से देह पर दू लोटा पानी डाल लो और कोई नया कपड़ा पहनकर चौका पर बैठ जाओ |”बाबा ने आदेशात्मक मुद्रा में कहा
“प्रतीक्षा बाबा,अभी भागे-भागे आ रहे हैं ,थोड़ा साँस तो ले लें - - - -“
“मुकुरी बमई से जो गमकौआ साबुन लाए हैं, निकाल | उसी से नहाएंगे- - “
“अरे क्या कर रहा है मुरुख !!बाबा का कथा सुनने वालों को सोडा-तेल से परहेज़ करना चाहिए |ये बड़ा-बड़ा कपनी सोडा में पशु का चर्बी डालता है |”
“अच्छा,नहाने के बाद सेंट लगा सकते हैं या उसमें भी - - -“
“नहीं-नहीं उसका निषेध नहीं है इत्र तो स्वयं पूजा में प्रयोग होता है |”
दोनों के चौके पर बैठने पर –“बच्चा,क्या टोला को कथा-सुनने को नहीं बोले? “
“बाबा,आप तो एक बार भी हमसे नहीं कहे !”मुकरी ने नाराज होते हुए कहा
“हाँ,व्यस्तता में ध्यान दिलाना भूल गए पर पल्टू को तो उस रोज़ कहे थे |”
“बाबा सनीचर का खाना बीफ़े को गाना !”पल्टू ने त्योरियाँ चढ़ाते हुए कहा |
“बाबा हम लड़के को पठा कर,सबको कहलवा देते हैं |”मुकरी ने बात सम्भालते हुए कहा
“ठीक है !अब कथा शुरु करते हैं - - - -
प्राचीन काल से ही गुरु महाराज की कथा कहने-सुनने का विधान है तथा इसको कहने-सुनने से जीवन की सब कठिनाई दूर हो जाती हैं,धन-ऐश्वर्य एवं वंश की उन्नति होती है |व्रत-पूजा रखने वाले को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ,पीले वस्त्र पहनकर,केले की पूजा करना कथा कहना तथा गुड़-चने का प्रसाद प्राप्त करना चाहिए |- - - -“
“बाबा ठहरिए,हम दोनों तो व्रत रखे ही नहीं |फिर तो कथा का प्रभाव - - - -“
“नहीं बच्चा ,तुमने अज्ञानता में यह अपराध किया है |इसलिए दयालु विष्णु भगवान तुम्हारी इस भूल को - - -“
“ठीक है बाबा ,पर बाबा हम दोनों के पास पीला वस्त्र हैं |अगर आप आज्ञा दें तो - - - -“
दुधारू गाय की लात भी भली |बम्बई से कमाकर लौटे यजमान को नाराज़ करना पंडित को सही नहीं लगा |इधर पशुनाथ पूरे टोले में अपने घर कथा और कथा-सुनने से प्राप्त यश का ढोल पीट आया था |
“बाबा कहते हैं जिसने कथा नहीं सुनी उस पर भारी विपदा आ सकती है |पूरी कथा सुनने वाले की सारी इच्छा पूरी होती है |”
जब यजमान चौके पर आए तो समय तीन के पार जा चुका था |इस बार पीला रंगा धोती-कुर्ता के साथ पल्टू पीले पट्टा की बमईया घड़ी पहना था और मुकरी पीली साड़ी जो पल्टू बम्बई से लाया था |तीन-चार जनानी भी तब तक आकर बैठ गईं थीं और खुसुर-फुसुर करने लगीं |
“पल्टू कौनों बड़ा हाथ मारा है !”
“डीजल टेशन पर रहता था |पेटिरोल में पानी मिलाकर बेचता था और कहाँ से इतनी लछमी आ गईं |”
“लक्ष्मी विष्णु जी की पत्नी है |विष्णु जी को खुश कर लिया तो लक्ष्मी खुद-बखुद खिंची चली आती हैं |अब कथा प्रारंभ की जाती है ”पंडित जी ने कथा-पुस्तिका खोलते हुए कहा
एक नगर में एक प्रतापी राजा सपत्नी राज करता था |राजा सदाचारी,धार्मिक,परोपकारी था |वह नित्यकर्म से वीरवार का व्रत रखता एवं विधि-विधान से कथा कहता-सुनता था वहीं रानी कृपण,आलसी व दुष्प्रवृत्ति की महिला थी |- - एक दिन एक साधू भिक्षा मांगने आया राजा नगर से बाहर था - - -- -रानी बोली कि महाराज दान-पुण्य के लिए मेरे पति ही बहुत हैं |रोज़ –रोज़ के दान से में तंग आ गई हूँ ,इससे तो अच्छा है कि ये धन ही नष्ट हो जाए - - -
ऐसा ही होगा बस तू मेरे कहे अनुसार करना |साधू के बताए अनुसार रानी तीन वीरवार सूरज निकलने के बाद जगी ,उसने सिर धोकर स्नान किया और राजा को जिद्द पूर्वक माँस-मदिरा का सेवन करवाया |शीघ्र ही उनका सारा धन समाप्त हो गया और वे दाने-दाने के मोहताज़ हो गए |इस पर राजा,रानी और उसकी दासी को वहीं छोड़कर,अपयश के डर से आजीविका कमाने के लिए दूसरे राज्य में चला गया और जंगल से लकड़ी काटकर बेचने लगा |”
