२१२२ १२१२ २२
बात खाली मकान क्या करता
दास्ताँ वो बयान क्या करता
पंख कमजोर हो गये मेरे
लेके अब आसमान क्या करता
उसकी सीरत ने छीन ली सूरत
उसपे सिंघारदान क्या करता
रूठ जाते मेरे सभी अपने
चढ़के ऊँचे मचान क्या करता
नींव में झूठ की लगी दीमक
लेके ऐसी दुकान क्या करता
बाढ़ में ढह गये महल कितने
मेरा कच्चा मकान क्या करता
मौन सब थे निजाम की सुनकर
मैं चलाकर जुबान क्या करता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बाढ़ में ढह गये महल कितने
मेरा कच्चा मकान क्या करता
बहुत खूब जी , लाज़वाब
बहुत बहुत शुक्रिया आद० आशीष श्रीवास्तव जी
आदरणीय सी एम उपाध्याय जी आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत बहुत आभार शुक्रिया |
आदरणीया rajesh kumari जी ,
वाह वाह ! क्या खूब ग़ज़ल कही है !! मेरी दिली बधाई स्वीकार करें |
आद० विजय निकोर जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत आभारी हूँ |
बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है, आदरणीया राजेश जी। हार्दिक बधाई।
आदरणीय योगराज जी ,मेरी इस ग़ज़ल को फीचर करने के लिए कोटि कोटि आभार |
आद० हरि प्रकाश दूबे जी ,आपका बहुत बहुत आभार
मोहतरम जनाब तस्दीक अहमद जी ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया
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