For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तौल-मोल के “लव यू “(कहानी )

तौल-मोल के “लव यू “

10 अक्टूबर 2009

 

मुझे लगता है-“अब हमें उठना चाहिए |”

उसने सहमति में सिर हिलाया और पुनीत वापस परिवार वालों के पास आ बैठा |

“क्या पसंद है !” दीदी ने धीरे से कानों में पूछा  और पुनीत ने ‘ना’ में सिर हिलाया |

रास्ते में पिताजी ने झल्लाते हुए कहा-“नवाब-साहब कौन सी परी चाहिए ,बाप अच्छा खासा बुलेरो दे रहा था तीन तौला सोना |ये कहते हैं कि नौकरी-नौकरी |बड़े घर की औरतें क्या नौकरी करती जँचती है |वो आदमी ही क्या जो औरत की कमाई खाए |

“उसे टीचर की स्पेलिंग भी नहीं आती |नौकरी क्या करेगी वो !नौकरी ना सही नौकरी करने की क़ाबलियत तो होनी चाहिए ना |”पुनीत ने तर्क किया

“भोसड़ी वाला ,मास्टरी क्या पा गया अपने आपको डी.एम. समझ लिया है |गाँव का कायदा कानून नहीं जानता |इस तरह लड़की देखकर छोड़ना |जानते भी हो कितनी जग हँसाई है |लोग कितना बुरा मानते हैं |”

“मैंने तो जिद्द नहीं की थी |मैंने तो पहले कह दिया था कि अगर वो पढ़ी लिखी नहीं हुई तो मैं नहीं करूँगा शादी |”

“ए.म. तो कर रही है और रहा सवाल नौकरी का |उसके बाप का स्कूल है |कहीं ना कही तो सेट करा ही देता |”

“अब जाने भी दो |हमारा समय थोड़े ना रहा कि जिस खूंटे चाहा पगही बांध दी |वैसे भी क्या रिश्तों की कमी है हमारे पुनीत को |” अम्मा की लच्छेदार बात से मौहल कुछ ठंडा हुआ और फिर दूसरे प्रस्तावों पर विचार होने लगा |

20/08/08

“ पुनीत ,पर मुझें नहीं लगता तुम वो व्यक्ति हो जो मेरे सपनों को पूरा कर सके |” प्रज्ञा ने एकबार पुनीत की तरफ देखा और फिर मोबाईल पर बतियाने लगी |

“पर मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ,तुम्हारे बिना मैं टूट जाऊँगा,प्लीज़ प्रज्ञा |”

“तुम इममेचोयर हो ,मैं तुम्हें और नहीं समझा सकती,देखो मुझे बात करनी है प्लीज़ |” प्रज्ञा ने उससे दूर हटते हुए कहा और पुनीत वहीं जड़ हो गया |

25/08/08

“तू उसके लिए रो रहा है साsले !बट शी इज़ आ प्योर बिच |” सचिन ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

“डोन्ट एब्यूज हर |कम से कम मैंने तो उसे सच्चा प्यार किया था |” पुनीत ने खुद पर नियंत्रण रखते हुए कहा

वही तो बताना चाहता हूँ कि वो तेरे लायक नहीं है |कुछ दिनों पहले मैं और सुधा मैक-डी गए थे वहाँ पर मैंने उसे किसी और के साथ देखा था |

“तो क्या सिर्फ इसलिए की मेरे पास पैसे - - - - - - - - “

“वो मैं नहीं जानता | पर एक बात और बतानी थी |मेरे जन्मदिन के दिन जब हम माखनश्री में बैठे थे तो मैंने पाया कि रीमा जब मुझे खाना खिला रही थी तो प्रज्ञा की आँखे मुझ पर टिकी थी और वो बार-बार अपने पैरों से मेरे पैरों को मार रही थी |” अमित ने बताया

“नहीं ये तेरी गलतफहमी है |मैं नहीं मानता ये सब |” पुनीत वहाँ से उठ कर चला आया

27/01/09

“तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है

तेरे आगे चाँद पुराना लगता है |”

मोबाईल की ट्यून से ही पुनीत ने पहचान लिया कि प्रज्ञा है

“बोलो प्रज्ञा !कैसी हो |”

“फाइन,अच्छा ये बताओ,अभी कहाँ हो - - - - “

“घर पर ,क्यों ?”

