For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की- सीने से चिमटा कर रोये,

२२, २२, २२, २२ 
.
सीने से चिमटा कर रोये,
ख़ुद को गले लगा कर रोये.
.
आईना जिस को दिखलाया,  
उस को रोता पा कर रोये.
.
इक बस्ते की चोर जेब में,
ख़त तेरा दफ़ना कर रोये.
.
इक मुद्दत से ज़ह’न है ख़ाली,
हर मुश्किल सुलझा कर रोये.

तेरी दुनिया, अजब खिलौना,
खो कर रोये, पा कर रोये. 
.
सीखे कब आदाब-ए-इबादत,
बस,,,, दामन फैला कर रोये.
.
हम असीर हैं अपनी अना के,
लेकिन मौका पा कर रोये.
.
सूरज जैसा “नूर” है लेकिन,
जुगनू एक उड़ा कर रोये.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1545

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2017 at 8:57am

आ. रामबली गुप्ता जी ,
.
बहरे-मीर में    मीर की ग़ज़ल 
पत्ता पत्ता बूटा बूटा का शेर देखें 
.

आगे उस मुतकब्बिर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं (१२१२)

कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर-ए-ख़ुद-आरा जाने है.
.
एक मतला और देखें मीर का 
.

इश्क़ हमारे ख़याल पड़ा है ख़्वाब गई आराम गया

जी का जाना हर हा है सुब्ह गया या शाम गया (१२१२)
.
शायद मैं आपको यकीन  दिला पाया हूँ कि मेरे मिसरे भी इसी बहर में हैं और ख़ारिज नहीं हैं ...
वैसे ये लघु -गुरु भी ग़ज़ल कहने वालों का काम नहीं है ....
ग़ज़ल वाले जब ग़ज़ल कह  लेते हैं तो उस की गैय्यता समझने समझाने के लिए ये सब प्रपंच रचा जाता है... लय शास्वत है ..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2017 at 7:53am

आ. रामबली गुप्ता जी,
.
मैं कुछ बातें  आप को स्पष्ट कर दूँ...
१) मेरी कोई तमन्ना नहीं  है कि मैं नामचीन रचनाकारों में शुमार होऊं.
२) मुझे उस्ताद बनने और कहलाने का कतई शौक नहीं है ..मैं  अपनी अंतिम सांस तक अच्छा तालिब-ए-इल्म बन पाया तो वही बहुत  होगा.
३)मैं अपनी ख़ुशी के लिए लिखता हूँ न कि अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए और यही कारण   है  कि लगभग तीन पुस्तकों में समाने   लायक ग़ज़लें होते हुए भी   मैंने छपने की कभी चेष्टा नहीं की. स्वयं  समर सर मुझे कई  बार मजमुए के लिए बोल चुके हैं.
४) छपास की भूख न होने के चलते मैं   बहुत कम रचनाएँ पोस्ट करता हूँ....पत्र-पत्रिकाओं में तो कतई नहीं भेजता.
५) ग़ज़ल कह पाने और विधान  समझने से  पहले मैंने क़रीब 250  रचनाएँ (लगभग २ पुस्तकें) और भी लिखीं थी जैसी आजकल अतुकांत, अछंद, छंदमुक्त  के नाम से धड़ल्ले से चल रही  हैं लेकिन मैंने ग़ज़ल का विधान समझ कर उन्हें कूड़ेदान के हवाले कर दिया.
खैर.... ये सब   बातें अपनी जगह ...  अब मात्रिक बहर पर लौटते हैं....
आप अगर ओबैदुल्ला अलीम और निदा फ़ाज़ली को प्रमाणिक  नहीं मानते तो ये आपकी समस्या है ...आप मीर की जगह दाग़ का हवाला माँगते तो मेरे लिए थोड़ा रिसर्च का विषय होता क्यूँ कि आधुनिक ग़ज़ल के ऐब  दाग़ साहब ने निर्धारित किये हैं.. मीर की कई ग़ज़लों में तकाबुले रदीफ़ या शातुर्गुरबा जैसे ऐब आम हैं क्यूँ की उस दौर   में भाषा ऐसी ही रही होगी या चलन वैसा होगा.

