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शाख़ से टूट कर उड़ते पत्ते रहे ।
कुछ शजर जुल्म तूफाँ का सहते रहे ।।
घर हमारा रकीबों ने लूटा बहुत ।
और वह आईने में सँवरते रहे ।।
था तबस्सुम का अंदाज ही इस तरह ।
लोग कूंचे से उनके निकलते रहे ।।
देखकर जुल्फ को होश क्यों खो दिया ।
आपके तो इरादे बहकते रहे ।।
दिल लगाने से पहले तेरे हुस्न को ।
जागकर रात भर हम भी पढ़ते रहे ।।
यह मुहब्बत नहीं और क्या थी सनम ।
लफ्ज़ खामोश थे बात करते रहे ।।
कैसे कह दूं कि मुझसे जुदा आप हैं ।
ख्वाब में आप तो रोज़ मिलते रहे ।।
कुछ तो साजिश मुहब्बत में थी आपकी ।
बेसबब आप क्यूँ मुझको छलते रहे ।।
खुदकुशी कर लूं मैं भी ये मुमकिन कहाँ ।
जिंदगी के लिए हम तरसते रहे ।।
मैं सजा लेता पलकों में तुमको मगर ।
इश्क में तुम भी चेहरे बदलते रहे ।।
कुछ शरारत लिए थीं वो अंगड़ाइयां ।
देखकर उम्र भर हम मचलते रहे ।।
कर गयी जो असर आपकी वह नजर ।
आज तक बेखुदी में टहलते रहे ।।
दो बदन जल उठे आग ऐसी लगी ।
मुद्दतों बाद तक हम सुलगते रहे ।।
वक्त ही न रहा वक्त की बात है ।
वक्त पर हम खड़े हाथ मलते रहे ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 सर सादर नमन ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, ग़ज़ल में क़ाफिये सही नहीं हैं ।
पहले भी आपसे निवेदन किया था कि अशआर के साथ नम्बर लिख दिया करें,कुछ कहने में परेशानी होती है ।
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