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"सारा शहर दिवाली के जश्न में डूबा है और तुम किस सोच में डूबे हो" दिवाली की पूजा ख़त्म होने के बाद राहुल से मुलाकात करने गए उसके मित्र रोहित ने उसकी ओर मुखातिब होते हुए पूंछा।
" कुछ नहीं! दिवाली मनाते हुए तो सालों गुजर गए पर आज न जाने क्यों दिवाली मुझे मेरी पहली मुहब्बत सी लगी"
"वो कैसे"
" अरे!पहली बार मुहब्बत में आँखों को जो कुछ भी भाया था उसके खतरे को भी नाक ने सूँघा था और फिर सारा दर्द दिल को ही हुआ था। और आज आतिशबाजी देखकर नाक खतरे से आगाह कर रही है पर सारा दर्द सारी तकलीफ दिल को ही झेलनी है।" रोहित के कैसे का जवाब देते हुए राहुल ने कहा।
"यह तो वाकई चिंता का सबब है राहुल"
" बिल्कुल है, और जब मैं भागना चाह रहा हूँ तो ऐसा लग रहा है जैसे हवाएँ एक पुरानी फ़िल्म का गीत ....वादियां मेरा दामन रास्ते मेरी बांहे जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे ...मेरे साथ ठिठोली करके गा रही हो और मैं खुद को टाइटेनिक फ़िल्म में डूबते टाइटेनिक की डूब चुकी मंजिल से ऊपर की मंजिल की तरफ भागता हुआ महसूस कर रहा हूँ।"
रोहित को अपने बिचारो से सहमत होता देख राहुल नेअपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा
" लेकिन राहुल अब क्या होगा.....इससे कैसे बचा जाए" रोहित की चिंता बढ़ रही थी।
" बचा जाये! नहीं रोहित अब टाइटेनिक फ़िल्म का वो दृश्य ध्यान में लाओ जिसमे डूबते जहाज की ऊपर की मंजिल पर बैठ कोई शख्स जहाज के डूबने से बेपरवाह वॉयलिन बजाने में व्यस्त था। तुम भी आओ और इस जहरीली हवा में साँस लेते हुए इस घड़ी सोचने से ज्यादा किसी भी तरह जी लेने में विश्वास करो।एक तरफ दाने दाने अन्न और साफ़ पानी को तरसते बाल वृद्ध नर -नारी और दूसरी तरफ अरबों रूपये में आग लगाकर मौत परोसते मौत के इन सौदागरों के कृत्य...अब इन्हें ही तुम अपनी नियति मान लो" एक दार्शनिक की तरह मुखर होते राहुल बोले जा रहा था
" सरकार इस पर कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाती है। धर्म और परंपराएं जीवन के लिए है जब जीवन ही नहीं रहेगा तो क्या करेगा धर्म क्या करेंगी परंपराएं। " रोहित आक्रामक रुख के साथ कह रहा था।
" कौन सी सरकार, कौन से सख्त कदम...आखों पे पट्टी बांधे न्याय की देवी ने न्याय की बात करते हुए रोक लगाई तो थी पटाखों पर.....कितना हंगामा किया था ठेकेदारों ने...न्याय की देवी की आखो से पट्टी हटाकर न्याय के नाम पर हुए क्रियान्वन को देखने तक की हिम्मत नहीं हुयी"राहुल के स्वर में आक्रोश झलक रहा था।
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 20, 2017 at 1:18pm
बहुत बढ़िया विचारोत्तेजक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा साहब। वाक्य संरचनाओं को थोड़ा छोटा/सरल किया जा सकता है, रुचिकर प्रवाह के लिए। सादर।

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