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बहक गया अगर समां ख़ुदा न ख़्वास्ता
बिखर गया अगर जहाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
चिराग़ हम लिये खड़े यही तो सोचकर
भटक गया जो कारवाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
उठाना मत सनम निकाब मुझको देखकर
मचल उठा जो दिल जवां ख़ुदा न ख़्वास्ता
पता चमन का तुम उसे न देना दोस्तों
इधर मुड़ी अगर खिजाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
किया क्या इंतज़ाम आग को बुझाने का
अगर उठा कहीं धुआँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
उड़ी हुई मेरी है नींद इस ख़याल से
बढ़ी जो अपनी दूरियां ख़ुदा न ख़्वास्ता
मिलेगा ख़ास इक सुकूं मेरे रफ़ीक को
गिरे मेरा जो ये मकां ख़ुदा न ख़्वास्ता
राजेश कुमारी राज
Comment
वाह खूब ....बस एक शेर में ....बुझाने का--ख़्वास्ता ....खूबसूरत शेर वाह....
आ. राजेश दी, सादर अभिवादन । सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
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