बहर :-1212-1122-1212-22
गरीब वो हैं कि जिनका मकां नहीं मिलता।।
अमीर वो जो कभी खामखां नहीं मिलता।।
कोई भी शख़्स मुझे खुश नुमां नहीं मिलता।।
मुझे तो दर्द भी हँस कर मियां नहीं मिलता।।
मैं ढूंढता हूँ खुद का निशाँ नहीं मिलता।।
शह्र में तेरे मिरा हम जुबाँ नहीं मिलता।।
मिले बहुत से मगर और बात है तुम में।।
तुम्हारे जैसा कोई खुशनुमां नहीं मिलता।।
कसम भी प्यार में खाई कसम को तोड़ा भी।
हाँ यार तुम सा कोई बागवां नहीं मिलता।।
समय के फेर में उलझा है आदमी कुछ यूँ।
हमें जहाँ है जरुरत वहाँ नही मिलता।।
जहाँ पे सिख - इसाई ,न हिन्दू - मुस्लिम हो।।
मैं ढूढ़ता हूँ जिसे ,कारवाँ नहीं मिलता।।
है आलिशान मकानों की त्रिश्नगी जैसा ।
मगर मिला जो मुझे ,प्यार हाँ नहीं मिलता।।
जो शख्स मेरी मुहब्बत की इक इबादत है।
वो अब मुझे ही मेरे दरमियाँ नही मिलता।।
मुझे न रात की तन्हाई मार पाती यूँ।
जो कमरा मेरा मुझे बेजुबाँ नहीं मिलता।।
कोई हो शर्त मुहबत की मान लेंगे वो।
जिन्हें ये इश्क उमर भर मियां नहीं मिलता।।
उन्हें गजल से मेरी आज भी शिकायत है।
की शेर इश्क में डूबा जवां नहीं मिलता।।
नजर मिला के नजर से मुझे नजर आया।
नजर के खेल से भी आशियाँ नहीं मिलता।।
जो बात बात में अक्सर अलग अलग सा है।
वो हम सफर भी कभी हम जुबाँ नहीं मिलता।।
आमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ तस्दीक साहब , बृजेश साहब नमन , मार्गदर्शन और प्यार के लिए आभार
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय..ज़नाब तस्दीक साहेब ने ठीक ही फ़रमाया है..बहुत लम्बी रचना में दिलचस्पी कम होने लगती है।
जनाब आमोद साहिब, टाइप पूरा पोस्ट नहीं हो पाया ।
शेर2 राबतकी कमी , शेर3रब्त की कमी ,मिसरे बह्र में नहीं , शेर5 रब्त की कमी, रब्त की कमी ,उला बह्र में नहीं ,शेर8 रब्त की कमी ,ऐब-रदीफैंन।
जनाब आमोद बिंदोरी साहिब , आपका ग़ज़ल पर कोशिश करते अच्छा लग रहा है । मेरी राय है कि सात शेर से ज़्यादा मत कहें ,और उन्हीं में बार बार बदलाव करें ।आपने 14 शेर लिख दिए ।
शेर1 मिसरों में रब्त की कमी ,शब्द ख़्वाम ख्वाह होता है ।
शेर10 रब्त की कमी , शेर11 रब्त की कमी ,सही शब्द उम्र है ।
आ वीरेंद्र साहब , सादर आभार , आपके प्रेम पूर्ण शब्दों ने मेरे दो शेर को जिन्दा क्र दिया ,
जो शख्स मेरी मुहब्बत की इक इबादत है।
वो अब मुझे ही मेरे दरमियाँ नही मिलता।।
उन्हें गजल से मेरी आज भी शिकायत है।
की शेर इश्क में डूबा जवां नहीं मिलता।।..... बहुत उम्दा भाई आमोद श्रीवास्तव जी. मन को छु गये आपकी ये पंक्तियाँ. बधाई भाई जी
आदरणीया रक्षिता जी आभार
आदरणीय अमोद जी...
" मिले बहुत से मगर और बात है तुझ में।
तुम्हारे जैसा कोई खुशनुमा नहीं मिलता।।"
बहुत बढ़िया शैर.... हार्दिक बधाई।
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