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ग़ज़ल(डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर )

ग़ज़ल(डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर )


(मफ ऊल-फाइलात-मफाईल-फाइलुन/फाइलात)


इक़रार में छुपा हुआ इनकार देख कर।
डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर ।

जो आरज़ूए दीद थी काफूर हो गई
रुख़ पर पड़ी निक़ाब की दीवार देख कर ।

दिल की ख़ता है और निशाना जिगर पे है
तीरे नज़र चलाइए सरकार देख कर ।

अगला निशाना तू ही है दहशत पसन्द का
हँस ले तू ख़ूब घर मेरा मिस्मार देख कर ।

शायद बना लिया गया फिर कोई आशियाँ
तड़पे है बर्क़ जानिबे गुलज़ार देख कर ।

कर्फ़्यू में घर ग़रीबों के ही लुटते हैं हुज़ूर
हैरान क्यूँ हैं आज का अख़बार देख कर ।

तस्दीक़ जिन अज़ीज़ों पे था तुम को एतमाद
कतरा रहे हैं वो तुम्हें नादार देख कर ।

काफ़ूर--ग़ायब, बर्क़--बिजली, एतमाद--भरोसा
नादार--मुहताज, मिस्मार--गिराया हुआ
दहशत पसन्द--डर फैला कर हुकूमत बदलने वाला


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 18, 2018 at 1:02pm

आ. भाई तस्दीक अहमद जी सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 17, 2018 at 9:41pm

वाह क्या बात है बहुत खूब लिखा आपने ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 14, 2018 at 11:30pm

जनाब अजय तिवारी साहिब ,आपकी ग़ज़ल पर खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Ajay Tiwari on April 14, 2018 at 4:35pm

आदरणीय तस्दीक अहमद साहब, खूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 13, 2018 at 8:27pm

जनाब ब्रजेश कुमार साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 13, 2018 at 6:38pm

बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय..सादर

Comment by Samar kabeer on April 13, 2018 at 9:43am

आपकी मर्ज़ी, लेकिन ये बेकार की बह्स नहीं है ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 13, 2018 at 9:13am

मुहतर्मा नीलम साहिबा ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 13, 2018 at 9:08am

जनाब समर साहिब आपकी सोच कुछ भी हो लेकिन मेरे ख़याल से सही है 

दीवार का मतलब पर्दा ही नहीं बल्कि , हद ,ओट ,रुकावट भी होता है । इस पर बेकार की बहस करने से कोई फायदा नहीं --सादर

Comment by Neelam Upadhyaya on April 12, 2018 at 12:39pm

आदरणीय तसदीक अहमद जी, बेहतरीन गजल के लिए बधाई ।

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