For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विरह रो रहा है... मिलन गा रहा है

मधुर अप्राकृत  प्यार ...

करी थी जिसकी इन्तज़ार

ज़िन्दगी भर  ... ज़ार-ज़ार

आया है स्वयं अब वसन्त बन

निकटतम आस-पास, इतना पास

 

ज़िन्दगी के इस पढ़ाव पर

तुम आई रवि-रश्मि बन प्रिय

तुम्हारे अप्रतिम स्नेह में मानो

मैं हूँ विराजा राज-सिहाँसन पर

परी-सी आई हो किस निद्रा के द्वार

 

झूम रहे स्नेह के हल्के-हल्के उदगार                     

उपवन में गा रहे कोयल, फूल, और धूप

हर्षित है संग उनके  यह खुला आकाश

ऐसे में सच कह सकोगी क्या कि नींदों में

छुप-छुप कर जो आया  वह प्यार नहीं है

 

सुनो, सुनो मेरे प्यार

मन में हमारे है असीम उमंग          

विद्रूप  वेदना  भी  है  प्रच्छन्न

फिर आलोचनाशील मन है द्वंद्व में क्यूँ

है क्यूँ निज प्रति असंवेदनशील अपार

 

धकेल दिया है अन्धकार को सीमा से बाहर

फिर आँखों में तुम्हारी भी क्यूँ चमक रहा है

आँसू बन कर शून्य का कोई बुलबुला टूटता

गालों  पर  टपकते सरकते  पूछ रहा है वह

उलझन में तुमसे बार-बार कोई प्रश्न कठिन 

 

आज जब मामूली अबोध सचाइयों के बीच हमें

है नियति से  कोई शिकायत नहीं,  विलाप नहीं

क्या है जो बेमाप अँधेरे में करता है अमंगल इशारे

लौटा लाता है तकलीफ़-भरा वही एक प्रश्न बीच हमारे

चल सकेंगे साथ हम कब तक, कहाँ तक, लिए हाथ में हाथ ?

भविष्य की कटी-पिटी रेखाओं में

तुम्हारे बिना  मैं  हूँ अपाहिज-सा

प्रिय, मैं  भटक जाने से डरता हूँ ...

               --------

-- विजय निकोर

* यह भाव प्रिय गोपाल दास नीरज जी की ज़मीन से है

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 675

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on May 22, 2018 at 7:55am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी

Comment by vijay nikore on May 22, 2018 at 7:54am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहित जी

Comment by Sushil Sarna on May 14, 2018 at 3:34pm

वाह आदरणीय विजय निकोर जी वाह ... अंतर्मन के भावों का सहज प्रस्तुतीकरण हुआ है ... शब्द सौंदर्य और भाव प्रवाह देखते ही बनता है ... मन का डर प्रेमासक्ति का चरम है ... कल्पना और कलम का मेल अद्भुत हुआ है ... दिल से बधाई स्वीकार करें सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service