1212----1122----1212----112/22
जो काम बस का नहीं, उसका इश्तिहार किया
यही तो काम सियासत ने बार बार किया
तमाम अहले-चमन भी सज़ा के भागी हैं
अगर उक़ाब ने गोरैया का शिकार किया
उन्हें तो शौक़ था वादों पे वादे करने का
और एक हम थे कि वादों पे ए'तिबार किया
ये कौन आया है साहिल से लौट कर प्यासा
ये किसकी प्यास ने दरिया को शर्मसार किया
मुक़ाम उनको ही हासिल हुआ है दुनिया में
जिन्होंने राह की दुश्वारियों को पार किया
जो इसके साथ न चल पाया रह गया पीछे
गुज़रते वक़्त ने कब किसका इन्तिज़ार किया
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आ. श्याम नारायण जी।
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । |
हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका आ. नीलम जी।
"तमाम अहले-चमन भी सज़ा के भागी हैं अगर उक़ाब ने गोरैया का शिकार किया"
आदरणीय दिनेश कुमार जी, बहुत ही उम्दा गजल पर मुबारकबाद ।
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