(फ़ाइलातुन ---फ़ाइलातुन ---फ़ाइलातुन )
बह्रे आतिश पार करना चाहता हूँ |
आप से मैं प्यार करना चाहता हूँ |
जिस खता की आपने मुझको सज़ा दी
वो खता सौ बार करना चाहता हूँ |
शहरे दिलबर छोड़ कर जाने से पहले
मैं विसाले यार करना चाहता हूँ |
बंदिशें मेरी निगाहों पर हैं लेकिन
उन का मैं दीदार करना चाहता हूँ |
फेर कर बैठे हुए हैं आप चहरा
मैं निगाहें चार करना चाहता हूँ |
मैं ख़ुदा हाफ़िज़ तुम्हें कहने से पहले
इश्क़ का इज़हार करना चाहता हूँ |
दिल भला है चीज़ क्या तस्दीक़ मेरा
जाँ निसारे यार करना चाहता हूँ |
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
जनाब हर्ष साहिब ,आपकी ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
"जाँ"के बाद कामा लगाइएगा ।
आदर्णीयय तस्दीक अहमद जी आदाब । बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है साहब । बहुत बहुत बधाई ।
सादर ।
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया । आपकी बात सही है ,सानी मिसरा यूँ तब्दील कर लिया है "जाँ निसारे यार करना चाहता हूं"
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'जान तुहपर वार करना चाहता हूँ'
इस मिसरे में क़ाफ़िया वो अर्थ नहीं दे रहा है,जो आपने लिया है ,आप 'जान तुझपर वार' दूँ' कहना चाहते हैं,लेकिन यहाँ इसका अर्थ हो रहा है 'जान तुझपर हमला करना चाहता हूँ',और ये संशय रदीफ़ की वजह से पैदा हो रहा है,'देना चाहता हूँ' होती तो ठीक होता, लेकिन 'करना चाहता हूँ'रदीफ़ के साथ 'वार' शब्द का अर्थ "हमला" ही होगा, जैसे मिसाल के तौर पर :-
'दुश्मनों पर वार करना चाहता हूँ'
उम्मीद है आप मेरी बात पर ग़ौर फरमाएंगे ।
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब ,ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,
बहुत ही उम्दा और आसान लफ़्जों में ग़ज़ल कही आपने । मुझे पूरी ग़ज़ल बहुत पसंद है । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब ,ग़ज़ल में आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।बेहतरीन गज़ल।
जिस खता की आपने मुझको सज़ा दी
वो खता सौ बार करना चाहता हूँ |
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