For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Kumar Gourav's Blog (9)

अमानत (लघुकथा)

जमींदार रामलोचन की आर्थिक स्थिति उस स्तर पर पहुंच गई थी जहाँ कहा जाता है कि हाथी बिक गया जंजीर ढ़ो रहे हैं।

उधर गाँव के टेलर का लड़का हाथी खरीदने को आतुर था। तीनों पहर के भोजन की निश्चिंतता न थी, लेकिन बंगलौर के किसी फैशन संस्थान में नामांकन के लिए इंटरव्यू दे आया था । वहाँ फीस की रकम सुनकर ही समझ गया था ये रकम सीधे तरीके से वह हफ्ते भर में नहीं जुटा सकता ।

घर लौटने के रास्ते में उसने हर सीधे टेढ़े तरीके से सोचा तब उसे लगा जमींदार के घर में ही उसकी मंशा पूरी हो सकती है, वरना गाँव में…

Continue

Added by Kumar Gourav on July 6, 2018 at 8:00am — 4 Comments

पापनाशिनी

चिड़िया का निवाला खाकर और भालू से डरकर बालक सो गया था। वह जूठे बरतनों से को ऐसे रगड़ रही थी जैसे कोई अपराधी सबूत मिटा रहा हो।



वह बिस्तर पर लेटा उस पंखे को घूर रहा था जिसके डैने बिजली बिल न देने के कारण थम गये थे । आँचल में हाथ पोंछते हुए वह आई और बिना कोई शोर किए बगल में लेट गई ।

उसने करवट लेते हुए उसके बदन पर हाथ रखा तब उसने धीरे से हाथ हटा दिया " सो जाओ कल से मुन्ने का स्कूल सुबह की पाली में है सबेरे उठना होगा।"

हाथ खींचकर उसने तकिया बना लिया " सो गया अपना शेर ।"

वो… Continue

Added by Kumar Gourav on May 11, 2018 at 11:00am — 4 Comments

कमाई (लघुकथा)

छुटपुट अंधेरा फैलने लगा था । दलन ने बाहर साइकिल खड़ी और आकर अम्मा के पैर छुए "कार्ड छप गया भौजी तो भगवान के बाद सबसे पहला आपको अर्पण करने आया हूं । "

"जय हो , बाल बच्चा सुखी रहे। अरे हाँ बिटिया ने झुमके के लिए कहा था। बनवा लाये हैं, ले जाओ दिखा देना । एकदम डिट्टो सेम डिजाइन है जैसा रमेश की बहू के लिए बनवाया था। "

अम्मा कार्ड को निहारती हर्ष ने भर गई "अरे बहू आलमारी में जेवरवाला बटुआ होगा नया सा, वो लाकर देना जरा। "

दलन वही जमीन पर पालथी मार के बैठ गया।

अम्मा की बतकही शुरू हो… Continue

Added by Kumar Gourav on May 5, 2018 at 11:04pm — 6 Comments

क्षितिज

संडे छुट्टी को कैश करने के लिए शनिवार को ही निकल लिए । प्रोग्राम लेट बना इसलिए रिजर्वेशन तो मिला लेकिन आरएसी सीट मिली। कोई खास परेशानी की बात नहीं थी दिल्ली से मथुरा है ही कितनी दूर। सहयात्री गोरा चिट्टा कश्मीरी लड़का था। जो हाथ में डायरी और कलम लिए सोच में डूबा था।

"कश्मीरी हो बॉस।"

"हाँ ",उसका जबाव बहुत संक्षिप्त था।

"यहाँ कब से हो ", बेधड़क उसके पास गया तो उसने खड़े होकर बैठने के लिए जगह बनाई।

"दस बारह साल हो गये जब अम्मी अब्बू नहीं रहे तभी से "

ओह् .... थोड़ी देर हम… Continue

Added by Kumar Gourav on April 25, 2018 at 12:13am — 4 Comments

सफेदपोश (लघुकथा)

