बापमाँ (संसमरण-कथा)
19 मार्च 2017
एम्स के नेत्र वार्ड में दाखिल होने की सोच ही रहा था कि फ़ोन फिर से बज उठा |
बिटिया गोद में थी पत्नी ने फ़ोन जेब से निकाला,देखा और काट दिया |
“ कौन था ? ” “लो,खुद देखों -- -“
बिटिया को हाथ से छिनते हुए उसने फ़ोन बढ़ा दिया |
“विवेक-मधु |” स्क्रीन पर नाम दिखा |
पहले भी मिसकॉल आई थी | मैंने माहौल को हल्का करने के लहज़े से कहा |
“तीन-चार रोज़ से तो यही सिलसिला है |” पत्नी ने तीर छोड़ा
“वो परेशान है !”
“सबकी परेशानी का जिम्मा ले रखे हो |”
पत्नी की बात अनसुनी कर मैं भीड़ से थोड़ा बाहर निकला
“नमस्ते-नमस्ते, आधार की एक कॉपी और स्कूल-सर्टिफिकेट की नकल बैंक में देकर,मनेजर से अपनी एप्लीकेशन पर स्टंप-साईन ले लेना और उसे लेकर स्कूल चली जाना |अगर फिर भी काम ना हो तो मैं कल स्कूल में मिलूँगा |”
“आज आ जाते तो --------मैंने आज छुट्टी करी है,सुबह से बैंक,स्कूल के कई चक्कर हो गए |”
“मैं अपनी बेटी को दिखाने अस्पताल आया हूँ |मालूम नहीं कब तक फ्री होऊंगा ! “
“क्या हुआ सर !कोई सीरियस बात ?” “आँखों की कोई दिक्कत है - - - -“
“ठीक है ,मैं किसी और को साथ ले जाती हूँ ,
अगर फिर भी काम नहीं हुआ तो फिर कल आती हूँ | - - -नमस्ते !”
मैं जब तक फ़ोन रख के लौटा पत्नी बिटिया को लेकर वार्ड में जा चुकी थी |मैं भी वार्ड में दाखिल हो गया | मैं पत्नी की तरफ जाकर उसे ईमेल दिखाते हुए बोला –“सभी बच्चों का बड़े स्कूल में दाखिला करवाना मेरी जिम्मेवारी है |देखों बड़े स्कूल वाले कागजों में नुक्स भी निकाल रहे हैं और हमे मीमो भी भेज रहे हैं |”
“ज़रा इसे पकड़ो,लिए-लिए हाथ दुखने लगा “ बिटिया को मुझे पकड़ा पत्नी बैंच से उठ गई |
22 मार्च 2017
तीन दिन बाद –“सर मैं विवेक की मम्मी बोल रही हूँ |”
“हाँ,बोलो मधु |” “नमस्ते जी |”
“नमस्ते,क्या हुआ ? आज भी काम नहीं बना |”
“नाम तो लिख लिया उन्होंने |----------पूछ रही थी कि अब और कुछ तो नहीं देना होगा - - - - -“
“बैंक में जाकर करेक्शन अपडेट करवा लेना और स्कूल में दे देना - - - - - -मीणा जी ने और तंग तो नहीं किया |” मैंने छेड़ते हुए कहा
“सर्टिफिकेट देखकर बोले बाप का नाम नहीं है |”
“फिर ! “
“माँ का नाम तो है !!|” मैंने भी गुस्से से कह दिया और फिर वो कुछ नहीं बोले
“अच्छा सर,शुक्रिया ! आपको बहुत परेशान किया |अगर कोई गलती हुई हो तो क्षमा कीजिएगा |”
“कैसी बात करती हो ! ये मेरी ड्यूटी है |इसी बात की तो तनखा लेता हूँ |अगर भविष्य में भी कोई जरूरत हो तो - - - - मेरा मतलब विवेक से सम्बन्धित तो झिझकना मत |”
“सर इसकी ही तो चिंता है |जैसे-जैसे बड़ा हो रहा है जिद्दी होता जा रहा है |कल की हि बात है -मैं चाबी देकर काम पर चली गई जब लौटी तो दरवाज़ा खुला था और ये गली में छक्के-चौके - - - - वो भी मकान-मालकिन के बच्चों के साथ |”
“खेलना भी तो जरूरी है |फिर अभी तो नई क्लास में गया है और अकेले सारा दिन बोर भी तो हो जाता होगा |”
“वो बच्चे आपस में गंदी-गंदी गाली देते हैं| - - - - - - फिर घर में टी.वी. है |खाना बना के रख जाती हूँ |दोपहर में एक बजे से पहले लौट आती हूँ और शाम को भी इसके घर आने से पहले आ जाती हूँ |तीन-चार घंटे ही तो होते हैं |”
