(फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन)
हो रहा उनका हर वक़्त दीदार है |
मेरी आँखों में तस्वीरे दिलदार है |
कुछ तो है दोस्तों शक्ले महबूब में
देखने वाला कर बैठता प्यार है |
उनका दीदार मुमकिन हो कैसे भला
उनके चहरे पे बुर्क़े की दीवार है |
मुझ पे तुहमत दग़ा की लगा कर कोई
कर रहा ख़ुद को साबित वफ़ादार है |
चाहे दीदारे दिलबर ,दवाएं नहीं
वो हकीमों मुहब्बत का बीमार है |
उसको क्या वारदाते जहाँ की ख़बर
जो पढ़े ही नहीं रोज़ अख़बार है |
चाहे कुछ भी हो अंजाम तस्दीक़ अब
कर दिया उनसे उल्फ़त का इज़्हार है |
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय नीलेश जी,
\\अजय जी से इतना ही कहूँगा कि दीदार और दिलदार में मुतहर्रिक क्या है और साकिन क्या है इस पर भी प्रकाश डालें तो मेरा ज्ञानवर्धन होगा\\ .
दीदार = द मुतहर्रिक+ ी साकिन +.द मुतहर्रिक+ ा साकिन + र साकिन
दिलदार = द मुतहर्रिक + ल साकिन + द मुतहर्रिक+ ा साकिन + र साकिन
\\किताब और पृष्ठ क्रमांक कि तो इससे क्या फर्क पड़ता है जब न मानने मन बना लिया गया हो ..\\
बात सिर्फ तथ्यों की है मन की नहीं आदरणीय वीनस जी ने भी 'ग़ज़ल की बातें' में लिखते हुए ईता से दोष मुक्त होने के निम्न कारण बताये है :
(क) दोनों काफ़िया यौगिक होने पर भी हर्फ़े रवी एक होने पर
(ख) एक मूल एक यौगिक काफ़िया
(ग) मतला के दोनों काफ़िया में प्रत्यय अलग अलग होना अथवा समास अथवा संधि में दूसरे पद का अलग -अलग होना
(घ) व्याकरण भेद
(च) मतला में दो अलग अर्थ वाला एक ही काफ़िया
(छ) दोनों काफ़िया के काल (जमाना) में अंतर
(छ) एक अक्षर के बढ़ने पर
http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/12-3
सादर
अंतत:..
मुझे स्वयं के छात्र होने पर नाज़ है और जो मुझे यह सलाह देते हैं कि मैं अपने उस्तादों से सीख लूँ ऐसे सभी विद्वानों से और स्वयं को पिंगल शास्त्र का बड़ा ज्ञाता मानने वालों को चलते चलते एक बात और बताता चलूं कि तस्वीर अरबी शब्द है और दिलदार फ़ारसी अत: दोनों में तस्वीर-ए- दिलदार जैसी इज़ाफ़त पूर्णत: शास्त्र विरुद्ध है ...
बाक़ी रचना आप की है..जैसी रखना चाहें रखें ...
नमस्ते
आ. तस्दीक़ साहब,
इस मंच का उद्देश्य आपके और मेरे सही या ग़लत होने या सिद्ध करने से कहीं बड़ा है ..यहाँ की चर्चा नए सीखने वाले पढ़ते हैं और उससे लाभान्वित होते हैं इसलिये यहाँ चर्चा में शाइर का नाम गौण हो जाता है ...यहाँ कोई एक्सपर्ट नहीं हैं सब छात्र हैं और जैसी कि छात्रों में आदत होती है ..कुछ प्रश्न करते हैं और कुछ ग़लती स्वीकार करने की जगह खोखले तर्क देते हैं.. यह छात्र स्वभाव होता है ...
खैर जब आपने मान ही लिया है कि //आज कल शोरा इस दोष को मानते ही नहीं // फिर मुझे कुछ साबित करने की आवश्यकता नहीं रह जाती है .. नए सीखने वालों से निवेदन है कि वे इस दोष को दोष ही मानें क्यूँ कि यह दोष ही है जैसा तस्दीक़ साहब ने भी कहा है लेकिन मानने से गुरेज़ है ...
अजय जी से इतना ही कहूँगा कि दीदार और दिलदार में मुतहर्रिक क्या है और साकिन क्या है इस पर भी प्रकाश डालें तो मेरा ज्ञानवर्धन होगा ...
रही बात किताब और पृष्ठ क्रमांक कि तो इससे क्या फर्क पड़ता है जब न मानने मन बना लिया गया हो ..
सादर
आदरणीय तस्दीक साहब
\\दीदार ---दिलदार , इनमें सिर्फ दिलदार के टुकड़े हो सकते हैं दीदार के नहीं क्युकी यह मुकम्मल एक लफ्ज़ है\\
दीदार हिंदी/उर्दू में 'मुकम्मल एक लफ्ज़' मना जा सकता है (जैसे इसका समानार्थी 'दर्शन' शब्द हिंदी में मूल शब्द ही समझा जाता है - वस्तुतः यह संस्कृत का योजित शब्द है). लेकिन फारसी में यह मूलतः 'दीद' और 'आर' प्रत्यय (suffix) से मिल कर बना है (जैसे रफ्तार = रफ्त + आर ).