“क्या तुम थोड़ी देर के लिए पाठक कालोनी में आ सकते हो |”

“श्योर |”

27/01/09(15 मिनट बाद )

“पुनीत,मुझे तुम्हारी हेल्प चाहिए |”

“मुझे इस कॉलोनी का बूथ-अधिकारी बनाया गया है |देखों कितनी लम्बी लिस्ट है |क्या तुम मेरी इस काम में मदद करोगे |”

“श्योर |”

“पुनीत तुम आज भी वैसे ही हो |अपनी ये मासूमियत,ये अच्छाई खोने मत देना,थैंक्स अगेन |” पाँचवे दिन प्रज्ञा ने जाते जाते कहा 

23/06/07

“क्या तुम भी मैथ से ग्रेजुएशन कर रहे हो ! फिर तो अच्छी बात है |अब तो हम चार-यार हो गए |पर बिना ट्यूशन तो नाव पार नहीं लगने वाली |” सेमिनार की आधी-छुट्टी में प्रज्ञा ने पुनीत की तरफ देखते हुए कहा

“ये समस्या तो अमित ही हल कर सकता है |” पुनीत ने अमित की तरफ देखते हुए कहा

“भाई का दोस्त है,अच्छी पकड़ है उसकी मैथ पर,कोशिश करता हूँ |पर रीमा से पूछ लो |” अमित ने प्रज्ञा की तरफ देखते हुए कहा

“मैं मना लुंगी घर पे |पर पहले नौं मन तेल तो हो तभी तो राधा------|”

सभी ठहाका लगाकर हँसते है |

17/08/07

“हेलो पुनीत “

“ये कलेक्शन तुमने खुद बनाया है |”

“हाँ,क्यों तुम्हें सॉंग पसंद नहीं आए |”

“मैं तो नाच रही हूँ |अच्छा ये सुनों-‘मेरा दिल भी कितना पागल है,ये प्यार तो- - - - - -‘ “

“तुम कुछ खा रही हो ?”

“इमरती |”

“यार पहले ही इतनी मोटी हो |तुम्हें एवोइड करना चाहिए ये सब |”

“मीठा तो बनता है ना ! फिर मम्मी का प्यार |अच्छा रखती हूँ |बाद में बात करती हूँ |”

22/01/08

“पुनीत मुझे एग्जाम फॉर्म भरने है |साऊथ कैम्पस चलोगे !”प्रज्ञा ने फ़ोन पर पूछा

“ठीक है ,मुझे भी सेनाभवन जाना है |एन.डी.ए. का इंटरव्यू लेटर आया है |”

“वाओ,ग्रेट,वैसे पता है मेरी इच्छा है कि मैं किसी सेना-अधिकारी की पत्नी बनूँ |कितनी शानदार लाइफ़ होती है |नौकर-चाकर,गाड़ी और ऊपर से रौब |पर पापा हैं कि बैंक मनेजर खोज रहे हैं |”

 

 “ठीक है 10 बजे डी ब्लॉक जनकपुरी स्टैंड पर मिलते हैं |”पुनीत की आँखों में चमक आ गई

“क्या बस से चलोगे !” प्रज्ञा ने पुनीत की तरफ देखते हुए पूछा

“मेरी जेब तो इनता ही एलाउ करती है |वैसे भी बीस लाख की गाड़ी का मज़ा ही कुछ और है |”पुनीत  ठहाका लगाते हुए रूट न.-711 में सवार हो गया और मुँह लटकाएं प्रज्ञा भी पीछे-पीछे बस में आ गई  

“यार,इफ यू  डोन्ट माइंड ,ओटो के पैसे मैं दे दूंगी पर बस से नहीं जा सकती |” वापसी के समय प्रज्ञा ने पुनीत की तरफ मुँह बनाते हुए कहा

“कोई बात नहीं,मैं ऑटो कर लेता हूँ |”

“वैसे पता है |पापा का प्लान शादी में मुझे ऑल्टो गिफ्ट करने का है |”प्रज्ञा ने पुनीत की तरफ देखते हुए कहा

“क्यों ,ये तो हम दोनों मिलकर बाद में भी खरीद सकते हैं |” पुनीत ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा

“प्लीज़ पुनीत,मैं तुम्हें अच्छा दोस्त मानती हूँ |इससे आगे नहीं “

“ अगर मैं एन.डी.ए. में सलेक्ट हो गया तो ?“

“देएन आई विल ट्राई माई बेस्ट |” प्रज्ञा ने सीधा जवाब दिया

“पर हमारी तो कास्ट भी मिलती है |”

“डोंट बिहेव लाईक अ चाइल्ड पुनीत |- - - - -सही टाइम आने दो ”  दोनों बिना एक दुसरे की तरफ देखे यात्रा पूरी करते हैं

17/02/08

“पुनीत,आज अपनी फ्रेंडशिप को छह महीने हो गए ,चलो कहीं सेलिब्रेट करते हैं |”प्रज्ञा ने दफ्तर से निकलते हुए और पुनीत को खींचते हुए कहा