एकदम से शांति छा जाती है |मैं फ़ोन की स्क्रीन देखता हूँ |जियो की एक बार फिर साँस उखड़ गई थी |
22 नवम्बर 2016
“सर! आपने इसे घर क्यों भेज दिया ? अगर रास्ते में कुछ हो जाता तो - - - - मैं काम से लौटी तो देखा कि बैठा रो रहा था |ये ठीक नहीं है |” गुस्से से भरे हुए उसने पसीना पोंछते हुए कहा |
“ये मेरा अनुशासन है |जो बच्चा छुट्टी करेगा उसके घर से या तो फ़ोन या मैसेज आए या उसके मम्मी-पापा खुद मिलकर छूट्टी की वजह बताएँ - - - - - देखों आज भी दो लोगों के घरों से फ़ोन आया है |”
“इसे बुखार हो गया था और मेरा फ़ोन खो गया है | क्या इसने आपको बताया नहीं !”
“बताया था पर जो लोग धोखा देते हैं उन पर भरोसा करना - - - “
“भरोसा नहीं था तो खुद फ़ोन कर लेते - - - मैंने इसे दीदी(जहाँ काम करती थी ) का नम्बर दिया था - -और ऐसा क्या कर दिया हमने |”
“मेरे पास इतने फालतू पैसे हैं क्या ! रोज़ पांच-छह लड़के छुट्टी मारते हैं |- - -|तुम्हें दिक्कत है तो इसको गुप्ताजी की क्लास में कर देता हूँ |”
“मैं तो विवेक को लेकर आई थी |इतनी बारिश के बावजूद एक घंटे स्कूल में रही |आपको फ़ोन भी करवाया था मैडम से - - -”
“तो मुझ पर कौन सा एहसान है ! अपने बेटे के लिए आई थी |और कम्पटीशन भी बारिश के चलते एक दिन आगे बढ़ा दिया गया और इसकी सूचना भी मैंने तुम्हें भिजवाई थी ईशांत से - - - - “
“मुझे लगा कि फिर वही कहानी ना हो और आप तीसरी में भी इसके साथ ऐसा कर चुकें हैं |बच्चे का बार-बार दिल टूटता है - - - “
“तब भी मैंने साफ़ बताया था इसे कि अगर हिमांशु और सतीश आ गए - - - -तो तुम्हें नहीं ले जाऊँगा और इस बार तो मैंने इसे कविता के लिए पक्का किया था |दस बच्चों को तैयार करने के बाद इसको चुना था - - - - -तुम्हें क्या पता कि जब नाम लिखवाकर बच्चे नहीं जाते तो अधिकारी हमें कैसी खरी-खोटी सुनाते हैं |”
“अब आपको जो करना हो कीजिए |मैं ना फ़ोन कर पाऊँगी ना रोज़-रोज़ आ सकती हूँ |”परास्त सिपाही की तरह वो विवेक को वहीं छोड़ लौट गई और मैं ग्लानि से भर उठा|
तभी –“सर ! बड़ी मैडम बुला रही हैं |” “पवन जी !मधु को क्या कह दिया आपने ? रो रही थी मेरे पास आकर |कल अनिल बंसल के घर भी गई थी, फ़रियाद लेकर | उनके पड़ोसी के यहाँ काम करती है |वो भी मुझसे कह रहे थे | “मैडम मैंने अकेले उस पर तो ये नियम नहीं लगाया |फिर ऊपर से आदेश है कि बच्चों की हाजिरी बढ़ाओ,लगाम ढीली करने से तो दिक्कत हो गाएगी |”
“ज़्यादा टाईट करना भी तो ठीक नहीं - - - - -अकेली दुखियारी है - - -जैसे-तैसे मेहनत करके अपने बच्चे को पाल रही है - - - - -वैसे भी माहौल अच्छा नहीं है - - - -लोग कान भर दें और किसी अफसर या नेता के सामने ही खड़ी हो गई तो फिर आप ही जवाब देना |जानते हो ना आजकल आम आदमी का हो-हल्ला है |”
“समझ गया,मैडम “
“कमीनी !” मन ही मन बुदबुदाते हुए मैं क्लास की तरफ बढ़ गया |
11 अक्टूबर 2015
"जल्दी-जल्दी काम उतारों |सिर्फ आधे घंटे बचे हैं |” चॅाक बेंच पर रख कर मैं क्लास से बाहर गैलरी में आया |उमस से राहत पाने के लिए मैं खिड़की के पास खड़ा हो गया |तभी मधु जीने से आती दिखी | दम लेती हुई बोली-“नमस्कार !”
