For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक बहुत बड़े जमींदार थे। उनका कुनबा भी बहुत बड़ा था। उनकी जमीन से होकर एक सोता बहता था। सोते के दूसरी तरफ भी कुनबे के कुछ लोग रहते थे। जिनसे यदा कदा ही मिलना हो पाता था।

सरकार ने जब जमींदारी जब्त करनी शुरू की तो जमींदार साहब को अपने धन का अपने लोगों के लिए सदुपयोग करने का उपाय सूझा। उन्होंने सरकार के तय मापदंड के अलावा बचे धन से उस सोते पर एक पुल बनवा दिया। ताकि कुनबे के लोग आपस में मिलते जुलते रहें। जम्हूरियत में संख्या बल का अपना ही महत्व है ये बात वह खूब समझते थे।

पुल बनकर तैयार हुआ तब किसी बड़े आदमी से उद्घाटन करवाने की सोची ताकि इलाके में उनके बड़े कुनबे की धाक बढ़े।
निमंत्रण पत्र बाँटने के लिए नाम लिखते समय सुपुत्र ने अनायास ही पूछ लिया "उस पार वालों को भी निमंत्रण भेजना है क्या ?"
जमींदार साहब कुछ देर तो अवाक् से सुपुत्र का मुँह देखते रहे और फिर धीरे से बोले " नहीं , वह सब तो घर के ही लोग हैं ,उनको क्या निमंत्रण भेजना । अब बस तुम कचहरी जाकर कागज बनवा लो, उद्घाटन के बाद पुल सरकार को सौंप देंगे। आगे रख रखाव की जिम्मेदारी सरकार की होगी ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on March 11, 2018 at 6:02am

आद0 कुमार गौरव जी सादर अभिवादन। बढिया लघुकथा कहने का प्रयास। बहुत बहुत बधाई इस प्रयास पर। सादर

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 9, 2018 at 6:21pm

देश में यही फार्मूला तो चल रहा है।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 9, 2018 at 6:20pm

बढ़िया शीर्षक के साथ बढ़िया तीखी लघुकथा।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 9, 2018 at 6:19pm

विवरणात्मक और संवाद, दोनों तरह की मिश्रित शैली में बढ़िया विचारोत्तेजक दिलचस्प रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब कुमार गौरव साहिब। क़िस्सागोई जैसे तत्व कम करने के लिए फ्लैशबैक का प्रयोग किया जा सकता है।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 8, 2018 at 7:27pm

आपने क्या कहने की कोशिश की है??बात कुछ साफ नहीं हुई आदरणीय..या शायद मेरी समझ में नहीं आई।

Comment by somesh kumar on March 8, 2018 at 4:26pm

KYA IS LGHUKTHA KO AUR LGHU KR SKNA SMBHV HAI.DEKHIEY AGR KUCH AUR KSAV LA SKTE HO TO

Comment by Samar kabeer on March 7, 2018 at 2:51pm

जनाब कुमार गौरव साहिब आदाब,अच्छी लघुजथा है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
22 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
23 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service