“अरे !हम तो आज ही कपार धोए हैं |तभी तो दुलारी के काका और हमारे बीच झगरा होता रहता है |” वहाँ बैठी एक स्त्री दूसरे से बोली
“हमारे इहाँ तो कोई नियम ही नहीं |भीकू के काका को तो रोज़ मांस-मदिरा चाहिए - - - “
“हे विफे-महाराज दोष-पाप क्षमा करीं !”उनमें से एक ने हाथ जोड़ते हुए कुछ ऊँची आवाज़ में कहा
आवाज़ बाबा के कान में पड़ी तो वे मन ही मन प्रसन्न हो उठे और अपना स्वर तेज़ कर दिया-
“एक दिन भूख और बदहाली से तंग रानी ने अपनी दासी को पड़ोस में अपनी रानी बहन से पाँच मन अनाज के लिए भेजा |जब दासी रानी की बहन के पास मदद का आग्रह लेकर पहुँचीं तो वह विष्णु भगवान की पूजा में व्यस्त थी |दासी का धैर्य कुछ देर में जवाब दे गया और वो वापस लौट आई |पूजा समाप्त कर रानी की बहन सीधे उसके घर पहुंची और उसकी दशा जानकर उसे विष्णु भगवान का आह्वान करने को कहा |संस्कित रानी ने विष्णु जी का ध्यान किया तो उसे घर में रखा हुआ अनाज का एक घड़ा मिला |बहन की प्रेणना से वह नियम से व्रत रखने लगी और शीघ्र ही उसका खोया मान-सम्मान और धन लौट आया |फिर एक दिन उसने विष्णु जी से अपने पति के लौटने की प्रार्थना की - - - - -“
“हूँ तभी पांच बरस बाद पल्टू लौट आया - - -बड़ा प्रभाव है इस कथा में - - - “
“उ तो ठीक है चाची पर बहुत भारी कलेजा है मुकरी का इतना बड़ा राज़ दबाए रही |”
“का राज़ ?”
“इहे की इस कथा में इतना प्रताप है |हम जान जाते तो हम भी नहीं रख लेते |”
“नाहिं भाभी ई त डाह है ,कोई और टोला में ना बड़ बन जाए |देखती नहीं बमईया पियरी पहनकर कैसे देख-देख हँस रही है |”
“कथा के अच्छे परिणाम के लिए पूरे मन से कथा कहनी-सुननी चाहिए |” ऐसा कहते हुए पंडित जी ने शंख फूंक दिया
लकड़हारा बना राजा जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचता और कठिनाई का जीवन व्यतीत करता |एक दिन बीता समय याद करके वो जंगल में ही रोने लगा |तभी एक साधू प्रकट हुआ और बोला कि - - - - - इस तरह से प्रथम अध्याय समाप्त होता है |बोलो विष्णु महाराज की - -
“जSSय !”
“महाराज सुचना देर से मिली |अभी बाज़ार से लौटा ही हूँ और सीधे चला आया हूँ |पुण्य तो पूरी कथा सुनकर ही मिलता है ना !शुरु से कथा कहीं न !” जोखू यादव ने प्रवेश करते हुए कहा पंडित ने यजमान की तरफ देखा
“काका कह रहे हैं बाबा, त फिर से शुरु कर देई- - - -“
बाबा बेमन से फिर कथा शुरु करते हैं
- - - - - - -जहाँ राजा लकड़हारे को खाना खिलाता है उसी कमरे में रानी का सोने का हार टँगा होता है |देखते ही देखते हार खूंटी से गायब हो जाता है |राजा लकड़हारे को जेल में डाल देता है - - - -
“कौन जेह्ल में डाल देता है ?किसको जेह्ल में डाल देता है ?घर में इतना भीड़ काहे लगाए हो ?” बगल में भूजे की टोकरी दबाए ललता आजि प्रवेश करती हैं
“अरे पल्टू की आजि तुम्हारे घर सतनारायन की कथा है और तुम हो कि भूजा भूनाती फिर रही हो |”
“कैसा कथा ?हमे भी सुनना है ?”
“हाँ-हाँ क्यों नहीं माई इसमें क्या दिक्कत है वैसे भी आप तो घर की सबसे बड़ी हैं ?काहे महाराज हम ठीक कह रहे हैं ना |”जोखू यादव ने कहा
“ठीक कह रहे हो बच्चा |इसमें क्या परेशानी है ?”
और कथा पुनः प्रारंभ की जाती है
“कितना अन्याय है बाबा !बेचारा चोरी भी नहीं किया और जेह्ल भी मिला - - - -“
“जज हो क्या ?कुबुद्धि भगवान का पूजा भूल गया तो सजा नहीं मिलेगा क्या ?”
