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2122 1212 1122 22

है कोई तिश्नगी जरूर तेरी आँखों में |
मीठे एहसास का सरूर तेरी आँखों में ||

जब भी देखा गया ये अक्स किसी दर्पण में ।
बे अदब आ गया , गुरूर तेरी आँखों में ||

ख़ास मुश्किल के बाद ही तेरे दर तक पहुँचा ।
कुछ उमीदें दिखीं हैं दूर तेरी आँखों में ।।

मैं तो हाज़िर था तेरीे एक नज़र पर साकी ।
बेसबब क्यो हुआ फितूर तेरी आँखों में ।।

जाम छलके नहीं है आज तलकभी तुझसे ।
है बड़ा कीमती शऊूर तेरी आँखों में ||

मंजिलो की तलाश में ये भटकती ख्वाहिश ।
देख ली जन्नतों की हूर तेरी आँखों में ||

हार बैठे थे जिंदगी के अंधेरों से हम।
मिल गया जिंदगी का नूर तेरी आँखों में ||

हो के बेचैन जब मैं तुझको भुलाना चाहा |
फिर दिखा है मेरा कसूर तेरी आँखों में ||

नवीन
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on July 17, 2017 at 6:01pm
आदरणीय नवीन जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने इसके लिए शेर दर शेर मुबारकबाद पेश है आखरी शेर में मैं तुझको भूलना चाहा की जगह मैंने तुझे भूलना चाहा जैसा कुछ वाक्य विन्यास के लिहाज से होना चाहिए देखिएगा ।सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 17, 2017 at 1:54pm
सुंदर... हार्दिक बधाई ।

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