लौट आओ ....
बहुत सोता था
थक कर
तेरे कांधों पर
मगर
जब से
तू सोयी है
मैं
आज तक
बंद आँखों में भी
चैन से
सो नहीं पाया
माँ
जब भी लगी
धूप
तुम
छाया बन कर
आ गए
जब से
तुम गए हो
मुझे
धूप
चिढ़ाती है
छाया में भी
बहुत सताती है
पापा
डांटते थे
जब पापा
माँ
तुम मुझे
अपनी ममता में
छुपाती थी
डांटती थी
जब माँ
मुझे
पापा से
पैसे लेने पर
अधरों पे
हल्की सी
मुस्कान लिए
पापा
आप मुझे
अपने कांधों पर
उठा कर ले जाते थे
माँ
लौट आओ
मैं अब
पापा से
पैसे न लूँगा
पापा
अब लौट आओ
मुझे तुम्हारी
डांट
बहुत प्यारी है
सुशील सरना
Comment
आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी सृजन के भावों को मान देने का शुक्रिया।
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी सृजन आपकी प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब सृजन की भावुकता को अपने मृदुत शब्दों से प्रशंसित करने का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय विजय निकोर साहिब सृजन आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय रवि शुक्ला साहिब, प्रणाम। .. प्रस्तुति को अपनी स्नेहाशीष से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।
आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब , प्रस्तुति के मर्म को सहमति देती प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
आदरणीय मोहित मिश्रा (मुक्त) जी सृजन को अपने स्नेह से पोषित करने का हार्दिक आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
खूबसूरत
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