For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा (गैर मुरद्दफ़)

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल

2122 2122 212

*****†

ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा ,
लौट कर आये महब्बत में वफ़ा ।

दूरियाँ मिटती नहीं अब क्या करें,
कोई मिलने का निकालो रास्ता ।

चिलचिलाती धूप में आना सनम,
गुदगुदाती है तुम्हारी ये अदा ।

ज़ख्म दिल के देखकर रोते हैं हम,
याद आये इश्क़ का वो सिलसिला ।

तज्रिबा इतना है सूरत देख कर,
ये बता देते हैं कितना है नशा ।

वो लकीरों में था मेरे हाथ की,
मैं ज़माने में उसे ढूँढा किया ।

अश्क़ हमको दरबदर करते रहे,
जब तलक़ था दरमियाँ ये फ़ासला ।

दिल के अरमाँ छू रहे हैं अर्श अब,
आपने जब से दिया है हौंसला ।

वो रकीबों में उलझ कर रह गए,
बेगुनाही की मुझे देकर सज़ा ।

*****

मौलिक व अप्रकाशित

--हर्ष महाजन

Views: 681

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on April 28, 2018 at 7:27am

आदरणीय ब्रजेश कुमार जी 

आपकी आमद और प्रोत्साहित 

टिप्पणी का शुक्रिया ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 18, 2018 at 8:11pm

उम्दा ग़ज़ल हुई आदरणीय..सादर

Comment by Harash Mahajan on April 17, 2018 at 10:15pm

शुक्रिया सर शंका दूर करने के लिए  आ० समर जी।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on April 17, 2018 at 10:01pm

तज्रिबा इत/फ़ाइलातुन2122,(तज्रिबा 212)

ना है सूरत /फ़ाइलातुन2122,मात्रा पतन के साथ

देख कर/फाइलुन 212

सही शब्द 'तज्रिबा' है "तज़र्बा" नहीं ।

बाक़ी ठीक है ।

Comment by Harash Mahajan on April 17, 2018 at 7:48pm

आ० समर जी ....आपकी रहनुमाई में ये ग्सल यूँ हुई सर

ज़रा देखिएगा ।

सादर

ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा ,
लौट कर आये महब्बत में वफ़ा ।

दूरियाँ मिटती नहीं अब क्या करें,
कोई मिलने का निकालो रास्ता ।

चिलचिलाती धूप में आना सनम,
गुदगुदाती है तुम्हारी ये अदा ।

ज़ख्म दिल के देखकर रोते हैं हम,
याद आये इश्क़ का वो सिलसिला ।

है तज़र्बा इतना सूरत देख कर,
ये बता देते हैं कितना है नशा ।

वो लकीरों में था मेरे हाथ की,
मैं ज़माने में उसे ढूँढा किया ।

अश्क़ हमको दरबदर करते रहे,
जब तलक़ था दरमियाँ ये फ़ासला ।

दिल के अरमाँ छू रहे हैं अर्श अब,
आपने जब से दिया है हौंसला ।

वो रकीबों में उलझ कर रह गए,
बेगुनाही की मुझे देकर सज़ा ।

*****

Comment by Harash Mahajan on April 17, 2018 at 6:30pm

आ० समर जी .....

"तज्रिबा इतना है सूरत देख कर'

इसमें लफ्ज़ "तज्रिबा" या तज़र्बा 

इनकी तकती 

तज्रिबा=त/1ज्रि/2बा/2

तज़र्बा = त/1/ज़/2र्बा /2

122

सादर ।

Comment by Harash Mahajan on April 17, 2018 at 3:43pm

आदरणीय समर सर आदाब । सर आपका मार्गदर्शन सही दिशा दे रहा है । आपकी इस्लाह से ये निखार रहा गया । अभी और वक़्त देता हूँ । 

इसे फिर से लेकर आता हूँ सर ।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on April 17, 2018 at 2:37pm

जनाब हर्ष महाजन जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कुछ सुझाव हैं,देखियेग ।

मतले का ऊला मिसरा यूँ कर लें :-

'ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा'

दूसरा शैर स्पष्ट नहीं है,सानी मिसरा यूँ कर लें :-

'कोई मिलने का निकालो रास्ता'

चौथा शैर के भाव स्पष्ट नहीं,शिल्प भी कमज़ोर है, व्याकरण दोष भी है, इसे ग़ज़ल से ख़ारिज करना बहतर होगा ।

छटे शैर का ऊला मिसरा यूँ कर लें :-

'तज्रिबा इतना है सूरत देख कर'

सातवें शैर का सानी मिसरा यूँ कर लें :-

'मैं ज़माने में उसे ढूंढा किया'

आठवां शैर यूँ करें :-

'अश्क हमको दर ब दर करते रहे

जब तलक था  दरमियाँ ये फ़ासला'

9वें शैर का सानी मिसरा यूँ कर लें :-

'आपने जबसे दिया है हौसला'

आख़री शैर का सानी मिसरा यूँ करें :-

'बे गुनाही की मुझे देकर सज़ा'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
40 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
55 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service