“नमस्ते जी ! आप तो अभी से बूढ़ी हो चली हो |दो सीढ़ियों में ही ऐसी हालत |अभी तो बहुत लड़ाई लड़नी है |बहू आ जाएगी तो तुम तो पहले ही घुटने टेक दोगी |”
“सर लड़ने की किसकी इच्छा है |बस इज्जत से दो रोटी मिलती रहे - - - - - और ज़िन्दगी पे क्या भरोसा करना - - - - जहाँ काम करने जाती हूँ उनके नीचे फ़्लैट में एक भाभी थीं |चालीस के आसपास |परसों रात में अचानक दर्द उठा और अस्पताल जाते-जाते - - - !” उसका चेहरा बोलते-बोलते पीला पड़ गया |
“तुम बीमार हो ?” “तीन-चार दिन से रह रह कर बुखार चढ़ जाता है |- - -दवा ली है – डाक्टर ने कहा कि आराम नहीं हुआ तो जाँच करानी होगी - -बुखार उतरा है तो चली आई |”
“ओह ! तो आज चाँद बीमार है |खैर हमारी तो ईद हो गई |” मैंने माहौल को हल्का करने के लिए कहा |
“क्या सर ! यहाँ मरी जा रही हूँ आप को मज़ाक सूझ रहा है |ये बताईये अपने स्कूल में कब चलेंगे ? यहाँ तो तीन-तीन सीढियाँ चढ़ते-चढ़ते ही बीमार हो जाएँगे |”
“दिसम्बर तक सुन रहा हूँ |पार्षद मर गया ना,यहाँ का ! वरना वो तो पन्द्रह अगस्त वहीं मनवाने वाला था - - - अच्छा तो विवेक को ले जाना है ? ”
“वो तो है |विवेक के बारे में कुछ बात करनी थी |” उसके चेहरे पर हताशा-निराशा एक साथ घिर आई “हाँ-हाँ बताओ |”
“सर ! ये लड़का मेरे हाथ से निकल रहा है |मेरी बात ही नहीं सुनता |चार दिन से ट्यूशन नहीं जा रहा |”
“तुम बीमार हो ना इसलिए |”
“इसके घर में रहने से मुझे कौन सा सुख है ! उल्टा दिन भर टी.बी. देखेगा और अगर मैं बोल दूँ तो मुझे ही जवाब दे देगा |पढ़ने को बोलती हूँ तो कहता है स्कूल से काम नहीं मिला |”
“मै तो जो स्कूल में कराता हूँ,वही घर से करना होता है |”
उसके हमले से खुद को बचाते हुए मैंने जवाब दिया “
मैं आपको दोष नहीं दे रही |पर ट्यूशन वाली तो पूरे पैसे लेगी ना ! और पैसे कोई पेड़ पर तो उगते नहीं |” “मैं समझा दूँगा- - - -बच्चे बहुत शोर कर रहे हैं |” कहकर मैं क्लास की तरफ चल दिया
“समझाती हूँ- - - - पढ़ लिख ले- - - - आदमी हो जाएगा- - -और किसके लिए मैं दिन-रात जलती हूँ |” उसकी बड़बड़ाहट कानों तक पहुंचती गई और तभी टन-टन-टन-टन |
11 अक्टूबर 2016
असेम्बली खत्म होने के बाद फ़ोन पर मिस्काल दिखी | “सर मैं मधु,विवेक की मम्मी- - -“ “हाँ,बोलो |”
“नमस्ते,सर “ “मैंने ये पूछने के लिए फ़ोन किया है कि विवेक स्कूल पहुँचा कि नहीं |आज काम पे देर हो गई थी |पांच रोटी बना के रख गई थी पर सारी की सारी पड़ी हैं | - - - -टिफ़िन भी यहीं पड़ा है |“
“फ़िक्र मत करो ,स्कूल मैं खाना आता है,एकाध टिफ़िन भी अलमारी में होगा - - -मैं खिला दूँगा |”
“एक बात और बोलूं - - - - -पूछूँ |”उसने गले को साफ़ करते हुए धीमे स्वर में पूछा
