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ग़ज़ल --- मैं अपने काम अगर वक़्त पर नहीं करता / दिनेश कुमार / इस्लाह हेतु.

1212--1122--1212--22
.
मैं अपने काम अगर वक़्त पर नहीं करता
तो कामयाबी का पर्वत भी सर नहीं करता
.
हसीन ख़्वाब अगर दिल में घर नहीं करता
तवील रात से मैं दर-गुज़र नहीं करता
.
हरेक मोड़ पे ख़ुशियों तो कम हैं,दर्द बहुत
कहानी वो मेरी क्यों मुख़्तसर नहीं करता
..
सिखा दिया है मुझे ग़म ने ज़िन्दगी का हुनर
किसी भी हाल, मैं अब आँख तर नहीं करता
.
मैं अपने अज़्म की पतवार साथ रखता हूँ
मेरे सफ़ीने पे तूफ़ाँ असर नहीं करता
.
ग़ुरूर साथ में चलता है हर घड़ी उसके
वो अब अमीर है तन्हा सफ़र नहीं करता
..
दिया उमीद का तू हर घड़ी जलाये रख
हर एक रात की क्या, रब सहर नहीं करता
.
अजब जवाब था उनका 'दिनेश' सोचेंगे
सुना था इश्क़ कोई सोच कर नहीं करता
.
दिनेश कुमार ( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 23, 2018 at 6:53pm

आ. भाई दिनेश जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by दिनेश कुमार on May 22, 2018 at 8:11pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर जी।

कुछ कमियां भी बताइये। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 22, 2018 at 8:07pm

आ. दिनेश जी 
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..सभी अशआर भरपूर हैं..
बहुत बहुत बधाई 

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