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वो रंजिश में ताने दिए जा रहे हैं,
हैं अपने मगर मुझको तड़पा रहे हैं ।
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सिफर हो चला हूँ मैं ख़्वाबों से खुद ही,
तभी गम के बादल बहुत छा रहे हैं ।
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बसी दिल में उनकी वो तस्वीर ऐसी,
कि बनकर वो साये चले आ रहे हैं ।
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सुना है कि मिलती दुआओं से मंज़िल,
नमाज़-ए-महब्बत पढ़े जा रहें हैं ।
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मैं रोया हूँ इतना छुपा कर वो आँहें,
पुराने थे रिश्ते जो इतरा रहे हैं ।
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मौलिक व अप्रकाशित
-------हर्ष महाजन
Comment
आदरणीय मुझे हर्ष महाजन कहते हैं । आपकी टिप्पणी शायद आ० बसंत जी के लिए है :)
आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी बारीकी से कृति पढ़ने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया ।
जी हां मिश्रा जी और भी बहुत से गीत हैं जिनपर ये गाया जा सकता है ।
सादर ।
हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आदरनीय लक्ष्मण धामी साहब ।
हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आदरनीय जनाब नवीन मनी जी ।
कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे ..के तर्ज पर इसे गुनगुनाने में बड़ा आनंद आया इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत जी
बहुत सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय समर जी आदाब ।
शुक्रिया ।
सादर ।
ठीक है ।
आदरणीय बसंत जी आपकी आमद और पसंदगी के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
सादर ।
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