(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फेलुन)
यूँ नहीं मैं ने ज़माने से बग़ावत की है |
मुझ से उस शोख़ ने बे लौस मुहब्बत की है |
दिल ने मजबूर बहुत कर दिया मुझको वर्ना
मैं ने कब मर्ज़ी से उस शोख़ की हसरत की है |
मुझ से उम्मीद वफ़ा की है उसी को यारो
उम्र भर जिसने मेरे साथ अदावत की है |
रहनुमाई के लिए मैं ने चुना था जिसको
हाए उसने भी मेरे साथ सियासत की है |
सोच लेना वो कोई ग़ैर नहीं अपने हैं
तुमने जिनसेमेरीमहफ़िल में शिकायत की है |
यक बयक हो गये तब्दील किसी के तेवर
मुझ पे क्या ख़ूब अज़ीज़ों ने इनायत की है |
करते फिरते हैं बुराई मेरी तस्दीक़ वही
मैं ने कब ज़ाहिरा उनकी कोई फ़ितरत की है |
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई
का बहुत बहुत शुक्रिया
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।आदाब ।बेहतरीन गज़ल।
रहनुमाई के लिए मैं ने चुना था जिसको
हाए उसने भी मेरे साथ सियासत की है |
जनाब अफ़रोज़ साहिब, हर शायर के सोचने का अंदाज़ अलग होता है ,ज़रूरी नहीं कि हर शायर एक तरह से सोचे । उस शोख की हसरत करने में आशिक़ की मर्ज़ी नहीं है मगर वो अपने दिल के हाथों मजबूर है ,इस लिए ऐसा करना पड़ रहा है । बाक़ी कोई किस तरह सोचता है ,इस पर किसी का कोई अख़्तियार नहीं होता---सादर
जनाब अफ़रोज़ साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत, मश्वरे और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
महरबानी करके बताने की ज़हमत करें कि शेर 2 मुहमिल कैसे है?
मेरे आखरीं शेर के सानी मिसरे का मफ़हूम साफ है जो आपकी समझ में नहीं आ रहा है । वो मेरी सबसे बुराई कर रहे हैं मगर मैं ने जो उनकी फितरत है ,उसे कब लोगों में ज़ाहिर किया है , आपके मिसरे के हिसाब से फितरत की जा रही है ,फितरत की नहीं जाती , यह तो होती है हर शख़्स की
अलग अलग । शायद आप समझ गए होंगे ।
मुहतरम जनाब कालीपद साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
आ तस्दीक अहमद खान साहिब ,आदाब बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें
जनाब महेंद्र कुमार साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online