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गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल..मेरे दीदा ए नम में तू ही तू-बृजेश कुमार 'ब्रज'

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल
2122 1212 22
तेरी आँखें ज़हान की खुशबू
मेरे दीदा ए नम में तू ही तू

गीत ग़ज़लों में तू नुमायाँ है
तेरा ही चर्चा नज़्म में हर सू

याद किसकी शुरुर है किसका
किसलिये आँखों से रवां आँसू

तेरी जुल्फों की खुशबुएँ लेकर
कोई झोंका सबा का जाये छू

धर्म मजहब से ये हुआ हासिल
जल रहे हैं बशर यहाँ धू धु

राज है 'ब्रज' तेरी उदासी में
बेसबब आज फिर बहे आँसू
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 9, 2017 at 6:37pm
आदरणीय समर जी नमन स्वीकार करें..आपकी इंगित की हुईं कमियों में सुधार किया है।एब ए तनाफुर है लेकिन कोई बेहतर विकल्प सूझ नहीं रहा।साथ ही आदरणीय मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ये मेरी समझ नहीं आ रहा।दोनों मिसरों में किसी एक शख्स की और दोनों की आँखों की बात की गई है।हालाँकि उला में 'में' की कमी है लेकिन फिर बहर से खारिज होगी।आगे आपकी सलाह सर आँखों पे।सादर
Comment by Samar kabeer on September 7, 2017 at 11:23pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

"तेरी आँखें ज़हान की खुशबू
मेरी दीदा ए नम में तू ही तू"
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नही है,और दूसरी बात ये कि सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,'नम में'और ख़ास बात ये कि 'दीदा'पुल्लिंग है ।
दूसरे शैर के ऊला मिसरे में 'नुमाया' को "नुमायाँ" कर लें, सानी मिसरे में भी ऐब-ए-तनाफ़ुर है'नज़्म में'देखें ।

"याद किसकी है शुरुर किसका
किसलिये आँखों में रवां आँसू"
इस शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं और 'शुरुर'शब्द भी गलत है,ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं :-
'याद किसकी सुरूर है किसका'

और सानी मिसरे में 'में'की जगह "से" कर लें ।

"तेरी जुल्फों से खुशबुएँ लेकर
कोई झोंका सबा का जाये छू"

इस शैर में भाव स्पष्ट नहीं हैं ।

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