पूजा ही ना भूला ! कोई भगवान को गाली नहीं न दिया |इ त कौनों न्याय नहीं है |
“ - - - - -- - - - लकड़हारा कालकोठरी में रोने लगा तो फिर से साधू प्रकट - - - -“
“बाबा,लखन ने सारा कथा ही चौपट कर दिया फिर से कहिए न !”सुखिया चाची बोली
“हाँ-हाँ महाराज फिर से कहिए ना !”वहाँ बैठे सभी लोग ज़ोर देने लगे
कथा फिर से प्रारंभ होती है
“- - - - - -राजकुमार कहता है उसी लड़की से शादी करूँगा जो सोने के सूप में सोने का जौ बीन रही थी |- - - “
“क्या सोने का जौ,सोने का सूप !”प्रवेश करते हुए ललन ने कहा
“महाराज ये किस्सा फिर से सुनाईये न !”
“अबे मिट्टी के माधो !ये किस्सा नहीं सतनारायण महाराज क कथा है |और इसे शुरु से सुना जाता है तब बुद्धि खुलती है |क्यों महाराज ?”
“ठीक कह रहे हो बच्चा |” बाबा ने धीमे स्वर में कहा
“त महाराज फिर से कहा न !”
उर्जाविहीन पंडित फिर से कथा शुरु करते हैं |हाथ-घड़ी में पाँच से ऊपर का समय हो जाता है |पड़िया और भैंसे रंभा के बुलाहट शुरु कर देते हैं |अहीरों का ध्यान बार-बार उधर जाता और पंडित जी बार-बार ध्यान से कथा सुनने की महिमा बताते और ध्यान ना देने पर उसके दुष्परिणाम गिनाने लगते हैं |
“भगवान की माया से उसका व्यापारी पति और पुत्र उसे दिखाई नहीं देते और वह गहरी चिंता में पड़ जाती है - - - - -“
‘कल बेतार(रेडियो )पर भी कह रहे थे कि एक जहाज़ डूबा है |बाबा पोथी की कथा कह रहे हैं या रेडियो का किस्सा “
“चुप्प-चुप्प,कितनी बार कहें हैं कि बीच में मत बोलो - - - -बाबा सही कहते हैं तुम सबका बुद्धि बंद है |गाँव से बाहर निकलो तब न बुद्धि खुले |जिसको शांति से बैठकर ना सुना जाए वो घर जाए |”
कुछ लोग उठकर चल देते हैं बाकी चुपचाप वहीं बैठे रहते हैं
“अब कोई अड़चन नहीं है,आप फिर से शुरु करें बाबा |”पल्टू अधिकारपूर्वक कहता है
अभी कथा का एक भाग समाप्त हुआ ही था कि
“चचा,तोहार मरकही भैंसइया पड़वा के पियावत हिय |”
पल्टू चौके से उठकर भागा और कुछ देर में लौटा
“चलिए बाबा !फिर से शुरु कीजिए |”
बाबा ने साँस रोकते हुए –“बेटा अब तो सूरज ढल गया है और गदबेला में हमें सूझता भी नहीं है |कथा फिर कभी कह देंगे |आज तुम हमे जो सिद्धा-दखिना देनी हो दो,तो हम घर जाएँ |”
“बाबा बचपन में जब हम पाठशाला काम करके नहीं जाते थे तो आप हमें ईनाम देते थे या छड़ी ?जब कथा पूरी ही नहीं हुई तो कैसी दखिना वैसे भी हम पहले ही सवा रुपया पाँवलगी कर चुके हैं |”
“ठीक है बच्चा !दखिना अगली बार दे देना,हलवा-पूरी-बखीर जो बनाए हो वही परोस दो ताकि भोग लगा लें |”
छमा करें महाराज |आपने प्रसाद बनाते समय केवल पाँच सुहारी,मुठ्ठी भर हलवा और चुरन-चरणामृत बनाने को कहा था |वो सब तो यहीं रखा है |”मुकरी ने हाथ जोड़ते हुए कहा
बाबा वहाँ रखा चढ़ावा उठाए,पानी पिया और चलने को हुए तो मुकरी भीतर से डाली भर पिसान,चावल पुड़िया में हल्दी और गुड़ लेकर आई |
“महाराज सिद्धा ग्रहण करें और जो भूल-अपराध हो उसे क्षमा करें और विष्णु भगवान से हमारे लिए प्रार्थना करें |”
“और महाराज अगले बीफ़े कथा के लिए आ जाईयेगा |इस बार हम सारी तैयारी करके रखेंगे “पल्टू ने जोड़ा
“आशीर्वाद !
पर अगले बीफ़े हमे लगन कराने जाना है बच्चा |तुम ऐसा करो हनुमान पांडे को कह दो |” साईकिल पे पैडल मारते हुए बाबा बोलें और रफ़्तार बढ़ा दी
“पंडिताईन ,कुछ खाने को बनाई हो - - -?”
“सुबह का दाल-भात बचा है- - - -पर आप तो हलवा-पूरी का भोग लगाकर आने वाले थे सो - - -?”
“सतनारायन की कथा ना बनाओ जो है जल्दी से लाकर दो |” बाबा सतनारायन ने झल्लाते हुए कहा
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
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