आपने मीर साहब  की ग़ज़ल "पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है" पढ़ी ही होगी. न पढ़ी हो तो पढ़ लीजिये... अच्छी ग़ज़ल  है.
बातें हमारी याद रहें फिर बातें ऐसी  सुनिएगा ..
चलते 
हो तो चमन को चलिए कहते हैं कि बहाराँ है...
इश्क़ हमारे ख़याल पड़ा है ख़्वाब गई आराम गया....
मौसम-ए-गुल 
आया है यारो कुछ मेरी तदबीर करो .... और भी कई हैं 
(वैसे मैं एक   बात लिखना भूल गया कि इस मात्रिक बहर  को  बहर-ए-मीर भी कहते हैं  ...  
इसी मंच पर आ.   वीनस केसरी जी का प्रमाणिक लेख उपलब्ध है ..लिंक में बिंदु (द)   देखिएगा 

http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5...


आपको हिंदी से भी एक उदाहरण देता चलूँ....
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार 
 सिन्धु  ने विष उगला है 
लहरों का यौवन मचला है 
ज ह्रदय में औ सिन्धु  में 
साथ उठा है ज्वार 

 

आयकर की छूट को समझकर उसका लाभ लेना यानी टैक्स चोरी नहीं होती ...
आशा है आप समझेंगे और लाभान्वित होंगे.

Comment by रामबली गुप्ता on October 6, 2017 at 6:54am
बहरे मीर पर एक पूरी ग़ज़ल जिसका मिसरा ओबीओ के तरही मुशायरे में रखा गया था आप देखें-

भूली बिसरी चंद उमीदें, चंद फ़साने याद आये
तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये

दिल का नगर शादाब था फिर भी ख़ाक सी उडती रहती थी
कैसे ज़माने ऐ गम -ए -जाना तेरे बहाने याद आये

ठंडी सर्द हवा के झोंके आग लगा कर छोड़ गये
फूल खिले शाखों पे नए और दर्द पुराने याद आये

हंसने वालों से डरते थे छुप छुप कर रो लेते थे
गहरी गहरी सोच में डूबे, दो दीवाने याद आये

इसमें भी आप कहीं 1212 या 2121=222 नही दिखा सकते
Comment by रामबली गुप्ता on October 6, 2017 at 6:40am
आद0 भाई नीलेश जी,
मै कविता के उन साधकों /रचनाकारों में नही हूँ जो किसी की भी पोस्ट पर यूं ही कुछ भी लिख दिया करते हैं। जो कुछ भी लिखता हूँ बहुत सोच समझ कर लिखता हूँ।
कल जब हम और आप भी नामचीन रचनाकारों में शुमार हो जाएंगे और हमें भी उस्ताद शायर आदि कहा जाने लगेगा तब हमारे ही उत्तराधिकारी नौसिखुए हमारी ही आज की त्रुटिपूर्ण रचनाओं का हवाला देकर ग़ज़ल/कविता के व्याकरण के नियमों को धता बताएंगे। काव्य की हर विधा के अपने नियम और व्याकरण हैं तथा सही और शुद्ध रचनाकर्म के लिए उनका पालन भी बहुत ही आवश्यक है। आपने जिन नामचीन शायरों का हवाला दिया है उनमें से किसी को भी मैं प्रमाणिक नही मानता। मात्रिक बहर के सम्बन्ध में अपनी बात को साबित करने के लिए यदि आपने मीर की किसी ग़ज़ल का हवाला दिया होता तो बात कुछ और होती। आपका कहना है कि उक्त के संबंध में अरूज़ की कोई भी किताब देखी जा सकती है या ओबीओ की ग़ज़ल की कक्षा में उपलब्ध लेख देखे जा सकते हैं तो आद0 नीलेश जी एक काम करें अरूज़ की कोई भी किताब जिसे आप प्रमाणिक मानते हो को फिर से उठाइये और देखिये या फिर से जाइये ग़ज़ल की उन कक्षाओं में और उसके किसी कोने से ढूढ़कर लाइए वो तथ्य जो यह प्रमाणित करता हो कि मुफाइलुन(1212) या फेल फेल/फाइलात(2121)को फेलुन × n के क्रम में रखना इस बहर के नियमों के मुताबिक सही है।
आपका कहना है कि किसी भी बहर में ये 12 सिर्फ अंक हैं तो भाई साहब ये आपके लिए अंक होंगे मेरे लिए लघु और गुरु हैं और जिस लय की आप कर रहे हैं वो इन्हीं लघु गुरु के विविध संयोजन और आवृतियों से तैयार होते हैं। और यदि सिर्फ लय की ही बात है तो ग़ज़ल ही क्यों गीत कविता छंद आदि भी बिना लय के नही होते फिर क्यों न इन्हें भी ग़ज़ल ही मान लिया जाय।

