तरही ग़ज़ल अल्लामा इकबाल जी का मिसरा
“ तेरे इश्क की इम्तिहाँ चाहता हूँ “
काफिया : आ ; रदीफ़ :चाहता हूँ
बहर : १२२ १२२ १२२ १२२
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कभी दुख कभी सुख, दुआ चाहता हूँ
इनायत तेरी आजमा चाहता हूँ |
'वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहता हूँ
तेरे इश्क की इम्तिहा चाहता हूँ |
जो’ भी कोशिशे की हुई सब विफल अब
हूँ’ बेघर मैं’ अब आसरा चाहता हूँ |
ज़माना हमेशा छकाया मुझे है
अभी मैं उसे जीतना चाहता हूँ |
'दिये हैं बहुत दुख ज़माने ने मुझको'
मैं’ तेरी कृपा की दवा चाहता हूँ |
तू’ ने क्यों बनाया यही विश्व ब्रह्माण्ड
छुपे राज़ को जानना चाहता हूँ |
निरपराध जो है, उसे क्यों सज़ा हो
बता अब तेरा फैसला चाहता हूँ |
'रिवाज आदमी ने सभी हैं बनाए'
अहितकर सभी तोड़ना चाहता हूँ |
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब, "बेवफाई " शब्द है ,तो मुझे लगा वफाई भी होगी " शब्दकोष देखा उसमे नहीं था | आपसे सुनिश्चित करने के लिए ही मैंने इसको लिखा | अब मालुम हो गया | विस्तृत विश्लेषण के लिए हार्दिक आभार आपका | संशोधन कर फिर प्रस्तुत करता हूँ | सदर आदाब
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी कमियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए धन्यवाद | अभी बह्र में है | सादर नमन
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