(फ़ऊलन--फ़ऊलन--फ़ऊलन--फ़ऊलन)
शुरूए इनायात करने चले हैं |
वो लगता है आफ़ात करने चले हैं |
ख़ुदा ख़ैर पाबंदियाँ हैं नज़र पर
मगर वो मुलाक़ात करने चले हैं |
यक़ीं ही नहीं उम्र ढलने का उनको
जो तब्दील मिर आत करने चले हैं |
खिलाना है फ़िरक़ा परस्तों को मुंह की
वो लोगों फ़सादात करने चले हैं |
मुहब्बत के अंजाम से हैं वो ग़ाफ़िल
जो इसकी शुरुआत करने चले हैं |
भला किस तरह कर दें उसको नुमायाँ
सनम से जो हम बात करने चले हैं |
नज़र में अज़ीज़ों को तस्दीक़ रखना
वो फिर बे जा हरकात करने चले हैं |
आफ़ात --मुसीबत , मिर आत --आइना
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
मुहतरम जनाब विजय साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
अच्छी गज़ल के लिए दिल से बधाई
मुहतरम जनाब बासुदेव साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आपने शेर पर शायद ग़ौर नहीं किया ,लोगों का मतलब जनता से है ।
शब्द शुरूआत ही है टाइप में शुरुआत हो गया है।
आ0 तस्दीक़ साहिब अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।
वो लोगों फ़सादात करने चले हैं | व्याकरण की दृष्टि से वो लोग उचित प्रतीत होता है। वो लोगों का प्रयोग कहाँ तक ठीक है गुणीजन बताएं।
शुरुआत में बह्र टूट रही है हाँ शुरूआत करने से बह्र ठीक हो जाती है। देखें। सादर।
जनाब श्याम नारायण साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । |
मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब, ग़ज़ल पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी। बेहतरीन गज़ल।
खिलाना है फ़िरक़ा परस्तों को मुंह की
वो लोगों फ़सादात करने चले हैं |
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
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