यकीन
यही सोच कर रुठीं हूँ मना लेगा वो
गलतफहमियाँ जो हैं मिटा देगा वो
प्यार से खींचकर भींच लेगा मुझे
गलतियाँ जो की हैं भुला देगा वो |
पहली गुफ्तगू
पहला जाम पी लिया खोलकर ये दिल
जाम की आरज़ू है तू रोज़ यूँ ही मिल
मझधार में भटकी सफीना दूर है साहिल
बन जा पतवार मेरी ले चल मुझे मंजिल
बुढ़ा
वो जो एक शख्स झुका-झुका सा बैठा है
उसकी पीठ पर यह घर टिका बैठा है
छातियाँ बात-बेबात गुब्बारा हुई जाती हैं
हवा के दाब सहता हुआ फेफड़ा बैठा है
सूख कर वो आँखे अब सहरा हो चली हैं
किसे खबर है कि उनमें दरिया बैठा है
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
Comment
आ. सोमेश जी सुंदर मुक्तक हुए हैं । हार्दिक बधाई ।
rchna ko psand krne aur sneh dene k liye aap guni mitro ka shukriya
आदरणीय सोमेश जी, सुन्दर रचना...बहुत बहुत बधाई।
बहुत बढ़िया भावपूर्ण मुक्तक सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सोमेश कुमार जी।
आदरणीय सोमेश कुमार जी आदाब,
प्यार के ख़ूबसूरत अहसासों से भरपूर अच्छे मुक्तक और अंतिम रचना में बुढ़ापे को रेखांकित बेहतरीन रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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