“हाँ-हाँ |“ “क्या मैं अच्छी माँ नहीं हूँ ?- - -विवेक कल कह रहा था कि आप गंदी हो|”
“ऐसा क्यों ?” “30 रुपए माँग रहा था |बोला कि स्कूल में दीवाली-पार्टी है ?” मैंने कहा कि सर से बोल देना अभी नहीं है |मम्मी बाद में दे देगी| बस इसी बात पे चिल्लाने लगा कि आप हर बात पे रोकती हो |ना पापा से मिलाती हो | ना नानी के घर जाती हो |आपके पास पैसे भी नहीं होते |
“पैसे की कोई बात नहीं |कुछ बच्चे हर बार ऐसा करते हैं |इसकी तो ऐसी शिकायत नहीं है |तुम आराम से भिजवा देना और नहीं भी मिलेगा तो कोई बात नहीं |”
“सर मुझे इतना नीचे मत गिराइए |” उसने छटपटाते हुए कहा
“अर- -रे ,मेरा वो मतलब नहीं था |”मैंने अपनी जीभ दबाते हुए कहा |
“सॉरी सर ,आपको परेशान करती हूँ ,नमस्कार “ और मेरी प्रतिक्रिया से पहले ही फ़ोन कट गया |
21 फरवरी 2015
हाजिरी लेकर मैं दफ्तर की तरफ चला तो देखा कि वो उषा आंटी(सफाईकर्मी ) के पास बैठी बतिया रही थी | मुझे देखते ही खड़ी होकर बोली-“नमस्ते !”
“बताईये | आज ऊँट इस करवट - - -ओह सॉरी-ओह सॉरी ,चार फीट मैंने ऊपर से नीचे तक उसे देखा - - - गाय - - -इधर कैसे ?”
“क्या सर आप भी कैसे-कैसे मज़ाक करते हैं |विवेक टिफ़िन घर भूल आया था वही देने आई थी |”
“सर आप क्यों तंग करो हो,बेचारी को ?”
“बेचारी |काहे की !- - - - - मेहनत करती है,कमाती है,ना लूली है ना लगड़ी है - - - आप भी आंटी |”
कहकर मैं ऑफिस की तरफ बढ़ गया और जब पन्द्रह मिनट बाद लौटा तो वो क्लास-रूम के बाहर खड़ी थी |
“सर,आपसे कुछ बात भी करनी थी |”
“हाँ-हाँ |”
“मुझे विवेक का समझ नहीं आता |क्या दिमाग है इसका ! |ऐसी-ऐसी बेवकूफियां करता है कि - - - - - “
“क्या कर दिया इसने ?”
“वो जहाँ रहती हूँ ना,वहाँ नया किरायेदार आया है - - -इससे दोस्ती बढ़ा रहा है - - -कल इसके लिए जहाज लेकर आया - - -मैंने इसे पहले कहा था कि वो आदमी अच्छा नहीं है|उधर मत जाना - - - पर चार-पांच रोज़ से देख रही हूँ कि मेरे जाते ही उसके पास चला जाता है - -- - कल डांट लगाई है तब से मुँह सड़ाए है |”
“तुम्हें कैसे पता कि वो आदमी गंदा है !
” “वो जिस तरह से घूरता है - - -फिर विवेक भी कह रहा था कि मम्मी वो भईया आप के बारे में पूछ रहे थे - - - “
“और कुछ बताया विवेक ने ?” “यही कि तुम्हारी मम्मी कितनी सुंदर हैं |तुम कितने अच्छे हो |वगैरह-वगैरह - - - - फिर आज खुद ही बोलता है कि मुझे भी भईया गंदे लगते हैं- दिन भर पता नहीं कैसी-कैसी फिल्म देखते हैं - - - मैं नहीं जाऊँगा अब कभी |”
“फिर क्या दिक्कत है ?” “डर लगता है |कहीं बहक ना जाए |”
“चलो मैं उससे बात करूँगा |पर एक बात पूछूँ “
“हाँ |” “तुम कोई फैसला क्यों नहीं लेती ?या तो दलदल से निकलो या दलदल का कमल हो जाओ |”
“मतलब ?”