22 22 22 22

चार फ़ेलुन या आठ रुक्नी.

इस बहर में एक छूट है इसे आप इस रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

211 2 11 211 22(21/12 21/12 1/12 22)

दूसरा, चौथा और छटा गुरु लघु से बदला जा सकता है.


एक मुहव्ब्त लाख खताएँ
वजह-ए-सितम कुछ हो तो बताएँ.

(सोलह रुक्नी)

22 22 22 22 22 22 22 2(11)

यहाँ पर हर गुरु की जग़ह दो लघु आ सकते हैं सिवाए आठवें गुरु के.


दूर है मंज़िल राहें मुशकिल आलम है तनहाई का
आज मुझे अहसास हुआ है अपनी शिकस्ता पाई का.(शकील)

एक था गुल और एक थी बुलबुल दोनों चमन में रहते थे
है ये कहानी बिल्कुल सच्ची मेरे नाना कहते थे.(आनंद बख्शी)

पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है.(मीर)

और..

एक ये प्रकार है

22 22 22 22 22 22 22

इसमे हर गुरु की जग़ह दो लघु इस्तेमाल हो सकते हैं.

फ़ालुन फ़ालुन फ़ालुन फ़े.

22 22 22 2

अब इसमे छूट भी है इस को इस रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं

211 211 222


मज़हब क्या है इस दिल में
इक मस्जिद है शिवाला है

ओबीओ में आद्0 समर भाई साहब, आद0 मिथिलेश वामनकर जी, आद सौरभ पांडेय जी, आद गोपाल नारायण जी, भाई सुरेंद्र नाथ जी, आद0 वासुदेव शरण अग्रवाल जी, बहन राजेश कुमारी जी आदि जो भी मेरे रचनाकर्म के कारण मुझे जानते है वो ये भी जानते हैं कि मैं यूँ ही कुछ भी नही लिखता और यदि कुछ लिखा है तो बहुत सोच समझ कर लिखा होगा।और बावजूद इसके यदि आप अपने लिखे से संतुष्ट हैं, और आपको लगता कि आप सही हैं तो मुझे कोई आपत्ति नही। आप जैसा मन करे वैसे लिखें। ओबीओ की परंपरा के मुताबिक जो मेरा कर्तव्य था वो किया और अपनी राय रखी बाकी उन्हें मानान न मानना हर रचनाकार की अपनी स्वतंत्रता है।सादर