“हम साथ मैं हैं और इससे बड़ा सेलिब्रेशन क्या हो सकता है ? ”

“वो तो ठीक है - - - पर कहीं आउटिंग के लिए चलते हैं --------चलो वेव में बहुत अच्छी मूवी लगी और वहीं पिंड-बलूची में लंच भी कर लेंगे |”

“बट- - - - -क्या तुम मुझे कुछ उधार दे सकती हो |”

“हाँ,ले लेना ------पहले चलो तो |” वो जोर देती हुई कहती है

लंच का बिल आने पर प्रज्ञा पैसे देने लगती है और पुनीत असहज महसूस करता है |

“मैं तुम्हें कल दे दूँगा |”

“तुम डफर हो क्या ------मैंने तुमसे पैसे माँगे -------ओ s हो!--------–मेल ईगो !टेंशन ना लो -------पापा हैं ना वो अपने बैंक से रिम्बर्स करा लेंगे-----------आखिर बैंक मैनेजर की बेटी हूँ-----ऐसा वैसा समझा है क्या |- - - - -- -वैसे पुनीत मुझे बाहर खाना,घूमना,मूवी देखना बहुत पसंद है ”

“मैं तो इसे फिजूलखर्ची मानता हूँ |”

वो उसकी तरफ गुस्से से देखती हैं और बिल के पैसे रख चल देती है और पुनीत उसके पीछे चल पड़ता है

03/05/09

“हाssय पुनीत !तुम यहाँ |” हाथों में काँच की चूड़ियों के साथ सोने के मोटे-मोटे कंगन,गले में महंगा हार और कानों में भारी कुंडल पहने प्रज्ञा डी.डी.ई. दफ्तर के बाहर अपनी बारी का इंतजार कर रही थी

“वेतन बिल में कुछ विसंगतियाँ थीं उसे ही ठीक कराने आया हूँ और तुम- - - “

:”यूरोप जा रही हूँ ,हनीमून पे - - -उसी की  परमिशन के लिए आई हूँ |”

“अच्छा,मुझे देर हो रही है |” कहकर पुनीत बाहर निकल आता है

08/12/09

“पुनीत,तुमनें मुझमें ऐसा क्या देखा ?ना तो मैं इतनी सुंदर,ना घर का मुझे काम ही ठीक से आता |” पुनीत की छाती पर हाथ फेरती निर्मल ने पूछा

“बेबी,अब सो जाओ,बहुत देर हो रही है,स्कूल समय से नहीं पहुंची तो फिर तुम्हारे प्रिंसिपल साहब को एक अद्धा देना होगा |” कहकर पुनीत करवट बदल लेता है

 

 

 

 

Views: 813

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by somesh kumar on December 17, 2017 at 4:33pm

रचना को पढ़ने और उस पर प्रतिक्रिया के लिए आभार |

जैसा कि आपक ने इंगित है कि रचना में कुछ अनुचित शब्दों का प्रयोग किया गया है और उसको संसोधित करना चाहिए |पर मुझे खेद है कि मैं साहित्य के इस मर्यादावादी दृष्टी से सहमत नहीं हूँ |मेरे विचार में साहित्य यथार्थवादी होना चाहिए |और समाज में जो होता है उसे दिखाना चाहिए --  - - - चूँकि समाज अपने आप में बहुत विस्तृत है और साहित्य उसका प्रतिरूप इसलिए जो होता है,जैसी भाषा समाज बोलता है उसको प्रयोग करना जरूरी है -------चूँकि भाषा भी समाज के साथ गतिशील होती है इसलिए भी समय,विधा,काल और सन्दर्भ के अनुसार भाषा ग्रहण करना जरूरी है ऐसा मेरा मानना है |

यद्धपि यहाँ हम आपस में असहमत हैं परंतु मेरे विचार में स्वस्थ लोकतन्त्र एवं अच्छे साहित्य के लिए ऐसी असहमति आवश्यक है |कृपया भविष्य में भी मार्गदर्शन देते रहें

साभार 

आपका अनुज 

Comment by Samar kabeer on December 16, 2017 at 4:57pm

जनाब सोमेश जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

जनाब सुरेन्द्र नाथ जी की बातों का संज्ञान लें ।

Comment by नाथ सोनांचली on December 14, 2017 at 1:54pm

आ0 सोमेश जी सादर अभिवादन। इस कहानी में कुछ शब्द उचित नहीं है, हो सकता मैं गलत हूँ, पर हमें यथासम्भव  गाली के शब्दो से बचना चाहिए। शेष कहानी के लिए शुभकामनाएं और बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
14 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service