“शादी या तलाक |”
“ये सब इतना आसान है क्या !” उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया
“हाँ,देखों ,सरकार की योजना है –मध्यस्ता-केंद - - - - जहाँ पर समाजसेवी संस्था की मदद से तुम दोनों एक निर्णय ले सकते हो |और कोई खर्चा भी नही है बस दोनों का आमने-सामने होना जरूरी है |”
“वो नहीं मानेगा और अगर मान भी गया तो क्या बदल जाएगा |”
“तुम्हारे बच्चे को बाप का नाम मिल जाएगा - - - - - - -क्या तुम्हें ये सवाल कचोटता नहीं है ? - - - - - - -आखिर हर जगह तो पूछते हैं ”
“शुरु मैं लगता था - - - - जैसे किसी ने बिजली की नंगी तार थमा दी हो पर अब- - - - - - आदत हो गई है |”
“तुम्हें नहीं लगता कि तुम विवेक के साथ अन्याय कर रही हो ?आज वो चुप्प है पर कल बड़ा होकर तो सवाल करेगा फिर - - - -“
“सवाल तो वो अब भी करता है |बोल देती हूँ वो बाप नहीं जानवर है - - -- उसने मुझे जिन्दा जलाने की कोशिश की - - - -और अब भी तो पीछा करता है - - - - -!” उसका चेहरा स्याह हो गया था और आँख शुष्क |
यूँ लगा जैसे किसी झील का सारी पानी निचोड़ लिया गया हो और उसकी जमीन जगह-जगह से बिखरने लगी हो |
एक गहरा उच्छ्वास लेकर मैंने फिर बात को बढ़ाया “इसलिए तो तलाक और दूसरी शादी जरूरी है |”
“कौन करेगा शादी ? और कर भी लेगा तो क्या गारंटी है कि वो मेरे विवेक को अपना बेटा मानेगा |”
“तुम 25-26 से ज़्यादा की नहीं हो |खुबसूरत हो |कोई ना कोई विदुर,बाल-बच्चे वाला अकेला मिल ही जाएगा |”
कहने को तो मैं ये बात कह गया पर फिर लगा मुझे ये उपदेश देने का क्या अधिकार ?
विधुर और एक बच्चे का पिता होने के बावजूद मैंने कौन सा बनारस वाली उस एक बच्ची की माँ का रिश्ता स्वीकारा था |
“अच्छा,अब मुझे क्लास पढ़ानी है ,लगता है प्रिंसिपल राउंड पर निकली हैं |”
22 अगस्त 2013
“नमस्ते जी |”
“नमस्ते-नमस्ते |” “विवेक को ले जाना था |”
उसके हाथ में बदरंग सा छाता था और उसी तरह उसका चहेरा |यूँ लगा कोई नौसिखिया कैनवास पर बेतरतीब ढंग से कूंची चलाकर सुस्ता रहा हो |
“अभी तो छुट्टी होने में पौन घंटा है !”
“क्या भेज नहीं सकते ? “ “अभी क्लास में काम दिया है |”
“ओs ह - - - -काम के सिलसिले में गई थी - - - - फ्री हो गई तो सोचा कि - - - - -- “
“ काम बना ? ” “ एक हफ़्ते बाद बुलाया है - - - - - आप की जानकारी में है- - - - कोई- - -कमरा |”
“देखों, मैं तो इस कॉलोनी में रहता नहीं - - - हाँ याद आया - - क्लास में एक बच्चा है सचिन | उसकी मम्मी ने यहीं स्कूल के पीछे कमरा लिया है |वहाँ एक और कमरा है - - -उसकी मकान-मालकिन ने पूछा था उससे |”
“वैसे अभी जहाँ रह रही हो वहाँ क्या दिक्कत है ?”
“छोटे भाई की शादी तय हो गई है | सोचती हूँ कल भाभी आकर मुझे अपनी लौंडी बनाए |उससे पहले अपना बन्दोबस्त कर लूँ |”
“क्या डेट निकल गई ?”
“अभी टीका हुआ है |” “तुम्हारे माँ-बाप ,भाई भी यही चाहते है ?” “बाप तो हैं नहीं------माँ खुद घर-घर खट के अपनी रोटी कमाती है -- - - - -बड़े भाई गुड़गाँव में रहते हैं यहाँ से कोई लेना-देना नहीं- - - - मँझला भाई भाभी की पुछल्ला - - - -अब छोटे की भी शादी हो रही है तो फिर - - - - -“
“किसी ने कुछ कहा ?”
