काफिया : आला . रदीफ़ : है
बह्र : २१२ १२२२ २१२ १२२२
हाथ में वही अंगूरी सुरा,पियाला है
रहनुमा का’ मन काला, शक्ल पर उजाला है |
छीन ली गई है आजीविका, दिवाला है
ढूंढ़ते रहे हैं सब, स्रोत को खँगाला है ||
आसमान पर जुगनू, चाँद सूर्य धरती पर
धर्म कर्म सब कुछ, भगवान का निराला है |
सब गड़े हुए मुर्दों को, उखाड़ते नेता
अब चुनाव क्या आया, भूत को उछाला है |
राज नीति में रिश्तेदार ही, अहम है सब
वो कहीं बहन भाई, या हबीब साला है |
समतलों में सब मस्जिद चर्च, बात है अद्भूत
उस पहाड़ पर जो कोठी, वही शिवाला है |
वो बड़ी बड़ी आँखें, प्रेयसी की हैं कातिल
शोख वो नयन लगते, चश्म- ए- गज़ाला है |
है समानता मन्दिर और, मद्य खाने में
बारहा चढ़े जो ‘काली’ के’ सिर, वो’ हाला है |
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समीर कबीर साहिब आदाब , सही कहा आपने , तकतीअ के समय उधर ध्यान नहीं गया | उसको ठीक करके दुबारा पेश करता हूँ | आदाब
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