For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-ये'  माया मोह का  चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|

काफिया :अन ; रदीफ़ : को

बहर : १२२२  १२२२  १२२२  १२२२

अलग अलग बात करते सब, नहीं जाने ये' जीवन को

ये'  माया मोह का  चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|

किए  आईना’दारी मुग्ध  नारी जाति  को जग में

नयन मुख के  सजावट  बीच भूले  नारी’ कंगन को |

सुधा रस  फूल का पीने दो’ अलि  को पर कली को छोड़

कली को नाश कर अब क्यों उजाड़ो पुष्प गुलशन को|

बदी की है वही जिसके लिए हमने दुआ माँगी

न ईश्वर दोस्त ऐसे दे मुझे या मेरे दुश्मन को |

निगाह तेरी बड़ी पैनी  मेरे  दिल  छेद डाली है

जिगर  है खूंचकाँ मेरे सँभालो नज्र सोजन को |

धरा पर है अभी फिर आसमां पर है, ये' मन चंचल

 नियंत्रण  करना’ है मुश्किल बड़ा मन तीव्र तौसन को |

नया  मौसम नया  दस्ता  नया है खेत खलिहान आज

कभी  हम देखते हैं खेत फिर आबाद खिरमन को |

लुटेरा और नेता कर्म से तो एक जैसे हैं

भले दो नेता’ को गाली, दुआ ही देना’ रहजन को

|

घटा छाया दिवाकर भी, छुपा सावन बहुत रोया

सुनाए ना सुने  ‘काली’ हरी चूड़ियों की’ खनखन को |

 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 796

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 28, 2018 at 2:39pm

इस अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आ० काली प्रसाद जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 28, 2018 at 2:32pm

सुंदर गजल, हार्दिक बधाई ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 27, 2018 at 10:25pm

हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया आ ब्रजेश कुमार जी |सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 27, 2018 at 10:21pm

हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया आ सलीम रज़ा रेवा जी |आदाब  

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 27, 2018 at 10:20pm

हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया आ मोहम्मद आरिफ जी | आदाब 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 26, 2018 at 4:24pm

अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय...

Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:47pm
आ. काली प्रसाद जी,
हिन्दी में बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारक़बाद कुबूल करें.
Comment by Mohammed Arif on January 24, 2018 at 7:45am

आदरणीय कालीपद प्रसाद जी आदाब,

                                 बहुत ही प्यारी हिंदी-उर्दू शब्दों के संयोजन से बनी ग़ज़ल । हर शे'र कुछ कहता है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
5 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
18 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service