काफिया : आये ; रदीफ़ :न बने
बहर : ११२२-| ११२२ ११२२ २२/११२
२१२२}
तंज़ सुनना तो’ विवशता है’, सुनाये न बने
दर्द दिल का न दिखे और दिखाए न बने |
पाक से हम करे’ क्या बात बिना कुछ मतलब
क्यों करे श्रम जहाँ’ की बात बनाए न बने |
क्या कहूँ उनके’ हुनर की, है’ अनोखा अनजान
यही’ तारीफ़ कि हमको न सताए न बने |
कर्म इंसान का’ हो ठीक सितारा जैसा
कर्म काला किया’ तो चेहरा’ दिखाए न बने |
हाथ की रेखा’ बताती है’ कि आगे क्या है
मर्द तक़दीर जो’ बिगड़े तो’ बनाए न बने |
प्रेम करने गया’ था पर बना’ बेचारा बैर
नफरतों की जो’ लगी आग बुझाए न बने |
न हुई गंगा’ सफाई कई’ सालों के बाद
भक्त जाते हैं’ नहाने तो’ नहाए न बने |
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