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तितली और सफ़ेद गुलाब

“भाई अरविन्द ,कब तक ताड़ते रहोगे ,अब छोड़ भी दो बेचारी नाजुक कलियाँ हैं |”

“मैंsए ,नहीं तो -----“

वो ऐसे सकपकाया जैसे कोई दिलेर चोर रंगे हाथों पकड़ा जाए और सीना ठोक कर कहे –मैं चोर नहीं हूँ |

“अच्छा तो फिर रोज़ होस्टल की इसी खिड़की पर क्यों बैठते हो  ?”

“यहाँ से सारा हाट दिखता है |”

“हाट दिखता है या सामने रेलवे-क्वार्टर की वो दोनों लडकियाँ --–“

“कौन दोनों !किसकी बात कर रहे हो !देखों मैं शादी-शुदा हूँ ---और तुम मुझसे ऐसी बात कर रहे हो –“ उसने बीड़ी को झट से फैंका और पैरों के नीचे मसल के फटाफट कमरे में आकर लेट गया |

मैं जानता था कि उसके दिलों-दिमाग में वे दो तितलियाँ पल रही हैं पर उनकी कौन सी अवस्था है इसका ठीक ठीक अनुमान लगाना कठिन था |

चूँकि अरविन्द बहुत ही शर्मिला और अन्तर्मुखी था इसलिए हमने फिलाहल के लिए उसे उसकी दशा पर छोड़ना ही ठीक समझा |वो आंवला के एक गाँव से आया था और बी.टी.सी में मेरा साथी था |उसका विषय अंग्रेजी और मेरा कृषि-विज्ञान था |हॉस्टल में हमारा कमरा आमने-सामने था और फुर्सत में जब लड़कों की टोली जमती और सबकी इश्कबजियों की चर्चा होती तो वो चुपचाप बीड़ियाँ सुलगाने लगता |

“भाईसाहब आप इन लड़कों के कारनामों से खार क्यों खाते हो !आप ने तो सारे मज़े ले लिए ---“ एकदिन उसे छेड़ते हुए एक साथी ने कहा

“मज़ा नहीं सजा बोलों |इन्टर पास करते-करते पिताजी ने अपनी पसंद की लड़की गले बांध दी और अभी रोज़ी-रोटी का जुगाड़ नहीं हुआ है और दो बच्चों के बाप हो गए हैं |”उसने झल्लाते हुए कहा

उस दिन के बाद किसी ने उसकी दुखती रग को छेड़ने की कोशिश नहीं की और जब हम लड़के अपनी और हॉस्टल की प्रेम-कहानियों का जिक्र करते तो वो चुपचाप बालकनी में आकर खड़ा हो जाता और हाट को देखने लगता |

होस्टल के ठीक सामने रेलवे-लाईन गुजरती थी और वहाँ एक छोटा सा प्लेटफार्म था जहाँ मालगाड़ियाँ रुका करती थीं |शाम के वक्त हम लड़के अक्सर प्लेटफार्म पर तफ़री करने चले जाते |हम सभी प्लेटफार्म पर बोलते –बतियाते  टहलते रहते पर अरविन्द प्लेटफार्म के एक निश्चिन्त जगह पर बैठता तो प्लेटफार्म छोड़ने के वक्त ही उठता |

 

मैंने गौर किया तो पाया कि प्लेटफार्म और होस्टल की बालकनी से रेलवे-क्वार्टर का एक ही विशेष भाग दिखता है और वहाँ पर अक्सर वो दो लडकियाँ नजर आती हैं |यानि मेरा संदेह सही था |अरविन्द के दिल में तितली थी जो अपने फूलों तक पहुँचनें के लिए मचल रही थी |

रविवार की एक दोपहर उसे बालकनी में अकेला देखकर |मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा –घुटते रहोगे तो तितली मर जाएगी और फूलों को कोई और चुरा लेगा |

“मैं कर ही क्या सकता हूँ !” मैंने महसूस किया कि इस बार चोर हथियार डाल चुका है और रहम की भीख माँग रहा है |

“चाहता क्या हो ?” मैंने नर्मी से पूछा

“एकबार करीब से देखना और बतियाना----“

“जैसा कहूँगा वैसा करोगे ?”

“भाई मैं शादी-शुदा हूँ |”

“चलों रेलवे कॉलोनी हवा खाकर आते हैं |” मैंने उसे खीचते हुए कहा

“पर –वहाँ क्यों –किसी ने देख लिया फिर---यार रहने दो |”

पर मैंने उसकी एक ना सुनी और उसे घसीटते हुए रेलवे-कालोनी ले आया

“वही क्वार्टर है ना ! “ मैंने एक क्वार्टर की तरफ़ ईशारा करते हुए कहा

“रहने दो भाई,किसी को मालूम चल गया तो कितनी बदनामी होगी ,कहीं कॉलेज तक बात पहुंच गई तो ---“

“अरविन्द भाई ,मोहब्बत हो या जंग जीतने के लिए उसमें उतरना पड़ता है |”

“रहने दो भाई –“ उसने पीठ दिखाते हुए कहा

“देख लो मंजिल सामने है और तुम हो कि मुँह फेरते हो ---फिर आज से बालकनी पर खड़ा होना और प्लेटफार्म पर बैठना बंद |”

“ये कैसी शर्त हुई |” वो वापस मुड़ते हुए बोला

“तुम बस साथ चलों और देखों कैसे गोटियाँ फिट होती हैं |”

मैंने दरवाजे पर धीमे से कुण्डी बजाई तो 34-35 वर्ष की एक युवती ने दरवाज़ा खोलकर अचरज़ पर बड़े सलीके से कहा-“फरमाइये “

