काफिया : अम रदीफ़: देखते हैं
बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२
महात्मा जो हैं, वो करम देखते हैं
अधम लोग उसका, जनम देखते हैं |
बहुत है दुखी कौम गम देखते हैं
सुखी कौम गम को तो’ कम देखते हैं |
अतिथि मुल्क में जो भी’ आये यहाँ पर
मनोहर बियाबाँ, इरम देखते है |
दिशा हीन सब नौजवान और करते क्या
वज़ीरों के’ नक़्शे कदम देखते हैं |
किया देश हित काम जनता ही’ देखे
विपक्षी तो’ केवल सितम देखते हैं |
तमाशा वही फ़क्त आईना’ दारी
वही “काली’” तस्वीर हम देखते हैं |
बियाबाँ=कानन, जंगल
इरम=स्वर्ण भूमि
आईना’दारी=आत्म श्रिंगार
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
अच्छी लगी ग़ज़ल आदरणीय शिल्प पक्ष पे तो गुणीजन राय देंगे।सादर
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी आदाब,
अच्छी ग़ज़ल का प्रयास । ग़ज़ल अभी और समय चाहती है । दूसरे शे'र के उला और सानी दोनों मिसरों में तथा तीसरे शे'र में भी ऐब-ए-तनाफुर है , देखिएगा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online