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टेसू तुम क्यों लाल हुए......संजीव वर्मा 'सलिल'

नवगीत:-

टेसू तुम क्यों लाल हुए?

संजीव वर्मा 'सलिल'

*

टेसू तुम क्यों लाल हुए?

फर्क न कोई तुमको पड़ता

चाहे कोई तुम्हें छुए.....

*

आह कुटी की तुम्हें लगी क्या?

उजड़े दीन-गरीब.

मीरां को विष, ईसा को

इंसान चढ़ाये सलीब.

आदम का आदम ही है क्यों

रहा बिगाड़ नसीब?

नहीं किसी को रोटी

कोई खाए मालपुए...

*

खून बहाया सुर-असुरों ने.

ओबामा-ओसामा ने.

रिश्ते-नातों चचा-भतीजों ने

भांजों ने, मामा ने.

कोशिश करी शांति की हर पल

गीतों, सा रे गा मा ने.

नहीं सफलता मिली

'सलिल' पद-मद से दूर हुए...

*


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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 21, 2011 at 9:58pm

इस नवगीत के लिये आचार्यवर मेरी बधाइयाँ.

रचना के दूसरे बंद में आपने बहुत कुछ पिरोने की कोशिश की है. इस बहुरंगी गुलदस्ते के लिये मेरा धन्यवाद स्वीकार करें.

Comment by Shanno Aggarwal on June 18, 2011 at 9:27pm
इंसान ही इंसान के जीवन में विष घोल रहा है..इन भावनाओं को बखूबी उंडेला है आपने अपनी रचना में, सलिल जी. हमेशा की तरह ही उत्तम रचना की प्रस्तुति की है. .
Comment by sanjiv verma 'salil' on June 16, 2011 at 2:41pm
dhanyavad.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 16, 2011 at 10:42am

आदम का आदम ही है क्यों

रहा बिगाड़ नसीब?

 

बहुत ही खुबसूरत नवगीत, भाव पक्ष बहुत ही मजबूत लगा, बधाई आचार्य जी |

कृपया ध्यान दे...

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