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संडे छुट्टी को कैश करने के लिए शनिवार को ही निकल लिए । प्रोग्राम लेट बना इसलिए रिजर्वेशन तो मिला लेकिन आरएसी सीट मिली। कोई खास परेशानी की बात नहीं थी दिल्ली से मथुरा है ही कितनी दूर। सहयात्री गोरा चिट्टा कश्मीरी लड़का था। जो हाथ में डायरी और कलम लिए सोच में डूबा था।
"कश्मीरी हो बॉस।"
"हाँ ",उसका जबाव बहुत संक्षिप्त था।
"यहाँ कब से हो ", बेधड़क उसके पास गया तो उसने खड़े होकर बैठने के लिए जगह बनाई।
"दस बारह साल हो गये जब अम्मी अब्बू नहीं रहे तभी से "
ओह् .... थोड़ी देर हम दोनों चुप रहे । फिर धीरे से नजरें चुराते हुए पूछा "जिहादियों ने ?"
एक फीकी सी हँसी हँसा " क्या मालूम, सब तो एक ही लिबास पहनते हैं क्या जिहादी, क्या फौजी। तब छोटा सा तो था , समझ ही कितनी थी। "

उसकी आवाज में जो ठंडक थी वह नसों को जमा देने के लिए काफी था । माहौल बदलने के ख्याल से कहें या लोअर मिडिल क्लास की फितरत, पता नहीं कहाँ से मन में सवाल उपजा " और खाना खुराक कैसे चलता है। "
" एक चचा है सउदी में, वही कुछ भेजते रहते हैं और कुछ लिख पढ़ लेता हूं। ", उसने खुली डायरी की ओर इशारा किया।
क्या लिखता है देखने के लिए डायरी उठाई तो देखा, दो पंक्तियां लिखी थी - आकाश ने चुपके से धरती के कान में कुछ कहा और धरती धानी चुनर ओढ़कर शरमाते हुए भाग खड़ी हुई ।
आगे पीछे कुछ समझ नहीं आया तो खिंचाई करने की सोची "तब तुम वहीं थे क्या ?"
वो पहली बार नार्मली मुस्कुराया था शायद " ये क्षितिज की बात है।"
उसकी बातों की गहराई में डूबने का मेरा कोई इरादा न था " भाई ये प्यार मोहब्बत की फिलासफी लिखने से कितने पैसे मिल जाते होंगे। करेंट अफेयर्स पर लिखो तो ठीक ठाक पैसे मिल जाएंगे। "
उसने मुस्कुराहट यथावत रखने की कोशिश की लेकिन मुट्ठियां भींच ली " नहीं मैं तो मोहब्बत ही लिखूंगा ?"
दुनियादारी का ज्ञान देना बुद्धिजीवियों का सबसे जरुरी काम है , हमने भी फर्ज निभाया "इससे तो चूल्हा नहीं चलनेवाला , कुछ और काम सोच ले।"
अबकी वह खुलकर हँसा "सोच रखा है रोज एक देग बिरयानी लेकर सीपी में खड़ा हो जाऊंगा तो रोजी रोटी का संकट कभी नहीं होगा।"
बिरयानी शब्द सुनकर छठी इन्द्री सक्रिय हो गई । मैं धीरे से उठ खड़ा हुआ। अब तक जितना मासूम दिखता था उसके उलट बेरहम था " डिब्बे में हैं डिनर में आपको भी खिलाऊंगा फिर बताना , कैसी है मेरी रेसिपी "

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 27, 2018 at 4:32pm

बहुत सुन्दर ढंग से बात कही है...बधाई आदरणीय

Comment by Samar kabeer on April 25, 2018 at 2:29pm

जनाब कुमार गौरव जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 25, 2018 at 1:00pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कुमार गौरव जी।बेहतरीन प्रस्तुति।आज की ज्वल्लंत समस्या को आइने में उतारती लघुकथा।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 25, 2018 at 11:19am

अक्सर ऐसा होता है की हम सामने वाले को कमतर आंक लेते हैं । अच्छे विषयवस्तु पर रची गयी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें कुमार गौरव जी ।

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