गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल
2122 2122 212
*****†
ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा ,
लौट कर आये महब्बत में वफ़ा ।
दूरियाँ मिटती नहीं अब क्या करें,
कोई मिलने का निकालो रास्ता ।
चिलचिलाती धूप में आना सनम,
गुदगुदाती है तुम्हारी ये अदा ।
ज़ख्म दिल के देखकर रोते हैं हम,
याद आये इश्क़ का वो सिलसिला ।
तज्रिबा इतना है सूरत देख कर,
ये बता देते हैं कितना है नशा ।
वो लकीरों में था मेरे हाथ की,
मैं ज़माने में उसे ढूँढा किया ।
अश्क़ हमको दरबदर करते रहे,
जब तलक़ था दरमियाँ ये फ़ासला ।
दिल के अरमाँ छू रहे हैं अर्श अब,
आपने जब से दिया है हौंसला ।
वो रकीबों में उलझ कर रह गए,
बेगुनाही की मुझे देकर सज़ा ।
*****
मौलिक व अप्रकाशित
--हर्ष महाजन
Comment
आदरणीय ब्रजेश कुमार जी
आपकी आमद और प्रोत्साहित
टिप्पणी का शुक्रिया ।
उम्दा ग़ज़ल हुई आदरणीय..सादर
शुक्रिया सर शंका दूर करने के लिए आ० समर जी।
सादर ।
तज्रिबा इत/फ़ाइलातुन2122,(तज्रिबा 212)
ना है सूरत /फ़ाइलातुन2122,मात्रा पतन के साथ
देख कर/फाइलुन 212
सही शब्द 'तज्रिबा' है "तज़र्बा" नहीं ।
बाक़ी ठीक है ।
आ० समर जी ....आपकी रहनुमाई में ये ग्सल यूँ हुई सर
ज़रा देखिएगा ।
सादर
ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा ,
लौट कर आये महब्बत में वफ़ा ।
दूरियाँ मिटती नहीं अब क्या करें,
कोई मिलने का निकालो रास्ता ।
चिलचिलाती धूप में आना सनम,
गुदगुदाती है तुम्हारी ये अदा ।
ज़ख्म दिल के देखकर रोते हैं हम,
याद आये इश्क़ का वो सिलसिला ।
है तज़र्बा इतना सूरत देख कर,
ये बता देते हैं कितना है नशा ।
वो लकीरों में था मेरे हाथ की,
मैं ज़माने में उसे ढूँढा किया ।
अश्क़ हमको दरबदर करते रहे,
जब तलक़ था दरमियाँ ये फ़ासला ।
दिल के अरमाँ छू रहे हैं अर्श अब,
आपने जब से दिया है हौंसला ।
वो रकीबों में उलझ कर रह गए,
बेगुनाही की मुझे देकर सज़ा ।
*****
आ० समर जी .....
"तज्रिबा इतना है सूरत देख कर'
इसमें लफ्ज़ "तज्रिबा" या तज़र्बा
इनकी तकती
तज्रिबा=त/1ज्रि/2बा/2
तज़र्बा = त/1/ज़/2र्बा /2
122
सादर ।
आदरणीय समर सर आदाब । सर आपका मार्गदर्शन सही दिशा दे रहा है । आपकी इस्लाह से ये निखार रहा गया । अभी और वक़्त देता हूँ ।
इसे फिर से लेकर आता हूँ सर ।
सादर ।
जनाब हर्ष महाजन जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कुछ सुझाव हैं,देखियेग ।
मतले का ऊला मिसरा यूँ कर लें :-
'ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा'
दूसरा शैर स्पष्ट नहीं है,सानी मिसरा यूँ कर लें :-
'कोई मिलने का निकालो रास्ता'
चौथा शैर के भाव स्पष्ट नहीं,शिल्प भी कमज़ोर है, व्याकरण दोष भी है, इसे ग़ज़ल से ख़ारिज करना बहतर होगा ।
छटे शैर का ऊला मिसरा यूँ कर लें :-
'तज्रिबा इतना है सूरत देख कर'
सातवें शैर का सानी मिसरा यूँ कर लें :-
'मैं ज़माने में उसे ढूंढा किया'
आठवां शैर यूँ करें :-
'अश्क हमको दर ब दर करते रहे
जब तलक था दरमियाँ ये फ़ासला'
9वें शैर का सानी मिसरा यूँ कर लें :-
'आपने जबसे दिया है हौसला'
आख़री शैर का सानी मिसरा यूँ करें :-
'बे गुनाही की मुझे देकर सज़ा'
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