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ग़ज़ल -- तू क्या बोले है ख़ुद अपने बारे में ( दिनेश कुमार )

22--22--22--22--22--2

बे-शक जन्नत होगी बलख-बुखारे में
छज्जू ख़ुश है अपने इस चौबारे में

दिले-मुसव्विर दुनिया की परवाह न कर
लोग तो नुक़्स निकालेंगे शह-पारे में

सारी बस्ती जल कर राख हुई देखो
थी चिंगारी एक सियासी नारे में

उसके नक़्शे-पा जब मील के पत्थर हैं
कुछ तो ख़ूबी होगी उस बंजारे में

तेरा काम ही चीख़ चीख़ कर बोेलेगा
तू क्या बोले है ख़ुद अपने बारे में

राजा बने भिखारी और भिखारी शाह
हश्र निहाँ हैं उसके एक इशारे में

मन की आँखें खुली हैं मेरी मुझको भी
नूर-ए-ख़ुदा दिखता है हर नज़्ज़ारे में

पुण्यों को पतवार बना और पार उतर
साँसों की कश्ती है वक़्त के धारे में

छोड़ सराबों का पीछा अब जाग 'दिनेश'
बीत न जाएं ये दिन रात ख़सारे में

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by रामबली गुप्ता on June 13, 2017 at 4:36pm
वाह वाह वाह आदरणीय भाई दिनेश जी। दिल से बधाई लीजिये इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए।

नूर-ए-ख़ुदा दिखता है हर नज़्ज़ारे में।

इस लाइन को इस प्रकार कर लें प्रवाह और बेहतर हो जाएगा-

नूर-ए-ख़ुदा है दिखता हर नज़्ज़ारे में

शेष सब शुभ शुभ
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2017 at 8:01pm
वाह वाह आदरणीय दिनेश जी बेहद शानदार ग़ज़ल हुई..सादर
Comment by Mohammed Arif on June 11, 2017 at 5:51pm
आदरणीय दिनेश कुमार जी आदाब, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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