“मैंने खुद ही कह दिया - - - - और ये भी कह दिया कि मेरे पैसे लौटा दो |”
“तुम्हारे पैसे ?”
“हाँ ! उधार लेकर दिए थे - - - - माँ का रसौली का ऑपरेशन होना था- - - -डेढ़ साल होने को आया- - - - नाम ही नहीं लेते - - - - -भाई कहता है कि भाग थोड़े रहा हूँ - - - फिर तू भी तो यहीं रहती है- - - - तेरी भी तो माँ है |”
“पर क्या निकलने से दे देंगे ?”
“देंगे क्यों नहीं - - - - मुझे भी तो देने हैं - - - पांच घरों में काम करती हूँ तब जाकर महीने के पांच हज़ार होते हैं - - - -क्या मेरा खर्च नहीं है - - -- विवेक का खर्च नहीं है |” क्रोध-निराशा-स्वाभिमान के मिश्रित भाव जैसे एक ही कैनवास पर उतार दिए गए हों |
“क्या अकेले रह लोगी ? समझ रही हो ना मेरी बात |”
“समझती हूँ |पर अब वहाँ रही तो घुट-घुट के मर जाऊँगी |”
“मैं तो ये राय नहीं दे सकता |जगह-जगह बगुले ताक लगाए बैंठे है |कहीं धोखा मत खा जाना |- - - -हर तरफ आदमी कुत्तों की तरह सूंघते घूमते है - - - -और तुम्हारी जैसी औरते आसान टारगेट होती हैं - - - -अपनों का साया जरूरी है – बाकि तुम्हारी मर्ज़ी ”
“जब अपने घर में ही बगुले हों तो बाहर का डर क्या ! और जो कुत्ता काटने आए उससे पहले ही पत्थर चला दो |- - - - - - वैसे भी बचपन में मास्टर जी का सिर फोड़ चुकी हूँ |”
“क्या उन्होंने कुछ गलत - - “ मैंने सकपकाते हुए कहा
“कुछ नहीं |काम नहीं करके गई थी |चोटी पकड़कर सिर घुमा दिया - - - - और जैसे छूटी मैंने भी अध्धा उठाकर उनकी पीठ पर चला दिया और जो भागी तो फिर स्कूल नहीं गई |” ऐसा कहते हुए उसका चेहरा गुलाबी हो आया
“मेरे पिताजी और सास भी मेरी ज़िन्दगी तबाह करने पर लगे थे ?”
“कैसे ?” “वो कमीना ! इसका बाप - - - तो पहले ही लड़ के घर से भाग गया - - - - मुझे मारने की कोशिश के बाद --- उस समय ये पेट में था - - - -मेरे बाप और सास ने इसके पैदा होते ही इसे मेरी बड़ी नन्द को देना चाहा - - -“
“क्या उनके कोई सन्तान नहीं थी ?”
“अब भी नहीं है |अपना पैसा दिखाकर मेरे बच्चा छीनना चाहती थीं - - - इसीलिए उजाड़ है - - - -‘
“पर इसमें तुम्हारे पिताजी-सास का क्या लाभ ! मेरे विचार में तो उन्होंने तुम्हारे भविष्य के ख्याल से ऐसा सोचा था |”
“एक माँ का भविष्य उसके बच्चे के बिना !
“आप भी ऐसा सोचते हैं |वो घायल हिरणी सी लग रही थी |मैंने देखा कि आसमान से एक-एक बूंद टपकने लगी थी |नौसिखए का कैनवास गहरा स्लेटी हो चला था |माहौल को हल्का करने के लहज़े से मैंने उसे छेड़ा
“फिर तो मुझे खतरा है - - - मैं भी एक मास्टर हूँ - - -“
“ये तो आप पे निर्भर करता है |” उसने सपाट शब्दों में कहा और मैं मुस्कुरा दिया |
आकाश में घिरे बादल उसकी सहमति में जलवर्षा करने लगे |नौसिखए का कैनवास धुलने लगा |
“देखूँ ! विवेक ने काम किया या नहीं |” कहकर मैं वहाँ से निकल लिया
22 अप्रैल 2013
मैंने रजिस्टर में आगे देखा, पीछे देखा |पर मेरी समस्या का समाधान नहीं हुआ |अंत मैं सीधे दाखिला-इंचार्ज के पास गया |
“मैडम,आप ने तो मेरी फजीहत कर दी |ये विवेक नाम का लड़का है इसके बाप का नाम ही नहीं लिखा आपने - - - “
“देखूँ तो ! “ उन्होंने प्रवेश-क्रमांक मिलाते हुए कहा
“अरे ! इसने अपने पति यानि कि विवेक के बाप का नाम तो लिखवाया ही नहीं है |”
“क्या ऐसा संभव है ?”
