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कहीं मलबा कहीं पत्थर कहीं मकड़ी के हैं जाले
कहानी गाँव की कहते घरों के आज ये ताले
किया बर्बाद मौसम ने छुड़ाया गाँव घर आँगन
यहाँ दिन रात रिसते हैं दिलों में गम के ये छाले
भटकते शह्र में फिरते मिले दो वक्त की रोटी
सिसकते गाँव के चूल्हे तड़पते दीप के आले*
कहाँ संगीत झरनों के परिंदों की कहाँ चहकन
निकलते अब पहाड़ों के सुरों से दर्द के नाले
लुटा सुख चैन सब अपना कहें किससे कहाँ जाएं
उधर वो चीखते पर्वत इधर चुप ये जहाँ वाले
कहीं सौगात खुशियों की मिले उनसे किसानों को
सहम जाते पहाड़ों पर घिरें बादल जहाँ काले
फकत मजबूरियाँ अपनी कलेजों पर धरे पत्थर
उसी को छोड़ना पड़ता हमें जिस गोद ने पाले
आले*=दीपक रखने का स्थान ,नाले=आहें ,पाले=पालन पोषण किया
----मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. राजेश मैम, अच्छी ग़ज़ल हुई है. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आ. समर सर की बातों से मैं भी पूर्णतः सहमत हूँ. उनकी टिप्पणी से मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला. इसके लिए मैं उनको हृदय से धन्यवाद देता हूँ. सादर.
आ० दीदी . बड़े बड़े लोग बहुत कुछ कह गए . आखिरी शेर से मैं भी मायूस हूँ आपका अभिप्राय तो समझ मे आता है पर ----हमें जिस गोद ने पाले-----आपको भी खटकता होगा शायद -----ससम्मान .
आद० गिरिराज जी ,गजल पर उपस्थिति व् बधाई के लिए दिल से आभारी हूँ बहुत बहुत शुक्रिया | मुझे कुछ शब्दों के विषय में लिख देना चाहिए था वो मेरी गलती हुई है
आद० समर भाई जी ,आपकी बातें शत प्रतिशत सही हैं आपके अंदाज में कहे मिसरे और परिष्कृत हो गए हैं हमें एक आयोजन में तुरत फुरत पहाड़ों के दर्द पर कुछ लिखने के लिए दिया गया था ये ग़ज़ल उस वक़्त का परिणाम है इसे आशु भी कह सकते हैं इसमें आपकी इस्स्लाह के अनुसार सुधार कर लूँगी मुझे कुछ शब्दों के अर्थ पहले लिख देने चाहिए थे ये मेरी गलती रही है | मार्ग दर्शन के लिए तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ भाई जी |
आदरनीया राजेश की , ग़ज़ल ले किये आपको हार्दिक बधाइयाँ .. आ, समर भाई जी की सलाह उचित है , गौर कीजियेगा । आँचलिक शब्द का निषेध नही है पर उसका अर्थ दे दिया जाना ज़रूरी होता है क्यों कि ये शब्द किसी अँचल विशेष मे प्रचलित होते हैं । वैसे हमारे छत्तीस गढ मे भी आला प्रचलित शब्द है ।
आद० समर भाई जी ,मुझे अफ़सोस है की ये ग़ज़ल आपको संतुष्ट नहीं कर सकी फिर भी अपनी बात स्पष्ट करुँगी
यहाँ गाँव के ताले से मेरा मतलब पूरे गाँव में ताले अर्थात लॉक से है घरों में लॉक लगाकर पहाड़ों से नीचे भाग आये हैं लोग वो ताले गाँव के तन्हाई की कहानी लिख रहे हैं | गोद ने पाले का मतलब जिस गोद ने पालन पोषण किया पहाड़ों की गोद |दीप के आले -मतलब गाँव में दीवार में जहाँ दीप रखते हैं वहां जो जगह बनाते हैं उसे आले कहते हैं ये एक आंचलिक शब्द है इनके अलावा इस काफिये में मुझे और उपयुक्त शब्द नहीं मिल सके बहुत साधारण बोल चल वाले शब्द ही इस्तेमाल कर पाई हूँ
यहाँ दिन रात रिसते हैं सभी के दर्द के छाले----पहाड़ों से घर बार छोड़ ने पर जो दिल पर घाव हुए हैं उन्हें छालों का बिम्ब देकर कहने की कोशिश की है
आद० रवि भैया ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया | यहाँ गाँव के ताले से मेरा मतलब पूरे गाँव में ताले अर्थात लॉक से है घरों में लॉक लगाकर पहाड़ों से नीचे भाग आये हैं लोग वो ताले गाँव के तन्हाई की कहानी लिख रहे हैं | गोद ने पाले का मतलब जिस गोद ने पालन पोषण किया पहाड़ों की गोद |दीप के आले -मतलब गाँव में दीवार में जहाँ दीप रखते हैं वहां जो जगह बनाते हैं उसे आले कहते हैं ये एक आंचलिक शब्द है | मेरे ख्याल से तो कोई शब्द एसा नहीं जो अपनी बात स्पष्ट नहीं कर रहा हो |
बृजेश कुमार जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
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