मुट्ठी भर
ताकतवर
और बुद्धिमान
लोगों ने
इकठ्ठा किया
ढेर सारे लोगों को
और
आवाहन किया
कहा
"हमें इस धरती को
स्वर्ग बनाना है
और बेहतर बनाना है "
और हम
चल पड़े
तमाम जंगल काटते हुए
पहाड़ों को रौंदते हुए
नदियों को सोखते हुए
समंदर के सीने को
चीरते हुए
हज़ारों युद्ध लड़ते हुए
अपनों के ही खिलाफ
और अभी भी चले
जा रहे हैं
ये और बात
हमारी एंड़ियां ही नहीं
पैर भी घिस चुके हैं
पीठ झुक चुकी है
आँखों में मोतिया बिन्द
हो चूका है
धरती क्षत विक्षत
और आकाश लाल हो चुका है
पर हम
आज भी अडिग हैं
धरती को स्वर्ग बनाने
और बेहतर बनाने के वायदे पे
मुकेश इलाहाबादी -------------
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
aabhar mitra Afroz Sahr AUr Salim Raza Rewa jee Rachna Pasandgee ke liye
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