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ज़ुदा हुआ पर सज़ा नहीं है

121 22 121 22

...

ज़ुदा हुआ पर सज़ा नहीं है,
न ये समझना ख़ुदा नहीं है ।

ज़रा सा नादाँ है इश्क़ में वो,

सबक़ वफ़ा का पढ़ा नहीं है'

दिखाऊँ कैसे वो दिल के अरमाँ ,
चराग दिल का जला नहीं है ।

है दर्द गम का सफर में अब तक,
कि अश्क़ अब तक गिरा नहीं है ।

न वो ही भूले ये दिल दुखाना,
यहाँ अना भी खुदा नहीं है ।

न देना मुझको ये ज़ह्र कोई,
हुनर तो है पर नया नहीं है ।

लिपट जा आकर तू ऐ महब्बत,

जनाज़ा रुख़्सत हुआ नहीं है'

********

मौलिक व अप्रकाशित

--------हर्ष महाजन

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Comment

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Comment by Harash Mahajan on April 8, 2018 at 5:52pm

आदरणीय नीलेश जी  ऊला मिसरा ठीक करते सानी बिगड़ गया ।

ज़रा सा वो इश्क़ में है नादाँ,
सबक इश्क़ का पढ़ा नहीं है ।

चल आ लिपट जा तू ऐ मुहब्बत,
ज़नाज़ा रुक्सत हुआ नहीं है ।

आखिरी शेर के ऊला मिसरे को यूँ भी तो लिख सकते हैं

चल आ लि /पट जा /तू ऐ मु/हब्बत

121  / 22       /121/22

सादर ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 8, 2018 at 5:07pm

आ. हर्ष जी 
इश्क़ का मतलब पढ़ा नहीं है ।

इश्क   को इ शक न पढ़े ..
सादर 

Comment by Harash Mahajan on April 8, 2018 at 12:29pm

आदरणीय  Sheikh Shahzad Usmani जी आदाब । आपको पेशकर्दा रचना पसंद आयी मेरा लिखना सार्थक हुआ । उम्मीद है आप यूँ ही आते रहेंगे । शुक्रिया सर ।

सादर ।

Comment by Harash Mahajan on April 8, 2018 at 12:27pm

आदरणीय नीलेश जी आदाब । आपकी आमद हर बार मुझे कुछ सीखा जाती जाती है । सबसे पहले तो शुक्रिया सुधार हेतु बारीकी से देख मुझे मार्गदर्शन देने के लिए । आपके निर्देशानुसार वो दोनों शेर दुबारा लेकर आया हूँ सर ज़रा अपना कीमती वक़्त दीजियेगा ....

ज़रा सा वो इश्क़ में है नादाँ,
इश्क़ का मतलब पढ़ा नहीं है ।

.

तू आ लिपट जा मुझे मुहब्बत,
ज़नाज़ा रुक्सत हुआ नहीं है ।

आपकी इंतज़ार में 

सादर

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2018 at 11:30am

पते की बात। इंसानों के अहसास की बात। बेहतरीन सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और शुभकामनाएं आदरणीय हर्ष महाजन जी।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 8, 2018 at 11:16am

आ. हर्ष जी,
मुश्किल बहर पर    अच्छा प्रयास हुआ है..
ज़रा सा है वो इश्क़ में नादाँ
आजा लिपट जा तू ऐ मुहब्बत,... ये दोनों मिसरे बहर में नहीं हैं...
पूरी  ग़ज़ल वक़्त   माँग रही है 
सादर 

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