पथरीली डगर - लघुकथा –
"माँ, अब से हम अकेले स्कूल नहीं जाया करेंगे"?
"क्यों, क्या हुआ, मेरी बच्ची"?
"आप बापू से बोलो, हमें स्कूल छोड़ने और लेने आया करें"।
"अरे कुछ बतायेगी भी कि बस एक ही रट लगा रखी है"?
"क्या बतायें, कुछ बताने लायक बात हो तब ना"?
"बिटिया, तेरे बापू को काम पर जाना होता है। कैसे तेरे साथ जायेगा"?
"तो फिर हम पढ़ाई छोड़ देते हैं"?
"कैसी बात करती है मेरी लाड़ो? तू हमारी इकलौती संतान है। हम दोनों तेरे भविष्य के लिये ही तो रात दिन खटते रहते हैं"।
"माँ, जब हम ही नहीं रहेंगे तो यह खटना किसके काम आयेगा"?
बेटी की बात सुनकर माँ का कलेज़ा काँप गया। माँ ने उसे अपनी गोद में बैठाकर, अपने आँचल से बेटी के चेहरे को ऐसे पौंछा जैसे बेटी की सारी मुसीबतें, बेटी के भाल से माँ के दामन में सिमट जायेंगी। फिर बेटी के सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए पूछा,
"अपनी माँ को नहीं बतायेगी, अपनी परेशानी"?
"माँ, घर से स्कूल तक ना जाने कितने लोग ऐसे ताकते हैं, जैसे हम कोई खानेपीने की चीज़ हैं| कुछ तो एकदम पास से घिनौने तरीके से घूरते और गंदे गाने गाते हुए निकलते हैं"?
"मुझे पता है, तू सच कह रही है मेरी बच्ची, ज़माना बहुत खराब है| मर्द लोग स्त्री को केवल भोग विलास की ही वस्तु समझते हैं"|
"अब तुम ही बताओ माँ, ऐसे हालात में हम क्या करें"?
"यह तो कुछ भी नहीं है बिटिया, इससे भी बुरे हालात हो सकते हैं"?
"क्या मतलब"?
"अभी जो लोग घूरते हैं, आगे चलकर सीटी बजायेंगे, आँख मारेंगे ,कपड़े खीचेंगे, चिकोटी भरेंगे, धक्का मुक्की करेंगे और फिर बलात्कार भी कर सकते हैं"?
"माँ, तुम तो हमें और भी डरा रही हो"?
" बिटिया, हम तुम्हें कड़वी सच्चाई बता रहे हैं।जिसका हर औरत को सामना करने के लिये तैयार रहना चाहिये"|
"माँ, बहुत मुश्किल है इनका सामना करना"?
"बिटिया, मुश्किल जरूर है लेकिन असंभव नहीं"?
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।आपसे मेरा नाम लिखने में छोटी सी त्रुटि हो गयी है शायद।
आदरणीय समर कबीर जी, नमस्कार । समसामयिक विषय पर बढ़िया रचना की प्रस्तुति पर बधाई ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
समसामयिक घटनाचक्र पर सकारात्मक संदेश वाहक बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब।
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