शेष सब शुभ शुभ
Comment by Afroz 'sahr' on October 5, 2017 at 9:48am
आदरणीय निलेश जी आदाब आपने अपने मिसरे ,,सदियाँ होंठ दबाकर रोये,,के संदर्भ में एक मिसरा ,,लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई,, का उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस मिसरे में इब्तिदा के स्थान पर लफ़्ज़ ,,लम्हों,,, बहूवचन में है तथा हश्व के स्थान पर लफ़्ज़ ,,,सदियों,,, भी बहूवचन में है । चूँकी मिसरे में ज़रब के स्थान पर रदीफ़ से ठीक पहले लफ़ज़े काफ़िया ,,सज़ा,, एकवचन में प्रयोग हुआ है इसलिए अरूज़ सम्मत होकर लफ़जे़ ,,,पाई,, भी एकवचन ही रहेगा।
अत: लफ़ज़े पाई उपरोक्त दशा में किसी भी सूरत ,,पाईं,, नहीं हो सकता। सादर,,,
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2017 at 6:12am
आ रामबली गुप्ता जी,
आप रचना पर आए और अपने बहुमूल्य विचार रखे इनके लिए धन्यवाद।
मात्रिक बहर में किन्ही भी 222 को 1212, 2121, 2112 करने की छूट रहती है और मैंने इसी का लाभ लिया है।
इस विषय में अरूज की कोई भी किताब देखी जा सकती है अथवा कक्षा में उपलब्ध लेख पढ़ें जा सकते हैं।
इस बहर में उस्ताद शाइरों की लाखों ग़ज़लें भी रेफेरेंस के काम आ सकती हैं।
कुछ दिन तो बसो मेरी यादों में ,,अलीम
गरज बरस प्यासी धरती पर,,, निदा
कभी कभी यूँ भी हमनें ,, निदा
किसी भी बहर में ये 12 सिर्फ अंक हैं। असली रूह है लय। अगर लय ठीक है तो बहर ठीक है।

आकाश भर बधाई के लिए आभार।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2017 at 6:00am
धन्यवाद आ सुरेंद्र भाई
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2017 at 5:59am
आ, समर सर,
जैसा मैंने अपने पहले कमेंट में कहा था कि मैं विचार करूँगा, मैं सदियाँ वाले शेर को कुछ सार्थक बनने तक ख़ारिज कर रहा हूँ लेकिन अन्य दोनों शेर यथावत रख रहा हूँ।
सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on October 5, 2017 at 5:03am
आद0 नीलेश जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कहीं आपने, शैर दर शैर बधाई। आपकी ग़ज़ल पर हुई चर्चा से हम सभी को सीखने को मिला।सादर
Comment by रामबली गुप्ता on October 5, 2017 at 12:36am
आड़0 भाई नीलेश जी वैसे तो मतले से लेकर मक्ते तक हर शेर बहुत ही दमदार और उम्दा है और इसके लिए मैं आकाश भर बधाई देता हूँ। किन्तु कहना चाहूँगा कि मतले से लेकर मक्ते तक तमाम शेरों में आपको परिवर्तन करना होगा ताकि वे निर्धारित बहर के अनुसार हो सकें। जी हां मै ये ही कहना चाहता हूँ कि आपके मतले से लेकर अधिकांश शेर बहर से खारिज हैं। आपकी पिछली ग़ज़ल जो फीचर्ड हुई है उसमें भी यही स्थिति है। मै आपको वहीं पर टोकना चाहता था किंतु पर्याप्त समयाभाव के कारण ऐसा न कर सका था। बाद में मैंने इस बाबत आपके व्यक्तिगत चैट बॉक्स के माध्यम बात करने का प्रयास भी किया था किंतु आपसे संपर्क न हो सका। वास्तव में बहरे मेरे की भी अपनी सीमाएं हैं। हम हर स्थिति में 'फेल फेल' को 'फेलुन फा' नही कर सकते। 1212 = 222 या 2121=222 लेना गलत है। मात्रिक बहर में हम सिर्फ 2112=222 ले सकते है। अन्य किसी स्थिति में नही।

खुद को गले लगा कर रोये,,,,आपने बहर लिया है फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन और इसमें आप लिख रहे हैं फेलुन मुफाइलुन फेलुन फा,,, ये गलत है।

इक बस्ते की चोर जेब में ,,,,इसमें आपने फेलुन फेलुन फाइलात फा लिया है जो निर्धारित बहर के अनुसार नही है। अन्य कई शेरों में भी इस प्रकार की कमियां हैं जो पर्याप्त सुधार की मांग करते हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service