सादर
आदरणीय समर साहब,
\\जनाब अजय गुप्ता जी\\ मुझसे शेर ओवरलैप हो गए थे आपसे नाम ओवरलैप हो गए हैं.
\\जनाब निलेश साहिब की ईता के बारे में टिप्पणी किताबी हवाला है, और आप सिर्फ़ अपने विचार रख रहे हैं,कृपा कर किताबी हवाला पेश करें ।\\
किताबी हवाला दिया जाता है तो अगर पृष्ठ संख्या न भी लिखी जाय तो लेखक का नाम, किताब का नाम ज़रूर दिया जाता है निलेश जी की पोस्ट में ऐसा कुछ नहीं है.
मैंने जो कुछ लिखा है उसका आधार उर्दू की किताबे हैं इस लिए सीधा हवाला नहीं दिया. इस विषय में और विस्तार से जानकारी के लिए नज्मुलगनी साहब की किताब 'बहरूल फ़साहत' में अयुबे काफिया का बयान (पृष्ठ 458) देखा जा सकता है.
सादर
जनाब नीलेश साहिब , समर साहिब और अजय साहिब , मैं तो आज भी ग़ज़ल का प्रयास ही कर रहा हूँ
आप लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया जो आप मुझ जैसे ग़ज़ल प्रयासी के मतले पर इतनी मेहनत कर रहे हैं
आप लोग तो ओ बी ओ के एक्सपर्ट हैं | मैं अजय साहिब की बात से पूरी तरह मुत्मइन हूँ , दोष लगाने वालों को
अगर जानकारी नहीं है तो अपने उस्तादों से पूछना चाहिए या उरूज़ की किताबों का मुतालआ करना चाहिए
आजकल तो नेट पर ही जानकारी मिल जाती है | आज कल शोरा इस दोष को मानते ही नहीं | सुबूत देना मेरा
काम नहीं हैं , मैं तो सिर्फ बता ही सकता हूँ |
ई ताए जली -------मतले में क़ाफिये ऐसे बांधे जाएँ जो दो अल्फ़ाज़ या दो टुकड़ों से बने हों , आखिरी टुकड़ा अगर
नि काल दें तो बचे टुकड़े हम क़ाफ़िए न हों -----बुतगर -----बुत ---गर , सितमगर -----सितम ---गर , यहाँ बुत और सितम ,हम क़ाफिआ नहीं ,
दीदार ---दिलदार , इनमें सिर्फ दिलदार के टुकड़े हो सकते हैं दीदार के नहीं क्युकी यह मुकम्मल एक लफ्ज़ है , इस लिए यह दोष लागु नहीं होता |
ई ताए ख़फ़ी --------जब मतले के क़ाफ़ियों में आखरी दो या तीन हर्फ़ इस तरह शामिल हों कि तकरार का गुमान हो | जैसे ----शादाब और गुलाब
अगर हर्फ़े रवि और उससे पहले का हर्फ़ अगर हटा दें और बचे बा मआनी अल्फ़ाज़ रह जाएँ | यहाँ ऐसा करने पर शाद और गुल रह जाते हैं जो
बा मआनी हैं | मगर दिलदार ------दिलद -आर , दीदार ------दीद -आर | दिलद यहाँ बे मआनी है सिर्फ दीद बा मआनी है |
इस लिए यह दोष भी लागू नहीं होता |
मैं जो यहाँ कोट कर रहा हूँ वो मेरा विचार या ख्याल नहीं किताबी बात है | मुझे हैरत है यहाँ बिना मुकम्मल जानकारी के कमी निकाली जाती है
और बाद में ग़लत साबित हो जाती है | ----------- सादर
जनाब अजय गुप्ता जी,जनाब निलेश साहिब की ईता के बारे में टिप्पणी किताबी हवाला है, और आप सिर्फ़ अपने विचार रख रहे हैं,कृपा कर किताबी हवाला पेश करें ।
आदरणीय निलेश जी,
1..काफिये के दोनों या कोई एक शब्द मूल या योगरूढ़ हो तो ईता दोष नहीं माना जाता.
2, काफिये के शच्दों में अगर व्याकरण भेद हो तो ईता दोष नहीं माना जाता. ( दीदार संज्ञा है और दिलदार विशेषण )
3. काफिये के शच्दों का बढ़ा हुआ या योजित आखिरी हिस्सा अगर सामान न हो तो ईता दोष नहीं माना जाता.( दिल + दार और दीद+आर के दूसरे हिस्से सामान नहीं है)
4. काफिये के शच्दों में अगर समान लगते हिस्सों में अर्थगत भिन्नता हो तो ईता दोष नहीं माना जाता.(दी+दार एक निरर्थक शब्द संयोजन है अतः इसका 'दार' निरर्थक होगा क्योंकि 'दीदार' शब्द में 'दार' कोई अलग शब्द नहीं है और उसका कोई स्वतन्त्र अर्थ नहीं है जबकि 'दिलदार' का 'दार' अर्थवान है.दोनों में स्पष्ट अर्थगत अंतर है )
उम्मीद है बात स्पष्ट हो गयी होगी.
सादर
आदरणीय निलेश जी,
मै अपनी बात आदरणीय समर साहब के प्रत्युत्तर में रख चुका हूँ .
सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online