"मणिधर, ये 'गिफ्ट पैक' 222 नंबर में मैडम को दे आओ।" सिक्योरटी इंचार्ज का आदेश मिलते ही उसके मन में एक विचार कौंध गया था और कुछ क्षण बाद ही वह एक हाथ में 'गिफ्ट' और दूसरे हाथ में चटक लाल रंग का गुब्बारा लिये मैडम के दरवाजे पर था।
बहुत ज्यादा दिन नही हुए थे उसे, इस मल्टीस्टोरी फ्लैटों से सुसज्जित सुंदर सोसायटी में सुरक्षा गार्ड की ड्यूटी पर आये हुए। आते-जाते लोगों की निगरानी के बीच खाली समय में वह अक्सर फ्लैटों पर अपनी नजरें घुमाया करता था। और इसी बीच सातवें माले के उस कार्नर फ्लैट की बड़ी सी खिड़की के कांच से नजर आती उस बच्ची की गतिविधियाँ उसे आकर्षित करने लगी थी। खिड़की के शीशे से उसके हिलते हाथ और इशारों के बीच, वह उसे अपने बहुत करीब महसूस करने लगा था। सोसायटी गेट के बाहर खड़े गुब्बारे वाले के रंगीन गुब्बारों पर बच्ची की नजरें उसे कई बार बेताब कर देती थी।
"मैम, ये आपका गिफ्ट पैक!" पैकेट को आगे बढाते हुए उसकी नजरें बॉलकनी में खिड़की पर बैठी बच्ची पर जा लगी। "..... और ये बिटिया के लिये 'रेड बैलून' भी!" मैडम की किसी प्रतिक्रिया से पहले ही थोड़ा हिचकिचाते हुये उसने अपनी बात भी पूरी कर दी थी।
"थैंकयू भैया, लेकिन तुम मिन्नी को जानते हो?" व्यवहारिकता दिखाते हुये मैडम थोडा मुस्कराई थी।
"हाँ मैडम जी, हम अक्सर उससे बातें करते है, बहुत प्यारी बच्ची है।" कहते हुये उसके चेहरे पर एक ख़ुशी झलक आई।
"मैं समझी नही!" मैडम के चेहरे पर सहसा एक असमंजस उभर आया।
"जी, दरअसल खाली समय में, मैं खिड़की पर बैठी बिटिया से इशारों से बातें किया करता हूँ और वह अक्सर गुब्बारे वाले की ओर भी इशारा किया करती है। सो आज जब यहां आया तो मैं ये 'लाल गुब्बारा' उसके लिये ले आया।"
"क्या लाल और क्या गुलाबी?" खिड़की पर बैठी बच्ची की ओर देख, एक क्षण को बच्ची की माँ मुस्कराई लेकिन दूसरे ही क्षण उसकी आखों में दर्द उभर आया। "इन रंगो से हमारी मिन्नी को कोई फर्क नहीं पड़ता, उसकी जिंदगी में तो सिर्फ एक ही रंग लिखा हुआ है, 'अँधेरे' का रंग!"
"ये क्या कह रही है आप?" एकाएक गुब्बारा उसके हाथ से छूट गया। उसकी नम होती आँखें, खिड़की के कांच से चिपकी बच्ची पर जा टिकी जो कांच से छनकर आते सूर्य-प्रकाश को अपने चेहरे पर महसूस कर ऐसे आनंदित हो रही थी मानो यही उसका जीवन आधार हो।
विरेंदर 'वीर' मेहता
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
कथा पर प्रोत्साहन देती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कल्पना भट्ट जी, आपकी इस स्स्नेहिल टिप्पणी के लिए शुक्रिया .....कल्पना जी आपने भी भाई उस्मानी जी जैसा ही कुछ प्रश्न पुछा है.... दरअसल 'मणिधर' उस बच्ची के अपने आप मस्त रह कर खेलते हुए और करते हुए इशारे को ही अपनी और का इशारा समझ कर एक काल्पनिक आधार खींच लेता था. इसलिए जब उसे वास्तविकता का गया होता है, तब वह अच्म्भित रह जता है ..... सादर
कथा पर प्रोत्साहन देती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार भाई शेख शहजाद उस्मानी जी.... सूर्य प्रकाश को महसूस करने की बात आपने बिलकुल सही कही भाई उसमानी जी लेकिन रंगीन गुब्बारे को महसूस करने की अनुभूति पर मैं आपको बतान चाहूँगा कि ऐसा कुछ नहीं था दरअसल ये 'मणिधर' के अपने ही भाव थे जो शीशे में से दिखाई देती बच्ची से इशारों से वार्तलाप करके एक काल्पनिक आधार खींच लेता था. बच्ची तो बेचारी अपने ही अंधेरो में मस्त खेला करती थी... सादर.
हार्दिक आभार आदरणीया आशा सिंह जी रचना पर आगमन के लिए .
सादर.
हार्दिक आभार भाई आशुतोष मिश्र जी आपकी स्नेहिल टिप्पणी के लिए... सादर.
भाई अफरोज सहर जी कथा पर प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार जी. सादर.
कथा पर प्रोत्साहन देती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार भाई सलीम रजा जी. सादर.
इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय वीर जी | एक छोटी सी शंका है , खिड़की से कैसे वह गुब्बारे वाले की तरफ इशारा करती थी , क्या यहाँ यह दर्शा रहे है कि गुब्बारे की आवाज़ से या कुछ और ? कृपया अन्यथा न लेंगे | सादर |
इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय वीर जी | एक छोटी सी शंका है , खिड़की से कैसे वह गुब्बारे वाले की तरफ इशारा करती थी , क्या यहाँ यह दर्शा रहे है कि गुब्बारे की आवाज़ से या कुछ और ? कृपया अन्यथा न लेंगे | सादर |
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