“आदाब !” जी हम सामने वाले हॉस्टल से आए हैं |और पास वाले कॉलेज से बी.टी.सी. कर रहे हैं और इसी सिलसिले में आपकी मदद चाहिए |”

“हम आपकी मदद ---“वो अचरज़ से बोली

“जी | हमें अपने विषय पर कुछ लेशन-प्लान बनाने और प्रस्तुत करने होते हैं इसके लिए 8 से 12 तक की किताब की जरूरत थी |बाजार और लाईबेरी में किताब मिल नहीं रही –क्या आपके यहाँ पढ़ने वाले बच्चे हैं |”

“पढ़ने वाले बच्चे तो हैं---पर आप कितने दिन में लौटा देंगे ?’

“सोमवार सुबह तक मशीन से उसकी नक़ल निकलवाकर आपकों लौटा जाएँगे |ये हमारा आई-कार्ड देखिए और अगर चाहे तो किताब की पूरी रकम जमा करा लें जब हम किताब वापिस करें तो पैसे लौटा दीजिएगा |”

“बेटा सुहैल ! जरा अपनी किताब लाना |”

“सुहैल की किताबों से एक किताब छांटकर,क्या दसवीं,बारहवीं की किताब नहीं है |” मैंने चतुर शिकारी की तरह जाल फैलाना शुरु किया

“सुहैल,मरियम और शबाना से कह जरा अपनी किताब भी लेती आएं |”

वे दोनों जब आईं तो मेरे होश फाख्ता हो गए |मरियम 15 साल की और शबनम 17 की रही होगी,पहली 9 वी और दूसरी 12 में पढ़ती थी

मैंने अरविन्द की तरफ़ देखा तो वो नजर नीचे किए था और उसका चेहरा लाल हो रहा था |

वो दोनों संगमरमर की मूर्तियों जैसी थीं |सीढ़ियों के पास ही गमलों की कतार थीं जो तरह-तरह के गुलाबों से भरी थी |वहीं एक गमले में दो सफ़ेद गुलाब मुस्कारा रहे थे |

किताब लेकर जब मैं उसके पैसे उस महिला को लौटने लगा तो वो बोलीं-“भरोसे पर दे रहे हैं |वक्त पर लौटा देना |बच्चियों को दिक्कत ना हो “

“जी |”

कम्पाउन्ड से बाहर निकलकर मैंने अरविन्द को छेड़ा –“तो मियाँ हसरत पूरी हो गई या और कुछ बाकी है –“

“पता नहीं |मेरी तो नज़र ही नहीं उठती थी |मैं तो गमले के सफ़ेद गुलाब ही देखता रह गया |” शर्म से लाल हुए चेहरे को संयत करते हुए वो बोला

“ठीक है |कल किताब वापस करने तुम जाओगे |” मैंने सपाट सी घोषणा की

“मैंss ए “ उसने हड़बड़ाते हुए कहा

“भाई तुम्हें फूलों तक पहुँचा दिया है आगे तुम जानो और तुम्हारे दिल की तितली जाने |”

उसने कोई उत्तर नहीं दिया

अगले दिन जब वो किताबे देकर लौटा तो उसका दिल बाग-बाग हुआ जा रहा था |प्यूपा फूट चुका था और एक तितली उड़ने को तैयार थी

“तो भाई कैसी रही मुलाकात ?”

“भाई आफत आ गई |उनके अब्बू मिले थे |घर बिठाया |चाय-पानी पिलाया |और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने को कहा है |”

“इसे कहते हैं छप्पर फाड़ के मिलना |कहता था ना कदम बढाओ मंजिल खुद नजदीक होती जाएगी |तो कब से जा रहे हो ?”

“आज शाम से जाना है और तुम्हें भी चलना है |उन्हें विज्ञान का ट्यूटर भी चाहिए |मैंने तुम्हारे लिए भी बात कर ली है |”

“भाई मुझे इन मसलों में मत घसीटों |ट्यूशन मुझसे नहीं होगी---मेरी तरफ़ से उनसे माफ़ी माँग लेना |”

एक हफ़्ते बाद जब मैं शाम को रेलवे-लाईन से लौटा तो देखा अरविन्द कमरे में बैठा हुआ है

“क्यों भाई !गए नहीं पढ़ाने |”

“कल शाम मना कर आया |” उसने मुस्कुराते हुए कहा

“क्या उनकी किताब की अंग्रेज़ी बहुत टफ थी ?”

“नहीं भाई |ये दिल का मामला बहुत टफ है |”

“क्या लड़कियों ने कुछ कह दिया या उनकी अम्मी को शक वगैरह !”

“नहीं भाईजान !अपनी ही हसरत नहीं है |इस वहशी दिल के अरमान बढ़ने लगे हैं |वो दोनों नाजुक कलियाँ हैं अभी उन्हें खिलना है पूरा गुलाब बनना है और फिर मेरा भी एक भरा-पूरा बगीचा है |’ उसने अपनी किताब में रखे दो सफ़ेद गुलाबों की तरफ़ देखते हुए कहा

“ये तो उस गमले के फूल हैं |” मैंने मुस्कुराते हुए कहा

“नहीं ये इस तितली के गुलाब हैं |इस मोहब्बत की कमाई हैं |” उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

मैंने महसूस किया कि एक भटकती हुई तितली वापिस अपने बाग को लौट चली है और हवा गुलाब की भीनी गंध से भरी है |”

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

 

 

 

 

 

 

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