“अब तो कोर्ट का आदेश है ! वैसे,क्या बाप ही सब कुछ है - - -माँ जो इतना कष्ट झेलती है - - इतना त्याग करती है उसका नाम क्यों नहीं ?क्या इससे तुम्हारी पितृ-व्यवस्था को ठेस लगती है ?”
“मुझे इन बहस में नहीं पड़ना |ये बताओं बाप की जगह N/A लिख दूँ |”
“नहीं ,बाप की जगह इसका नाम लिख दो |”
“ठीक है |”
“पर उसने बाप का नाम लिखवाया क्यों नहीं ?”
“ये तो उसी से जाकर पूछो - - - - हाजमोला लो | “ उन्होंने व्यंगात्मक ढंग से पूछा और आत्मरक्षा में,मैंने बोतल से एक गोली निकाली और निगल गया और उस रोज़ से मेरे पेट में ऐसा गोला बना जो कई किस्तों में बाहर आया पर खत्म नहीं हो सका |
26 अप्रैल 2013
मैंने प्रवेश रजिस्टर चैक किया – नाम-विवेक जन्मतिथि-28 अप्रैल 2006 पिता- ------- माता- मधु जाति- यादव |मैं निराश हो गया |यह स्त्री किसी काम की नहीं |मेरी दुनिया उस समय नई-नई वीरान हुई थी |उत्तरदायित्त्व में बेटा मिला था और अपने बेटे की भावी माँ को खोज निकालने का दायित्त्व मैंने स्वयं के कंधे पर ले लिया था |और इसके लिए मैंने वैवाहिक-साईटों से लेकर अख़बार तथा साथियों से लेकर रिश्तदारों तक से अपनी इच्छा का बेशर्मी से प्रचार कर दिया था |और जब विवेक के नाम में पिता का नाम नहीं पाया तो एक अज़ीब सी अवसरवादिता मुझे मधु की और आकर्षित करने लगी | उसकी जाति मेरे लिए दीवार थी | मेरे अंदर बेशक उसे तोड़ने का बल ना रहा हो पर उसे धक्का मारकर कमज़ोर करने का जूनून अवश्य था और उसी जूनून की परिणाम है –“मधु”
22 मार्च 2017
फ़ोन में सिग्नल आ चुके थे |
मैंने उसी नम्बर को रिडायल करके कहा- “मधु तुम एक बहुत अच्छी माँ हो |जो तुम कर रही हो उतनी हिम्मत सबमें नही होती |बस इसी हिम्मत से बढ़ते जाओ - - - और सुनो - - - खुद को सिर्फ माँ मत समझो - - - तुम एक बाप-माँ हो |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित ) रचना तिथि -18/06/17
Comment
अकेली माँ की पीड़ा,कितनी विपरीत परिस्थतियों से दो चार होती है वह ।अकेले बच्चे की जवाबदेही बड़ी कुशलता से चित्रण किया है आपने बधाई आद० सोमश जी ।
आद0 सोमेश जी सादर अभिवादन, बहुत रोचक और बेहतरीन ढंग से सब घटना आँखो के सामने लाने का प्रयास किया है आपने।बहुत बहुत बधाई आपको।
शुक्रिया भाई Sheikh Shahzad Usmani जी ,रचना पढ़ने और उसे अपनी अमूल्य टिप्पणीयों से सराहने के लिए |
वाह.. और आह !!!! इस बेहतरीन सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सोमेश कुमार जी। सभी पात्रों के साथ साथ 'मैं' की भी पीड़ा, दायित्वों और भूमिकाओं को चित्रित करती बेहतरीन विचारोत्तेजक संस्मरण कथा... ऐसी कथा जिसमें हर संस्मरण, हर तिथि में तीखी लघुकथा समायी हुई है।
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