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बापू हुकुम चलाते थे और अम्मा घर। रंजन के और कोई भाई बहन न था। बापू के मुँहफट स्वभाव के कारण पड़ोसियों से भी वैर ही रहता था। चूल्हा चौका गाय गोरू और बापू की चाकरी से फुरसत मिल जाने पर अम्मा कभी कभी उसे प्यार भी कर लेती थी।
बचपन से यही चल रहा था। अब जब दसवीं की परीक्षा सर पर है ,गाय के बछड़ा हो गया है। अम्मा उसी में लगी पड़ी है। खाना भी खुद बनाया आज रंजन ने।
मामा के यहाँ जाना है वहीं रहकर परीक्षा देनी है रोज रोज बीस किलोमीटर आना जाना करेगा तो पढ़ेगा कब।
जब वह बछड़े को देखने गया तो बापू वहीं था उसने चिंता जताई " ये तो दूध भी नहीं देगी ,इसका क्या करोगे बापू। "
बापू हँसा "अरे थोड़े दिन बढ़िया खिलापिला कर बैल बना लेंगे। "
वह मुँह ताकने लगा पिता का "अपने पास खेत कहाँ है, बैल बनाकर क्या करोगे। "
एक मीठी झिड़की मिली " अपने पास नहीं है तो क्या दुनिया में खेत खत्म हो गये। "
बहस से अम्मा का ध्यान रंजन पर आ गया " तैयार हो गया बेटा, अंदर चल कुछ सामान देना है मामा के लिए। "
अंदर कोठरी में ले जाकर अम्मा ने उसे कुछ रूपये दिये " बढ़िया से परीक्षा देना और परीक्षा खत्म होते ही बड़े मामा के पास दिल्ली चले जाना। "
उसकी आँखें हैरत से फैल गई " बापू ने तो ठेकेदार से बात कर रखी है नौकरी के लिए , फिर मामा के यहाँ क्यूँ ?"
आहट पाकर खड़ी होती अम्मा ने सर पर चपत लगाई " आदमी बनना है कि तुमको भी बैल बनना है।"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on March 3, 2018 at 2:07pm

बहुत ही सुन्दर लघुकथा के लिए बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2018 at 10:59am

हार्दिक बधाई ..

Comment by Samar kabeer on March 1, 2018 at 10:31pm

जनाब गौरव जी आदाब,अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2018 at 6:46pm

बहुत अच्छी लघु कथा है आद ० गौरव जी हार्दिक बधाई |

Comment by TEJ VEER SINGH on March 1, 2018 at 12:29pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गौरव कुमार जी।बेहतरीन लघुकथा।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 27, 2018 at 6:20pm

बेहतरीन सृजन। बेहतरीन तंज के साथ बेहतरीन प्रेरक संदेश वाहक रचना आपकी चिर-परिचित लोकप्रिय शैली में। हार्दिक बधाई आदरणीय कुमार गौरव जी। वाक्य संरचनाओं ..//रंजन के और कोई ...// और ..//गाय के बछड़ा हो...// मे 'के' कुछ अटपटा सा लगता है। सादर।

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