लघुकथा - क़लम की ताक़त –
देश के मशहूर लेखक श्रीधर को सरकार की ओर से कुछ विशेष लेखन कार्य हेतु निमंत्रण पत्र आया। चूँकि सरकारी मामला था अतः श्रीधर उसकी अवहेलना नहीं कर सके और दरबार में हाज़िर हो गये।
सरकार के प्रधान ने श्रीधर से एकांत में चर्चा की,
"श्रीधर जी, हम चाहते हैं कि देश के समस्त नामचींन समाचार पत्र और पत्रिकाओं में आप हमारे बारे में लिखें। हमारी उपलब्धियों का बखान करें"।
"सर जी, यह तो बहुत मामूली कार्य है। इसे तो कोई भी ऐरा गैरा नत्थू खैरा पत्रकार कर देगा"।
"लेकिन हम यह कार्य आपसे ही करवाना चाहते हैं"।
"सर जी, इसकी कोई खास वज़ह"?
"हाँ, इसके पीछे बहुत बड़ी वज़ह है"।
“सर जी, आप अपनी बात ज़रा खुल कर बतायें तो बेहतर होगा"?
“श्रीधर जी, इसके पीछे दो कारण हैं। एक तो यह कि आप की लेखनी की तेज़ धार आम आदमी में ऐसी छाप छोड़ चुकी है कि वह इसे ब्रह्मवाक्य मानता है| दूसरी वज़ह यह कि हम आपको आपकी क़ाबिलियत के लिये पुरुस्कृत करना चाहते हैं"।
"सर जी, मेरी लेखनी से सच्चाई लिखी जायेगी और वह आपके पक्ष में नहीं जायेगी"।
"श्रीधर जी, आपको कोई कष्ट नहीं करना। हम आपको लिखित सामग्री उपलब्ध करायेंगे। बस आप उसे अपने नाम से छपवायेंगे। उसके बदले आपको मुँह माँगी उपाधियाँ,धन दौलत, सुख सुविधांयें दी जांयेंगी"।
"यानी कि आप मेरी क़लम को खरीदना चाहते हैं"।
"अब आप सही समझे"।
"मान्यवर, यह भूल कभी मत कीजिये। जिस दिन क़लम की ताक़त को गिरवी रख लिया जायेगा उस दिन यह देश रसातल में चला जायेगा"।
"श्रीमान जी, आप देश की चिंता छोड़िये।आज के बाद आप का क्या होगा, यह सोचिये"?
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी।
वाह वाह क्या सुन्दर कथा हुयी है , बेहतरीन
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी।आपकी राय से मैं सौ फ़ीसदी सहमत हूँ।आपने जितनी गहराई से आज के माहौल का खाका वह खींचा है वह विचारों को आंदोलित करने वाला और प्रेरणा दायक है।इससे मेरी लघुकथा की सोच को और बल मिलता है।पुनः आभार।
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब।जब तक आपकी टिप्पणी नहीं आती, मुझे मेरी मेहनत अधूरी सी लगती है।पुनः आभार।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।आपकी विस्तृत विवेचना से मैं अभिभूत हो गया।मेरा प्रयास होगा कि कुछ और अच्छा अंत करूं।पुनः आभार।
हार्दिक आभार आदरणीय नीलेश शेवगाँवकर जी।आपकी सोच से मैं काफी हद तक सहमत हूँ।मगर अब तो तीर कमान से निकल चुका है।फ़िर भी मैं कोशिश करूंगा कोई सुधार करने की, यदि संभव हुआ तो।पुनः आभार।
हार्दिक आभार आदरणीय सलीम राज़ा रेवा जी।
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