लूट के माल का बंटवारा होना था । गिरोह के सभी सदस्य जुटे थे। अचानक पहरेदार ने आकर इत्तला किया, पुलिस ने घेरा डालना शुरू कर दिया है , जल्दी माल समेटो और भागो।
कौओं के बीच हंस बने व्यक्ति ने बुद्धिजीविता दिखाई "जरूर किसी ने गद्दारी की है। "
सरदार को बात जंच गई , हाँ गद्दार को छोड़ना मुनासिब न होगा। कमर से पिस्तौल निकाली और धांय।
"अरे सरदार ये तो अपना खास आदमी था।"
लाश के धवल वस्त्रों पर नजर मारते हुए सरदार गुर्राया " नहीं ! ये सफेदपोश हो गया था।"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Kumar Gourav on April 21, 2018 at 9:15pm — 9 Comments

पुल (लघुकथा)

एक बहुत बड़े जमींदार थे। उनका कुनबा भी बहुत बड़ा था। उनकी जमीन से होकर एक सोता बहता था। सोते के दूसरी तरफ भी कुनबे के कुछ लोग रहते थे। जिनसे यदा कदा ही मिलना हो पाता था।



सरकार ने जब जमींदारी जब्त करनी शुरू की तो जमींदार साहब को अपने धन का अपने लोगों के लिए सदुपयोग करने का उपाय सूझा। उन्होंने सरकार के तय मापदंड के अलावा बचे धन से उस सोते पर एक पुल बनवा दिया। ताकि कुनबे के लोग आपस में मिलते जुलते रहें। जम्हूरियत में संख्या बल का अपना ही महत्व है ये बात वह खूब समझते थे।



पुल…

Continue

Added by Kumar Gourav on March 6, 2018 at 10:00pm — 7 Comments

बैल (लघुकथा)

बापू हुकुम चलाते थे और अम्मा घर। रंजन के और कोई भाई बहन न था। बापू के मुँहफट स्वभाव के कारण पड़ोसियों से भी वैर ही रहता था। चूल्हा चौका गाय गोरू और बापू की चाकरी से फुरसत मिल जाने पर अम्मा कभी कभी उसे प्यार भी कर लेती थी।

बचपन से यही चल रहा था। अब जब दसवीं की परीक्षा सर पर है ,गाय के बछड़ा हो गया है। अम्मा उसी में लगी पड़ी है। खाना भी खुद बनाया आज रंजन ने।

मामा के यहाँ जाना है वहीं रहकर परीक्षा देनी है रोज रोज बीस किलोमीटर आना जाना करेगा तो पढ़ेगा कब।

जब वह बछड़े को देखने गया तो बापू… Continue

Added by Kumar Gourav on February 27, 2018 at 1:49am — 6 Comments

वाद विवाद और मवाद

कहते हैं ठोकर खाने से अक्ल आती है लेकिन कोई छोटन तिवारी से पूछे तो कहेंगे ठोकर लगने से सर फूटता है खून आता है और रही सही अक्ल नामालूम सी जगह घुस जाती है ।

छोटन को जब अक्ल आई तब तक तीन बच्चों के बाप हो चुके थे । बाप गाँव के मानजन थे तो पंचायती दरी सफेदा इन्हीं के यहाँ रहता था। दो रूपये के हिसाब से भी गाँववालों को किराये पर देने में साल में दो चार हजार पंचायत के खाते में जमा हो ही जाता ।

देखाभाला व्यापार था तो जब पिता के न रहने पर विपत्त पड़ी तो टेंट शमियाना और लाइट साउंड वगैरह किराये पर… Continue

Added by Kumar Gourav on February 22, 2018 at 8:26pm — 1 Comment

कुलीन(लघुकथा)

कहा गया है कि,

साईं इतना दीजिए जा मै कुटुम समाय।

मै भी भूखा न रहूं , साधु न भूखा जाय।।

उनका भी यही हाल था न संपन्न थे न विपन्न , मगर कुलीन थे, तो कुल की पगड़ी के बोझ से उनका सर इस अर्थयुग में हमेशा झुका ही रहता था ।

कुलीन लोगों की तरह उनकी नाक भी बहुत सख्त थी । इतनी सख्त की एकदिन उन्होंने नाक मारकर दिनेश ताँती की बेटी का सर फोड़ दिया था । जिसका उनके भाई को आज भी गम है।

फिर एकदिन उनकी नाक पर बेटी आ बैठी । सख्त नाक बेटी के बोझ से झुकने लगी , इतना कि कभी भी टूटकर गिर सकता… Continue

Added by Kumar Gourav on February 20, 2018 at 3:35pm — 8 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
10 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service