For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अभी इक आदमी बाक़ी है जो इंकार कर देगा"

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन

अगर वो मुफ़लिसी को रौनक़-ए-बाज़ार कर देगा
कई महरुमियों को बर सर-ए-पैकार कर देगा

सभी ने कर लिया इक़रार, लेकिन जानता है वो
अभी इक आदमी बाक़ी है जो इंकार कर देगा

किताबों में लिखा है उसको जन्नत की बशारत है
वफ़ा की राह में क़ुर्बान जो घर बार कर देगा

मिलाएगा अगर हर बात में जो हाँ में हाँ उसकी
उसे नीलाम वो इक दिन सर-ए-बाज़ार कर देगा

हमारे इश्क़ का चर्चा अभी सरगोशियों तक है
जो बाक़ी काम है वो सुब्ह का अख़बार कर देगा

पुराने ज़ख़्म दिल के भर चुके,अब देख लेना वो
हमारे वास्ते पैदा नया आज़ार कर देगा

अगर आमाल की उसके मज़म्मत की नहीं हमने
हमारा साँस लेना भी "समर"दुश्वार कर देगा
----
महरूमी-ना उमीदी,मायूसी,नाकामी
बर सर-ए-पैकार-जंग के लिए तैयार
बशारत-ख़ुश ख़बरी
सर गोशियों-काना फूसी
आज़ार-दुख, तकलीफ़
आमाल-अमल का बहुवचन
मज़म्मत-निंदा

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1438

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on November 25, 2017 at 9:04pm
जनाब सुरेन्द्र कुमार शुक्ला जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on November 25, 2017 at 4:48pm

जनाब समर जी बेहद उम्दा  गजल। .उर्दू के लफ्ज कभी हमें परेशान करते हैं कम ज्ञान जो है  फिर भी आनंद लेता हूँ। .बधाई 

भ्रमर ५ 

Comment by Samar kabeer on November 4, 2017 at 10:11pm
जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Hariom Shrivastava on November 4, 2017 at 10:00pm
वाहह,वाहहहहह,लाजवाब गजल। सभी ख्याल एक से एक बढ़कर।
Comment by Samar kabeer on November 4, 2017 at 9:58pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on November 4, 2017 at 9:57pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on November 4, 2017 at 9:55pm
जनाब बलराम जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on November 4, 2017 at 9:54pm
जनाब गजेन्द्र जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on November 4, 2017 at 9:52pm
जनाब मनोज कुमार अहसास साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on November 4, 2017 at 9:51pm
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और दाद-ओ-तहसीन के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
16 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service