चुनावी घोषणायें - लघुकथा –
मंच से नेताजी अपने चुनावी भाषण में आम जनता के लिये लंबी लंबी घोषणायें राशन की तरह बाँट रहे थे।
"अरे साहब यह सब घोषणायें तो घिसी पिटी हैं। हर चुनाव में दोहराई जाती हैं"। नीचे से एक गाँव का आदमी चिल्लाया।
नेताजी ने मुस्कुराते हुए अपनी दाढ़ी पर हाथ फ़िराते हुए कहा,"अब मैं ऐसी घोषणा करने जा रहा हूँ जो इस देश के इतिहास में पहली बार होगा"।
सारे श्रोता गण एकाग्र होकर साँस रोक कर नेताजी की अगली घोषणा का इंतज़ार करने लगे।
"हमारी सरकार एक कानून बनायेगी। जिसके तहत हर गाँव से, गाँव वालों द्वारा एक चुने हुए व्यक्ति को मंत्री पद का दर्जा दिया जायेगा। वह व्यक्ति सीधे प्रधान मंत्री कार्यालय से संपर्क रखेगा। गाँवालों की सभी समस्यायें उसी के माध्यम से सुलझाई जाया करेंगी"।
नेताजी जिंदाबाद। नेताजी की जय हो। इन नारों से आकाश गूंजने लगा। कार्यकर्ताओं ने नेताजी को कंधों पर उठा लिया। भीड़ का बदला हुआ रुख देखकर पार्टी की जीत पक्की लग रही थी।
नेताजी जैसे ही पार्टी कार्यालय पहुंचे पार्टी का मुखिया राशन पानी लेकर नेताजी पर चढ़ बैठा,
"तुमसे बड़ा अहमक और जाहिल आदमी आजतक राजनीति में नहीं देखा"?
"क्यों हुजूर, ऐसा क्या अपराध कर दिया हमने? आपकी पार्टी की जीत पक्की कर दी"।
"और जो बेवकूफ़ी भरी घोषणा कर आये हो, उसे कौन पूरा करेगा"?
"आपने भी तो पिछले चुनाव में घोषणायें की थीं, वह पूरी कर दीं क्या"?
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।
हार्दिक आभार आदरणीय गुमनाम पिथोरागढ़ी जी।
बहुत सुन्दर !! लघुकथा के लिये बधाइयाँ ॥ |
बिल्कुल सटीक ।।।।।वाह
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।
बेहतरीन तंज। हार्दिक बधाई समसामायिक कटाक्षपूर्ण रचना के लिए आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब।
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