दोहरा
पत्नी पर पराई-दृष्टी से
होकर खिन्न
डांट कर कहता
तू लोक लाज विहीन
“चल भीतर |”
_______________
पड़ोसिन को सामने पा
स्वागत में मुस्कुरा
गाता हूँ-तिनक धिन-धिन
आप सा कौन कमसिन !
खड़ा रहता हूँ-बाहर |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
रचना को आशीष देने के लिए आप मनीषियों का साधुवाद
बहुत सुन्दर कटाक्ष आ सोमेश कुमार जी
जनाब सोमेश जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
सुंदर व्यंग आदरणीय सोमेश जी
वाह। बेहतरीन कटाक्षपूर्ण क्षणिका-युग्म सृजन के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय सोम प्रकाश जी।
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