विदेश से लौटे मांगीलाल की मांग पर चांदनी रौशनी में खुली हवा में उन्हें गांव की सड़क पर सैर कराई गई बैलगाड़ी में एक लालटेन लटका कर, जो उनके छात्र जीवन की निशानी थी। बैलगाड़ी चालक बब्बा जी अतीत की बातें सुनाकर छात्र रूपी मांगीलाल की तारीफ़ों के पुल बांधते हुए उनके दिलचस्प सवालों के जवाब देते जा रहे थे।
"बड़ा मज़ा आया बेलगाड़ी में घूम कर!" सिगरेट का कश लेते हुए गांव की कुछ अल्हड़ नवयौवनाओं को घूरते हुए मांगीलाल ने अपनी अगली मांग इशारों में ज़ाहिर कर दी!
"बब्बा ज़रा लालटेन उस तरफ़ तो घुमाओ तेज़ करके!"
"अरे, बीच वाली तो वही है भैया लालटेन वाली! पकड़ी गई थी गुलछर्रे उड़ाती खेत में लालटेन में दो-तीन के संग!" कुछ चौंकते हुए बब्बाजी ने अपनी तौलिया संभाल कर मांगीलाल से कहा।
बेलगाड़ी में झूल रही अपनी वाली लालटेन को निहारते हुए मांगीलाल बड़बड़ाते हुए बोला - "ससुरी गज़ब ढा रही है जवानी में! मेरी लालटेन वाली रात कभी न भूलेगी!"
"कहां खो गये भैया जी, इसे देख कर तो मुझे भी अपनी बैलगाड़ी वाली रात याद आ गई!" बब्बाजी ने अपनी धोती ठीक-ठाक करते हुए कहा - "लेकिन थी बड़ी ही होनहार लौंडिया। ग़रीब परिवार में पली ख़ूबसूरती और चंचलता इसकी पढ़ाई में रोड़ा बन गई और खप गई बेचारी!"
"कहां तक पढ़ पाई यह?"
"दसवीं फेल है! रंग-ढंग देख कर मां-बाप ने छुड़वा दी पढ़ाई-लिखाई! मटरगश्ती करती रहती है अब!" बैलगाड़ी से लालटेन उतारकर मांगीलाल को पैदल उसके घर की ओर ले जाते हुए बब्बाजी ने कहा- "आप तो पढ़-लिख के विदेश निकल गये! लालटेन वाली के होश ठिकाने न लगे!"
"ऐसा मत कहो! ऐसे तबक़े की सुंदरियां तो हम जैसों के होश ठिकाने लगा देतीं हैं बब्बाजी! बुला सको, तो बुला लो आज?"
"ऐसा मत कहो भैया, अब उसे क़ानून की बहुत समझ है! नाबालिग उमर के रेप-वेप में फंसा दिया, तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी!" मांगीलाल को आराम-कुर्सी पर बिठाते हुए बब्बाजी जी ने अपनी आंखें मटकाते हुए कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
अपने विचार सांझा करते हुए मेरी इस रचना के अनुमोदन और हौसला अफ़जाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार साहिब और मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा।
मेरे इस प्रयास पर आपकी त्वरित बिंदुवार हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब। ई़द-उल--फ़ित्र की आप सभी को बहुत-बहुत मुबारकबाद।
बढ़िया लघुकथा है आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. कथा का प्रवाह देखते ही बनता है. इस उत्तम सृजन हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.
आदरणीय शहजाद उसमानी जी , नमस्कार । बढ़िया लघु कथा । सच है, केवल उच्च शिक्षा ग्रहण करने से ही चरित्र ऊंचा नहीं हो जाता है । अच्छा चरित्र गढ़ना पड़ता है । अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
अपना देश छोड़कर पराए देश में जाकर भी कामेच्छाएँ खत्म नहीं होती । अपने गाँव पर हमेशा ही नीयत ख़राब होती है । उच्च शिक्षित होने से भी अगर चाल- चलन ठीक नहीं.होते हैं और चरित्र में बदलाव नहीं आता है तो फिर उच्च शिक्षित होना ही बेकार है । इस लघुकथा के ज़ोरदार संवाद ही इसके प्राण है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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