For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बापू हुकुम चलाते थे और अम्मा घर। रंजन के और कोई भाई बहन न था। बापू के मुँहफट स्वभाव के कारण पड़ोसियों से भी वैर ही रहता था। चूल्हा चौका गाय गोरू और बापू की चाकरी से फुरसत मिल जाने पर अम्मा कभी कभी उसे प्यार भी कर लेती थी।
बचपन से यही चल रहा था। अब जब दसवीं की परीक्षा सर पर है ,गाय के बछड़ा हो गया है। अम्मा उसी में लगी पड़ी है। खाना भी खुद बनाया आज रंजन ने।
मामा के यहाँ जाना है वहीं रहकर परीक्षा देनी है रोज रोज बीस किलोमीटर आना जाना करेगा तो पढ़ेगा कब।
जब वह बछड़े को देखने गया तो बापू वहीं था उसने चिंता जताई " ये तो दूध भी नहीं देगी ,इसका क्या करोगे बापू। "
बापू हँसा "अरे थोड़े दिन बढ़िया खिलापिला कर बैल बना लेंगे। "
वह मुँह ताकने लगा पिता का "अपने पास खेत कहाँ है, बैल बनाकर क्या करोगे। "
एक मीठी झिड़की मिली " अपने पास नहीं है तो क्या दुनिया में खेत खत्म हो गये। "
बहस से अम्मा का ध्यान रंजन पर आ गया " तैयार हो गया बेटा, अंदर चल कुछ सामान देना है मामा के लिए। "
अंदर कोठरी में ले जाकर अम्मा ने उसे कुछ रूपये दिये " बढ़िया से परीक्षा देना और परीक्षा खत्म होते ही बड़े मामा के पास दिल्ली चले जाना। "
उसकी आँखें हैरत से फैल गई " बापू ने तो ठेकेदार से बात कर रखी है नौकरी के लिए , फिर मामा के यहाँ क्यूँ ?"
आहट पाकर खड़ी होती अम्मा ने सर पर चपत लगाई " आदमी बनना है कि तुमको भी बैल बनना है।"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 489

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 3, 2018 at 2:07pm

बहुत ही सुन्दर लघुकथा के लिए बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2018 at 10:59am

हार्दिक बधाई ..

Comment by Samar kabeer on March 1, 2018 at 10:31pm

जनाब गौरव जी आदाब,अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2018 at 6:46pm

बहुत अच्छी लघु कथा है आद ० गौरव जी हार्दिक बधाई |

Comment by TEJ VEER SINGH on March 1, 2018 at 12:29pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गौरव कुमार जी।बेहतरीन लघुकथा।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 27, 2018 at 6:20pm

बेहतरीन सृजन। बेहतरीन तंज के साथ बेहतरीन प्रेरक संदेश वाहक रचना आपकी चिर-परिचित लोकप्रिय शैली में। हार्दिक बधाई आदरणीय कुमार गौरव जी। वाक्य संरचनाओं ..//रंजन के और कोई ...// और ..//गाय के बछड़ा हो...// मे 'के' कुछ अटपटा सा लगता है। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
23 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service