बह्र:-221-2121-2221-212
आधा है तेरा साथ ओर आधी जुदाई है।।
कुछ इस तरह चिरागे दिल की रौशनाई है ।।
चहरे में मुस्कुराहटें आई हैं लौट कर ।
जब जब भी मैंने याद की ओढ़ी रजाई है।।
विस्मित नहीं हुई अभी,अपनी हो आज भी।
रिश्ता जरूर बदला है अब तू पराई है।।
कितना भी पढ़ लो जिंदगी की इस किताब को ।
मासूस हो यही अभी,आधी पढाई है।।
नजरों से हूबहू अभी वो ही गुजर गया।
जिसकी है जुस्तजू मुझे, तन पे सिलाई है ।।
जब से हुए हो दूर तुम,खुद से हूँ लापता।
मालूम जिंदगी को है , कैसे बिताई है।।
मशगूल हो गए हो अब मालूम हो गया ।
अब लौट कर के हिचकियाँ बैरंग जो आई हैं।।
आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित
Comment
आद0 आमोद जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बढिया प्रयास। बधाई कुबूल कीजिये। शेष आद0 आली जनाब समर कबीर साहब के सुझावों पर गौर कीजियेगा
बाक़ी अशआर में शिल्प और व्याकरण पर अभ्यास की ज़रूरत है ।
आ समर दादा प्रणाम
जी शुक्रिया दादा ....कृपया अन्य शेर पर भी मार्गदर्शन दे दीजिये फिर मैं एडिट कर पाऊ
'रोशनाई' का अर्थ रौशनी नहीं स्याही(इंक) ही है ।
कुछ इस तरह किताबें दिल में रौशनाई है ।।
روشنائی
agar fir bhi sahi n ho.. to jarur punh nya sani likhta hun
जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन शिल्प और व्याकरण पर अभी बहुत अभ्यास की ज़रूरत है,प्रयासरत रहें,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
मतले के सानी मिसरे में क़ाफ़िया ग़लत है,"रोशनाई" का अर्थ होता है,"ink"
स्याही,इसे बदलने का प्रयास करें ।
अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
aa shyam narain sir nmn
pratsahn ke liye aabhar
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । |
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