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डुगडुगी बजती रही.......

डुगडुगी बजती रही.......

1.
गरजे घन घनघोर
प्रलय चहुँ ओर
तृण बहे
तन बहे
करके
सब को अशांत

फिर 
वृष्टि का तांडव
हो गया
शांत


2
बुझ गयी
कुछ क्षण जल कर
माचिस की तीली सी
जंग लड़ती
साँसों से
असहाय काया
अस्थि कलश में
सिमट गयी
मुट्ठी भर राख में
साँसों की
माया

3
तालियों के शोर
चिलचिलाती धूप
करतब दिखाती बच्ची
रस्सी से गिर पड़ी
साँसों से संघर्ष
भीड़ को
करतब लगा
तालियां बजी
सिक्के उछले
धूल में लिपटी
भूख भिखारिन
सिसकती रही
इक रोटी की आस में
ज़िंदगी को नचाती
डुगडुगी बजती रही


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 8, 2017 at 6:44pm

आदरणीय मो. आरिफ साहिब सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 8, 2017 at 6:44pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब , सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Mohammed Arif on August 7, 2017 at 8:42am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, बेहतरीन क्षणिकाएँ । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on August 6, 2017 at 12:23pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा क्षणिकाएं लिखीं आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
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