तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना
शर्त ये है तो फिर.. जा नहीं देखना.
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जीतना हो अगर जंग तो सीखिये
हो निशाना कहीं औ कहीं देखना.
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खो दिया गर मुझे तो झटक लेना दिल
धडकनों में मिलूँगा..... वहीँ देखना.
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देखता ही रहा... इश्क़ भी ढीठ है
हुस्न कहता रहा अब नहीं देखना.
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कितना आसाँ है कहना किया कुछ नहीं
मुश्किलें हमने क्या क्या सहीं देखना.
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एक पल जा मिली “नूर” से जब नज़र
मुझ को आया नहीं फिर कहीं देखना.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नीलेश जी आदाब,
एक और भीषण गर्मी में sprite सी cool-cool राहत देती ग़ज़ल । हर शे'र में sirf drink का मज़ा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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