For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक तेरी तस्वीर और अंतिम तिरा वो फैसला..

बह्र 2122-2122-2122-212

.

दे रहा है ज़िस्म को जो दर कदम पर इक सिला।।
इक तेरी तस्वीर और अंतिम तिरा वो फैसला।।

खंडरों की शानों शौक़त दिन ब दिन बेहतर हुई।
जैसे पतझड़ कह रहा हो लौट मुझको मय पिला।।

बढ़ रहा हूँ कुछ कदम, हूँ कुछ कदम ठहरा हुआ।
   बाद तेरे टूटने जुड़ने लगा है हौसला।।

ना कभी ओझल हुआ था,ना ही ओझल हो कभी।
इसमें है अहसासे उलफत ,इश्क का जो भी मिला।।

चल चलें कुछ दूर पैदल, दो कदम मंजिल बची ।
दो कदम सायद के चलकर सोंच पायें क्या मिला।।

जब फ़िजा ने रंग बदले ,जिंदगी ने राह जब।
जब हवायें तेज तूफानी चली तब घर जला।।

जीस्त बेशक़ आ खड़ी अपने मुकम्मल ठौर पर।
मौत द्वारे खटखटा कर दे रही यह इत्तला ।।

.

आमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित

Views: 583

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on March 23, 2018 at 10:35am

ऊला मिसरा यूँ कर लें:-

'ज़िन्दगी भर की कमाई ख़र्च हम जिनपर किये'

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 23, 2018 at 10:19am

आ समर दादा प्रणाम 

दादा 7 वे में इजाफत हुई है कमाई में ई की क्या ये जायज है ...??

अपनी जानकारी के लिए मार्गदर्शन चाहता हूँ 

Comment by Samar kabeer on March 22, 2018 at 11:20pm

इसमें क़ाफिये सही हैं ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2018 at 7:55pm
एक वही तस्वीर और अंतिम तिरा वो फैसला।।
बह्र 2122-2122-2122-212

एक है मंदिर ओ मस्जिद, एक है सब का खुदा।
दे जो जिस्मों को रहा है , हर कदम पर हौसला।।

बढ़ रहा हूँ कुछ कदम मैं , कुछ कदम ठहरा हुआ ।
अब बहुत उलझा रहा है जिंदगी का रास्ता।।

मन में मेरे कर रहा है हौसले से द्वन्द अब ।।
इक तेरी तस्वीर और अंतिम तेरा वो फैसला।।

चल चलें कुछ दूर पैदल, दो कदम मंजिल बची ।
दो कदम सायद के चलकर सोंच पायें क्या मिला।।

ना कभी ओझल ये लम्हा हो मेरे इस जहन में ।
इसमें है अहसासे उलफत ,इश्क में जो भी मिला।।

जीस्त बेशक़ आ खड़ी अपने मुकम्मल ठौर पर।
मौत दर को खटखटा अब कर रही ये इत्तला।।

खर्च जिनपर कर दिए हम जिंदगी भर की कमाई।
मुझसे अब वो पूछते हैं जिंदगी भर क्या किया ।।

खोज अभी है अधूरी , काश के मिल जाए वो ।
जिंदगी भर गुनगुना लूँ , हो मुकम्मल काफिया ।।


आमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित
Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2018 at 6:21pm

आ सर प्रणाम सर हुआ यूँ की मैं काफिये में उलझ गया था .. सुरुआत ...मतला यूँ हुआ था 

दे रहा है जिस्म को जो दर कदम पर हौसला ।

इक तेरी तस्वीर और अंतिम तेरा वो फैसला ।।

Comment by नाथ सोनांचली on March 22, 2018 at 3:34pm

आद0 आमोद जी सादर अभिवादन। काफ़ियाबन्दी मतले से की जाती है।  आपकी काफ़िया ही गलत हो गया है। आप एक बार ग़ज़ल में काफ़िया निर्धारण का नियम पढ़ लें तो यह आ जायेगा।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2018 at 12:35pm
आ समर साहब प्रमाण
ठीक है सर ...देखते हैं ।
वैसे तुकान्त ही काफिया होता है जो मुझे मालूम है ।
अब इसमें इला और सला ...में सायद ला काफिया मैं समझा इस लिए लिखे ....आगे की जानकारी कंफर्म करता हूँ ./
Comment by Samar kabeer on March 21, 2018 at 10:55pm

जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,आपकी ग़ज़ल के क़ाफिये सही नहीं हैं,क़ाफिये की जानकारी के लिए पटल पर आलेख मौजूद हैं,अध्यन करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service